छठ पूजा, जिसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आस्था से जुड़ा हुआ पर्व है। यह चार दिनों तक चलने वाला पर्व देवी छठी माता और सूर्यदेव की पूजा-अर्चना के साथ भक्तों की आस्था का प्रतीक है। इस पर्व के साथ राजा प्रियव्रत की एक प्राचीन पौराणिक कथा भी जुड़ी है, जिसमें बताया गया है कि छठ पूजा करने से उनके मृत पुत्र को नया जीवन मिला था। इस कथा के अनुसार, पष्ठी व्रत का पालन कर विधिपूर्वक छठी माता की पूजा करने से राजा प्रियव्रत के पुत्र का पुनर्जन्म हुआ था, जिसने इस व्रत की शक्ति और महत्ता को सिद्ध किया।
पौराणिक कथाओं में छठ पूजा का उल्लेख
रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी छठ पूजा का जिक्र मिलता है। त्रेतायुग में माता सीता ने और द्वापर युग में द्रौपदी ने इस व्रत का पालन करते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया था। यह परंपरा तब से लेकर आज तक हर वर्ष करोड़ों भक्तों द्वारा निभाई जाती है, जो इस पर्व को आस्था, श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
छठ पूजा का चार दिवसीय अनुष्ठान
दिवाली के छः दिन बाद छठ पूजा का पर्व आरंभ होता है। इस वर्ष छठ पूजा 5 नवम्बर को नहाय-खाय से शुरू होगी। नहाय-खाय से शुभारंभ होते ही भक्त चार दिनों तक व्रत और पूजा-अर्चना करते हैं। पर्व के चार दिन इस प्रकार होते हैं: नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और प्रात:कालीन अर्घ्य। अंतिम दिन यानी 8 नवम्बर को भक्तगण सूर्य को प्रात:कालीन अर्घ्य देकर पर्व का समापन करेंगे।
भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह लोगों को प्रकृति के साथ जोड़ता है। इस पर्व में पानी, सूरज और व्रत का अनोखा संयोजन है, जो जीवन में संयम, पवित्रता और प्रकृति के प्रति आस्था को दर्शाता है। भक्तजन पूरे समर्पण के साथ नदी या तालाब में खड़े होकर सूरज को अर्घ्य देते हैं, जिससे समाज में एकता, सहयोग और सांस्कृतिक समृद्धि की भावना प्रकट होती है।
छठ पूजा का यह पर्व समाज को आस्था, आत्म-संयम और सहयोग का संदेश देता है, जो हमारी संस्कृति की अनमोल धरोहर है।
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