कोरबा (पब्लिक फोरम। कोरबा जिले में पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा पुनः गरमाने लगा है। छत्तीसगढ़ का औद्योगिक जिला कोरबा जो कि छत्तीसगढ़ शासन को सबसे ज्यादा राज्य से उपलब्ध कराता है लेकिन जिले के जनसामान्य की समस्याओं का निराकरण करने के सवाल पर शासन प्रशासन दोनों फिसड्डी साबित हो रहे हैं और लोगों का आक्रोश अब आंदोलन के रूप में लगातार सड़कों पर दिखने लगा है जो कि जिले के औद्योगिक भविष्य के लिए अच्छी खबर तो बिल्कुल भी नहीं है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (ए.आई.आई.एम.एस.) के प्रमुख डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि लंबे समय से उच्च प्रदूषण के स्तर में बने रहने के कारण प्रदूषित क्षेत्र के निवासियों का जीवन काल के कम हो जाने तथा इस प्रकार के खतरनाक प्रदूषण से कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी होने की संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किया जा सकता।
लंबे समय से प्रदूषण की मार झेल रहे जिले में अत्यधिक प्रदूषण के चलते औद्योगिक क्षेत्र की लगभग 13 प्रतिशत आबादी दमा और ब्रांकाइटिस से ग्रसित हो चला है और इन दोनों बीमारियों का प्रतिशत लगभग 5.48 दर्ज किया गया है। जिले के कोयले की खदानों तथा कोयले की ईंधन से चलने वाले संयंत्रों जैसे पॉवर प्लांट, एल्यूमिनियम तथा अन्य औद्योगिक इकाइयों की वजह से कोरबा वर्तमान में एक भयावह स्तर तक प्रदूषित हो चला है।
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