शनिवार, जुलाई 27, 2024
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आर्यन को रिहा करो: ऐपवा, आइसा व आरवाईए ने कहा

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन(आइसा) तथा इंकलाबी नौजवान सभा(आर.वाई.ए) आदि संगठनों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को विगत 4 अक्टूबर को नॉर्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मुंबई में एक क्रूज से गिरफ्तार किया। बावजूद इसके कि आर्यन खान के पास से कोई ड्रग्स नहीं मिला था। आर्यन को अब तक जमानत नहीं दी गई है। आर्यन खान अब तक जेल में क्यों है, यह एक ऐसा सवाल है जो हर सभ्य नागरिक को उठाना चाहिए क्योंकि राज्य द्वारा कानून और संविधान का मजाक बना कर एक नागरिक के उत्पीड़न को यदि हम चुपचाप देखते रहे तो कल यही मजाक नियम बन जाएगा और पूरे देश को यह भुगतना पड़ेगा.

इस मामले में नार्कॉटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का कहना है कि इस गिरफ्तारी के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं है तब सवाल उठता है कि आर्यन की गिरफ़्तारी में NCB ने भाजपा कार्यकर्ता मनीष भानुशाली और मलेशिया के रहने वाले के. के. गोसावि को भूमिका अदा क्यों करने दिया? ये दोनों ही NCB के अफ़सर नहीं हैं, गोसावि पर तो पुणे के एक थाना में 420 के एक मामले में आरोप भी दर्ज है, इसलिए आर्यन और अरबाज़ की गिरफ़्तारी में इनकी भूमिका कई सवाल पैदा करते हैं.

आर्यन खान की गिरफ़्तारी और उसके ख़िलाफ़ किसी सबूत के न होने के बावजूद उसे बेल न दिया जाना: ये भारत के संवैधानिक न्याय व्यवस्था के लिए बड़े संकट का एक और संकेत है.

क्या न्याय व्यवस्था को राजनीति में सत्तावान ताक़तें मनमाने तरीक़े से तोड़-मरोड़ रही हैं? भारत की न्याय व्यवस्था का उसूल है कि “जेल नहीं बेल ही नियम होना चाहिए है; जेल तो अपवाद ही होना चाहिए.” जिस शख़्स के ख़िलाफ़ गुनाह का रत्ती भर सबूत नहीं, उसे क्यों इतने दिन जेल में रखा गया है? जज ने बेल न देने का जो तर्क दिया, वह काफ़ी ख़तरनाक है. जज ने माना कि आर्यन के पास से कोई ड्रग्स नहीं पाया गया लेकिन उनके एक मित्र के पास 6 ग्राम चरस पाया गया. जज ने कहा कि आर्यन ‘चाहते तो मित्र से ड्रग्स हासिल कर सकते थे,’ इसलिए ये माना जाए कि आर्यन के पास भी ड्रग्स थे! क्या आज के भारत में न्याय का ये हश्र हो गया है कि किसी को ‘गुनाह करने की आशंका’ के लिए गुनहगार माना जाएगा? या इसलिए कि उसका मित्र आरोपी है? ये तो न्याय का मज़ाक़ है. “Guilt by association” यानी संगति को अपराध का सबूत मान लेना; या अपराध न करने पर भी ‘अपराध की आशंका’ के बहाने गुनहगार मान लेना – इसे तानाशाही शासन का लक्षण माना जाता है.

इस मामले में पक्षपात का सवाल इसलिए उठ रहा है कि लोग पूछ रहे हैं: जामिया के छात्रों पर गोली चलाने वाले को बेल आसानी से मिला जबकि दोष के किसी सबूत के अभाव में भी आर्यन को बेल क्यों नहीं मिल रहा? अर्नब गोस्वामी को एक दिन में “जेल नहीं बेल” वाले उसूल के चलते बेल दिया गया – यह उसूल आर्यन या सिद्दीक कप्पन पर लागू क्यों नहीं होता? कहीं ऐसा तो नहीं कि न्याय की आँखों पर जो पर्दा होना चाहिए, उसमें छेद है जिससे न्याय व्यवस्था पक्ष पहचान कर पक्षपात करती है?

आर्यन के एक मित्र के पास से 6 ग्राम चरस पाए जाने को लेकर गोदी मीडिया जो हल्ला और हाय तौबा मचा रही है: पूछना होगा कि उसी मीडिया का मुँह गुजरात में अडानी के पोर्ट से 3000 किलो हेरोईन के ज़ब्त होने को लेकर क्यों बंद है? क्या इसलिए कि अडानी प्रधानमंत्री के मित्र हैं और फंडर/ख़ज़ांची भी?

आर्यन हिंदी फ़िल्म जगत के सबसे ख्याति प्राप्त शख़्सियत शाहरुख़ खान के बेटे हैं – इस वजह से निश्चित ही उन्हें कोई विशेष उपकार नहीं मिलना चाहिए. पर उतना ही निश्चित है कि इस वजह से उन्हें अन्यायपूर्ण तरीक़े से बिना सबूत के आरोपी भी नहीं बनाया जाना चाहिए. भारत के लोकतांत्रिक जनमानस में ये सवाल आज उठ रहा है कि क्या आर्यन के बहाने उनके पिता शाहरुख़ को निशाना बनाया जा रहा है – क्योंकि ‘उनका नाम खान है” और वे देश और दुनिया में करोड़ों के दिल में राज करते हैं? क्योंकि फ़िल्म जगत के कई अन्य अदाकारों से उलट, उन्होंने तानाशाहों के आगे सिर नहीं झुकाया, पी एम या होम मिनिस्टर के साथ सेल्फ़ी लेकर उनका तुष्टिकरण नहीं किया? क्योंकि पूछे जाने पर उन्होंने साफ़ कहा कि हाँ, भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है?

हम आर्यन को “शाहरुख़ का बेटा” नहीं, चाहे तो भारत के आम नागरिक का युवा बेटा ही ही मान लें. किसी आम नागरिक को राजनीति के खेल में प्यादा बनाकर बिना सबूत गिरफ़्तार कर जेल में अनिश्चितकाल के लिए मनमाने तरीक़े से रखा जा रहा है. हम में से हरेक को खुद से पूछना होगा कि आज अगर हम चुप रहे तो क्या कल यही हाल हमारे साथ या हमारे बच्चों के साथ नहीं होगा? बग़ल घर में आग लगी और हमने बुझाने में साथ नहीं दिया – तो लपटें कल हमारे आपके घर तक भी ज़रूर पहुँचेंगी. आर्यन खान के साथ नाइंसाफ़ी उसके या उसके परिवार की निजी समस्या नहीं है – यह पूरे देश के हर लोकतंत्र पसंद नागरिक की समस्या है, क्योंकि ये आम नागरिक के संवैधानिक हक़ छीने जाने का मसला है. आज अगर उठे नहीं तो कल बहुत देर हो चुकी होगी.

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