शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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अडानी पावर के ठेका मजदूरों का अनिश्चितकालीन धरना: मांगों पर अड़े प्रबंधन के खिलाफ एकजुट संघर्ष!

रायपुर (पब्लिक फोरम)। अडानी पावर प्राइवेट लिमिटेड, रायखेडा, रायपुर के ठेका मजदूरों ने 10 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। वे कंपनी के गेट के सामने धरना पर बैठे हैं, अपनी मांगों के समर्थन में। इस आंदोलन को ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) और छत्तीसगढ़ किसान महासभा का समर्थन मिला है। छत्तीसगढ़ किसान महासभा रायपुर के संयोजक और ऐक्टू के राज्य उपाध्यक्ष, कामरेड नरोत्तम शर्मा ने मजदूरों की हड़ताल के लिए कंपनी के अड़ियल और सामंती रवैये को जिम्मेदार ठहराया है।

मांगों के साथ संघर्ष
प्रेस विज्ञप्ति में कामरेड नरोत्तम शर्मा ने बताया कि कुछ दिन पहले, 7 मजदूर साथियों ने हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी लागू करवाने की मांग की थी। इस सिलसिले में वे प्रबंधक से मिलने गए, लेकिन प्रबंधक ने बातचीत के बजाय उनसे माफी की मांग की। माफी न मांगने पर सातों मजदूरों को काम से निकाल दिया गया। मजदूरों ने कई बार प्रबंधन से संवाद की कोशिश की, लेकिन हर बार प्रबंधन ने अपनी जिद्द जारी रखी। मजबूर होकर मजदूर साथियों के निष्कासन को रद्द करने, निष्कासित दिनों का वेतन देने और ठेका प्रथा खत्म कर मजदूरों को सीधे कंपनी में नियुक्ति देने की मांग को लेकर हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ा। इसके अलावा, प्रभावित परिवारों के लिए सर्वसुविधायुक्त अस्पताल और बच्चों के लिए अंग्रेजी माध्यम स्कूल की मांग भी उठाई गई है। मजदूरों का कहना है कि कंपनी में उन्हें मात्र 400 रुपए में 12 घंटे काम करना पड़ता है, और स्थायी काम को भी ठेकेदारों के माध्यम से कराया जा रहा है। न तो कोई आकस्मिक छुट्टी है, न आपातकालीन सुविधा।

श्रम कानूनों में बदलाव पर नाराजगी
कामरेड शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने सारे श्रम कानूनों को हटाकर चार श्रम संहिताओं को लागू कर दिया है, जिससे मजदूरों को कंपनियों का गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने प्रशासन और राज्य सरकार द्वारा मजदूरों की मांगों की अनदेखी की निंदा की। उन्होंने कहा कि सरकार की मजदूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करना ही मजदूरों को कंपनी की गुलामी से मुक्ति दिला सकता है।

इस पूरे प्रकरण में मजदूरों की मांगें न केवल न्यायोचित हैं, बल्कि उनके हक की बात भी करती हैं। न्यूनतम मजदूरी की मांग, निष्कासित मजदूरों की पुनर्नियुक्ति, और ठेका प्रथा को खत्म करना, सभी ऐसी मांगें हैं जो श्रमिक अधिकारों के संरक्षण के लिए अनिवार्य हैं। कंपनी का प्रबंधन जिस तरह से संवाद के बजाय दमन की नीति अपना रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। वहीं, सरकार और प्रशासन की बेरुखी से मजदूरों की समस्याओं का समाधान और कठिन होता जा रहा है। श्रम कानूनों में बदलाव से मजदूरों के हितों पर प्रतिकूल असर पड़ा है, जिससे श्रमिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सरकार को इस स्थिति पर गंभीरता से विचार कर मजदूरों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।
मजदूरों के संघर्ष की यह लड़ाई केवल उनके अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि न्याय और मानवता की बुनियादी समझ की भी मांग करती है। इसे देखकर यह समझ आता है कि जब तक मजदूर एकजुट नहीं होंगे, तब तक उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिशें होती रहेंगी।

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