मंगलवार, दिसम्बर 3, 2024
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जय भीम: लाल झंडे को कैसे छिपाया जा सकता है?

” जय भीम फिल्म के निर्देशक टीजे ज्ञानवेल के साथ साक्षात्कार “

09 भाषाओं में प्रदर्शित की जा रही फिल्म “जयभीम” में कम्युनिस्ट पार्टी का झंडा देखकर समाज के कुछ लोग काफी परेशान हैं। तमिलनाडु में भी कम्युनिस्ट विरोधी और दलित विरोधी लोगों ने इस पर सवाल उठाए हैं। इस पर फिल्म के निर्देशक टीजे ज्ञानवेल ने जवाब दिया, “केवल कम्युनिस्ट पार्टिया ही आंदोलन करती है, फिर लाल झंडा कैसे छिपाया जा सकता है?”

फिल्म ने तमिलनाडु में जातिगत भेदभाव और इसके खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा छेड़े गए ऐतिहासिक संघर्षों पर एक सक्रिय चर्चा करते है. ताजा खबर यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी के अनुरोध पर फिल्म के नायक सूर्या ने राजा कान्नु, जिसे तमिल नाडु पुलिस ने लॉकअप में पीट कर मार डाला गया था, की पत्नी पार्वती अम्माल (फिल्म में सेंकनी ) की मदद करने के लिए 15 लाख रुपये का चेक कम्युनिस्ट नेता बालकृष्णन और पीबी सदस्य जी रामकृष्णन की मौजूदगी में पार्वती अम्माल को सौंपा। अब देखिए फिल्म के डायरेक्टर के साथ साक्षात्कार।

* सवाल: लाल झंडा और कम्युनिस्टो के प्रदर्शन और संघर्ष तमिल फिल्मों में दुर्लभ हैं। आपके फिल्म में लाल झंडा कैसे आये?
* जवाब: कम्युनिस्ट पार्टी शुरू से अंत तक राजा कान्नु की हत्या के पीड़ितों के साथ खड़ी रही, इसलिए चीजें ईमानदारी से पेश होनी चाहिए, कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता और न ही उसकी उपेक्षा की जा सकती है। मुकदमे के अधिवक्ता चंद्रू को जब पेश करते है उनको समर्थन कम्युनिस्ट पार्टी का है यह जानना जरूरी है, वह एसएफआई के संस्थापक नेताओं में से एक हैं। वह कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे और उन्हें पार्टी का समर्थन प्राप्त हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह एक सिद्ध कम्युनिस्ट है !

पूरी फिल्म में लाल झंडे और नेताओं के चित्र शामिल करना फिल्म का एक अनिवार्य घटक है, पार्वती अम्माल को न्याय दिलाने के लिए पार्टी का संघर्ष कैसे छिपाया जा सकता है? मार्क्स, लेनिन और अम्बेडकर की मूर्तियों और चित्रों का उपयोग किया गया है। कोर्ट सीन में जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर की तस्वीर है, वह भी एक कम्युनिस्ट थे. तमिलनाडु में जहां कहीं भी आदिवासियों और दलितों पर अत्याचार किया जाता है और मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, केवल कम्युनिस्ट पार्टियो ने ही आंदोलन किया है। मैंने ऐसा संघर्ष देखा है। यह जिला स्तरीय संघर्ष था जिस पर फिल्म की कहानी बनी है। मैं पार्टी के नेताओं और आदिवासियों की भागीदारी और न्याय के लिए उनके संघर्ष से प्रभावित था। तब तय किया गया था आदिवासियों और दलितों के पृष्टभूमि में एक फिल्म बनाना है. वकील चंद्रू, शेनकिनी और मैथरा लापता लोगों की तलाश में मून्नार पहुंचते हैं. इन वर्गों के लिए कम्युनिस्ट पार्टियो की भूमिका दिखाने के लिए चुनाव जैसा माहौल बनाया गया था। उन लोगों का उल्लेख नहीं करना असंभव है जो लोगों के लिए जीते हैं।

* सवाल: क्या सेंसर बोर्ड आपत्ति की थी?

* जवाब: सेंसर बोर्ड भी यह महसूस करते हुए फिल्म से एप्रोच किया कि सच्ची घटना के बारे में बात करते वक्त कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

* सवाल: कहानी के साथ संपर्क करने पर सूर्या की प्रतिक्रिया क्या थी?

* जवाब: कहानी सुनाना शुरू किया और पांच मिनट के अंदर वह फिल्म बनाने और अभिनय करने के लिए तैयार हो गया। यह एक बड़ी मान्यता थी। बाद में जब मैंने पूरी कहानी पढ़ी तो रोमांचित हो उठा।

* सवाल: क्या आपने सोचा था कि फिल्म हिट होगी?

* जवाब: इसके सफल होने की उम्मीद थी। यह सभी नौ भाषाओं में बहुत हिट हुई और सोशल मीडिया पर धूम मचा दी।

* सवाल: अभिनेताओं के लिए प्रशिक्षण सहित तैयारी कैसी थी?

* जवाब: चूंकि यह वास्तविक घटना से संबंधित था इसलिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जाना था. अभिनेताओं का प्रशिक्षण कई दिनों तक चला। प्रशिक्षक जिजॉय राजगोपाल थे, जो पुणे फिल्म संस्थान में मलयाली शिक्षक थे। उन्होंने मुन्नार में गुमटीशॉप के मालिक के रूप में अभिनय किया है।

* सवाल: क्या एक पत्रकार के रूप में आपके अनुभव ने मदद की?

* जवाब: आनंदविकाडन (एक तमिल मैगज़ीन) में पत्रकारिता का अनुभव शुरू से ही रहा है। हम, आदिवासियों के उत्पीड़न और इसके खिलाफ कम्युनिस्टों के संघर्ष और अन्य आंदोलनों को देखने और रिपोर्ट करने जाते थे । राजा कान्नु और उनके परिवार पर जो अत्याचार हुआ है उसका सिर्फ 40 फीसदी हिस्सा ही फिल्म में है. इस तरह की और भी कई कहानियां हैं।

* सवाल: यह मामला आपके संज्ञान में कैसे आया?
* जवाब: न्यायमूर्ति चंद्रू जब एक वकील था तब उनके साथ किये एक साक्षात्कार में राजा कान्नु के मामले का उल्लेख किया गया था। यह मेरे दिमाग में अटक गया। सिनेमा में आने में 15 साल लग गए। इसके लिए तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की। दलित-आदिवासी महिलाओं और युवा नेताओं से मिलकर अनुभव प्राप्त किया। (मलयालम से अनुवादित) कुन्दन राज से साभार।

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