सोमवार, अक्टूबर 7, 2024
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फासीवाद के खिलाफ संघर्ष तेज करने के लिए भाकपा (माले) को मजबूत बनायें: 18 दिसंबर का संकल्प

किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत को और मजबूत बनायें

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन की केंद्रीय कमेटी ने कहा है कि इतिहास के बड़े सवाल सड़कों पर जनसंघर्षों में ही हल होते हैं। आज कॉमरेड वीएम के ये शब्‍द एक बार फिर सही साबित हुए हैं। कोविड महामारी की आड़ में मोदी सरकार ने संसद में तीन खेती कानून धोखाधड़ी से पास करवा लिए और इनके जरिये खेती को बड़ी प्राइवेट कंपनियों के हवाले करने की कोशिश की। लेकिन पंजाब के किसानों ने महामारी के बीच ही इसके खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया। इस आंदोलन ने पूरे देश के किसानों को प्रेरित किया। किसानों ने आंदोलन को पूरे एक साल चलाकर इतिहास रच दिया। किसान आंदोलन पर लगातार हमलों और उसे बदनाम करने की तमाम कोशिशों के बावजूद किसान डटे रहे और अंतत: मोदी सरकार को इस कानून को पूरी तरह वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। यदि आज कॉमरेड विनोद मिश्र होते तो उन्‍हें आंदोलन के फसिस्‍ट विरोधी आंदोलन में इस तरह तब्‍दील हो जाने से बहुत खुशी मिलती।

मोदी सरकार को किसानों की ताकत का अंदाजा हो गया है। इस आंदोलन में कॉरपोरेट हमले का मुंह मोड़ देने की ताकत है। इस आंदोलन में यह ताकत भी दिखी कि यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को खत्‍म कर सके और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों में आत्‍मविश्‍वास पैदा कर सके। पंजाब और उत्‍तर प्रदेश के महत्‍वपूर्ण चुनाव से पहले तीनों कानूनों को रद्द करने के बावजूद सरकार किसान आंदोलन के साथ कोई समझौता करने से इंकार कर रही है। खेती कानूनों को वापस लेने का बिल ‘आज़ादी का अमृत महोत्‍सव’ की आड़ में लाया गया है और दिखाने की कोशिश की जा रही है कि सरकार ने विरोध कर रहे किसानों को खुश करने के लिए ये कदम उठाया है। लेकिन दंभ और धोखाधड़ी वाले प्रचार के जरिये इस बात को छिपाया नहीं जा सकता कि सरकार को किसानों के सामने मुंह की खानी पड़ी है।

किसानों का अपनी अन्‍य मांगों के लिए दबाव डालना एकदम जायज है। लखीमपुर खीरी में प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्‍तगी, किसान आंदोलन में भाग लेने वाले किसानों व अन्‍य कार्यकर्ताओं के खिलाफ लादे गये फर्जी मुकदमों को वापस लेने और सभी फसलों और सभी किसानों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की कानूनी तौर पर गारंटी करने की सभी मांगें एकदम जायज हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के किसानों ने खेती कानूनों को रद्द कराने के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। जिन जगहों पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य पर बहुत कम सरकारी खरीद होती है और किसानों को समर्थन मूल्‍य से बहुत नीचे के दाम पर अपनी फसलें बेचनी पड़ती हैं अब वहां के किसानों की जिम्‍मेदारी है कि वे आंदोलन के अगले चरण में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायें। किसानों को न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य नहीं मिलता और मजदूरों को न्‍यूनतम मजदूरी नहीं मिलती लेकिन कंपनियों को अधिकतम खुदरा मूल्‍य को बढ़ाने के अधिकार मिले हुए हैं। इसलिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य के संघर्ष को मजदूरी और बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण के आंदोलन से जोड़कर रखना होगा।

हमें यह भी ध्‍यान में रखना चाहिए कि आंदोलन की सफलता का कारण लाखों किसानों की सतत और व्‍यवस्थित गोलबंदी है। किसानों के आंदोलन की ऐतिहासिक जीत से प्रेरणा लेकर आगे हमें व्‍यापक संगठन निर्माण और राजनीतिक गोलबंदी की दिशा में बढ़ना होगा।

खेती कानूनों को समाप्‍त करने की घोषणा के एक हफ्ते बाद 26 नवंबर को संविधान को स्‍वीकार किये जाने के दिन मोदी ने संविधान की मूल भावना को ही उलट देने की कोशिश की। संविधान की प्रस्‍तावना में किये गये वायदे और मूल अधिकार लोकप्रिय जनसंघर्षों का तर्क बन जाते हैं। इनसे डरी हुई मोदी सरकार ने मूलअधिकारों को कर्तव्‍यों के मातहत लाने के जरिये संविधान को सिर के बल खड़ा कर देने की कोशिश की। गौरतलब है कि कर्तव्‍यों का अनुच्‍छेद आपातकाल के दौरान संविधान संशोधन के जरिये लाया गया था। सरकार जैसे-जैसे लोकतांत्रिक संस्‍थाओं, संघीय ढांचे, संवैधानिक मूल्‍यों और जनता को संविधान में दी गई गारंटी पर हमला और तेज करेगी उसके प्रतिवाद में खड़े होने वाले फासीवाद विरोधी आंदोलन के लिए किसान आंदोलन प्रेरणास्रोत की तरह काम करेगा। किसान आंदोलन को भी समान नागरिकता और अधिकारों के लिए चलने वाले ऐतिहासिक शाहीन बाग आंदोलन से प्रेरणा मिली थी। इस आंदोलन की मुख्‍य ताकत मुस्लिम महिलायें और विश्‍वविद्यालयों के छात्र थे।

2021 भारतीय जनता के लिए बहुत भयावह साल रहा। सरकार ने लोगों की जान बचाने की जिम्‍मेदारी से पीछा छुड़ा लिया और भयावह दमन पर उतर आई। सरकार ने क्रूर जनविरोधी नीतियां लागू कीं और सार्वजनिक संपत्ति को एक तरफ से बेच डाला। लेकिन इस साल का अंत ऐतिहासिक संघर्ष की सफलता से हो रहा है। नये साल की शुरुआत में ही उत्‍तर प्रदेश, पंजाब, उत्‍तराखंड, गोवा और मणिपुर के महत्‍वपूर्ण चुनाव होने जा रहे हैं। आइये हम अपनी पूरी ताकत लगाकर इन चुनावों को ताकतवर जनान्‍दोलन में तब्‍दील कर दें और फासीवादी ताकतों को पीछे धकेल दें।

आज जब हम कॉमरेड विनोद मिश्र का 23 वां स्‍मृति दिवस मना रहे हैं तो हमें उनके पूरे जीवन संघर्ष को याद रखना चाहिए। उन्‍होंने सदैव भाकपा (माले) को विचारधारात्‍मक तौर पर साहसी, सांगठनिक तौर पर मजबूत, रचनात्‍मक पहलकदमी वाली और जनता की दावेदारी को आगे बढ़ाने वाली पार्टी के रूप में संगठित करने के लिए संघर्ष किया। जनसंघर्षों की जीत की गारंटी मजबूत पार्टी ही कर सकती है। नयी चुनौतियों के इस दौर में हम पार्टी के विस्‍तार की नयी संभावनाओं को भी देख सकते हैं। पार्टी की पहलकदमी को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। आइए 2022 को और बेहतर प्रयासों तथा और बड़ी जीतों के साल में बदल दें।

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