नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। पिछले तीन दिनों से भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य तनावों के कारण पूरा देश चिंता में डूबा हुआ था। हालांकि, अब सीमा पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों ने सीजफायर की घोषणा कर दी है। लेकिन यह निर्णय लेने में अमेरिकी मध्यस्थता की एक लंबी रात आवश्यक साबित हुई, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या दोनों पड़ोसी देशों के बीच संवाद की कोई ठोस प्रणाली मौजूद है?
यह खबर सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और उनके अधिकारियों ने जारी की, जिसके बाद भारत और पाकिस्तान ने इसकी पुष्टि की। यह घटनाक्रम न केवल क्षेत्रीय शांति के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि दोनों देशों की विदेश नीतियों पर भी गहरा प्रश्नचिह्न लगाता है।
भाकपा (माले) के महासचिव की आलोचना
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यह बेहतर होता अगर दोनों देशों की सरकारें अपनी जनता की शांति की आवाजों को सुनतीं और बाहरी हस्तक्षेप की गुंजाइश कम से कम रखतीं।
उन्होंने मीडिया पर भी तीखी आलोचना की, जो युद्ध के माहौल को मनोरंजन बनाकर पेश कर रहा था। फेक न्यूज, झूठे विजय दावे और युद्ध के प्रति उत्साह दिखाने वाली मुख्यधारा की मीडिया को इस घटनाक्रम पर शर्मिंदा होना चाहिए।
युद्धबंदी को स्थायी शांति का पहला कदम माना जाए
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भारत और पाकिस्तान को युद्धबंदी के फैसले को स्थायी शांति की दिशा में पहला कदम मानना चाहिए। दोनों देशों को पहलगाम आतंकी हमले के बाद की गई अपनी कूटनीतिक घोषणाओं को वापस लेना चाहिए और एक-दूसरे के साथ संबंधों को पुन: स्थापित करना चाहिए।
इसके साथ ही, उन्होंने आतंकवादियों को कड़ी सजा देने और क्षेत्र में शांति, दोस्ती और सहयोग की गारंटी देने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सरकार से मांग: नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की गारंटी
भाकपा (माले) ने मोदी सरकार से यह भी मांग की है कि पिछले कुछ दिनों में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उठाए गए कठोर कदमों को वापस लिया जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों और उन मीडिया प्लेटफॉर्मों की स्वतंत्रता की गारंटी होनी चाहिए, जिन्होंने पहलगाम हमले के बाद सरकार की कमियों पर सवाल उठाए और युद्धोन्माद के बजाय शांति और न्याय की आवाज बुलंद की।
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा शांति की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह साथ ही एक सबक भी है – दोनों देशों को अपने संबंधों को सुधारने के लिए एक स्थायी और स्वतंत्र संवाद प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका को भी सम्मानित किया जाना चाहिए, जो युद्ध के माहौल में भी शांति और सत्य की आवाज बना रहा।
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