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मंगलवार, अक्टूबर 14, 2025
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मध्य प्रदेश और राजस्थान में ज़हरीली कफ़ सिरप का क़हर, 18 बच्चों की मौत; व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल

मध्य प्रदेश और राजस्थान में सरकारी दवा के रूप में दिए गए ज़हरीले कफ़ सिरप ने कम से कम 18 मासूमों की जान ले ली है, जिससे देश भर में शोक और आक्रोश की लहर है। ये मौतें किसी बीमारी से नहीं, बल्कि उस दवा से हुईं जिसे उनकी रक्षा करनी थी। इस त्रासदी ने भारत की दवा नियामक प्रणाली और सरकारी स्वास्थ्य सेवा की गंभीर खामियों को एक बार फिर उजागर कर दिया है।

मासूमों की मौत का तांडव और सरकारी लापरवाही

पिछले कुछ हफ्तों में, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और आस-पास के इलाकों में 16 और राजस्थान में 2 बच्चों की मौत की ख़बर ने सबको झकझोर दिया है। इन सभी बच्चों को खांसी-जुकाम की शिकायत थी, जिसके बाद उन्हें “कोल्ड्रिफ़” (Coldrif) नामक कफ़ सिरप दिया गया था। दवा लेने के बाद बच्चों की हालत बिगड़ने लगी, उन्हें पेशाब आना बंद हो गया और जांच में पता चला कि उनकी किडनी फेल हो गई है।

ज़हर का नाम: डायएथिलीन ग्लाइकॉल

इस त्रासदी का मुख्य विलेन “डायएथिलीन ग्लाइकॉल” (Diethylene Glycol – DEG) नामक एक ज़हरीला रसायन है, जो औद्योगिक सॉल्वैंट्स में इस्तेमाल होता है। तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित श्रीसन फार्मास्युटिकल्स (Shreesan Pharmaceuticals) द्वारा निर्मित कोल्ड्रिफ़ कफ़ सिरप के नमूनों की जांच में डीईजी की मात्रा 48.6% पाई गई, जो कि किसी भी दवा के लिए जानलेवा है। यह रसायन शरीर में जाते ही किडनी को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देता है, जिससे मौत हो जाती है।

प्रशासन की नींद और सवालों का घेरा

यह घटना सरकारी तंत्र की कई परतों पर विफलता को दर्शाती है:-
नियामक विफलता: सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी ज़हरीली दवा बिना किसी गुणवत्ता जांच के सरकारी अस्पतालों और दवा की दुकानों तक कैसे पहुंच गई? केंद्रीय और राज्य दवा मानक नियंत्रण संगठनों की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गए हैं।
प्रशासनिक उदासीनता: रिपोर्ट्स के अनुसार, तमिलनाडु के ड्रग रेगुलेटर ने इस दवा को पहले ही “घातक” घोषित कर दिया था, लेकिन केंद्रीय एजेंसियों द्वारा समय पर कार्रवाई न करने से यह ज़हरीली खेप मध्य प्रदेश और राजस्थान पहुंच गई।
स्थानीय स्तर पर लापरवाही: छिंदवाड़ा में एक सरकारी डॉक्टर, प्रवीण सोनी, पर आरोप है कि उन्होंने अपने निजी क्लिनिक में कई बच्चों को यही सिरप दिया था। उन्हें लापरवाही के आरोप में निलंबित और गिरफ्तार कर लिया गया है।

परिवारों का दर्द: “इलाज के लिए ज़मीन तक गिरवी रख दी”

इस त्रासदी ने कई परिवारों को हमेशा के लिए तोड़ दिया है। बैतूल के एक पिता कैलाश यादव ने अपने 3 साल के बेटे कबीर को खो दिया। उन्होंने नम आंखों से बताया, “बच्चे को सर्दी-खांसी थी… डॉक्टर ने कोल्ड्रिफ़ सिरप दिया, जिसके बाद उसकी हालत बिगड़ गई। हमने उसे बचाने के लिए अपनी ज़मीन तक गिरवी रख दी, लेकिन उसे नहीं बचा सके।” ऐसे कई और माता-पिता हैं जिन्होंने अपने बच्चों के साथ-साथ अपनी जमा-पूंजी भी खो दी है।

सरकार की प्रतिक्रिया और उठाए गए कदम

घटना के सामने आने के बाद कई राज्यों में हड़कंप मच गया है।
बिक्री पर रोक: मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों ने कोल्ड्रिफ़ कफ़ सिरप की बिक्री और वितरण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
जांच और कार्रवाई: निर्माता कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है और मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया है। केंद्र सरकार ने भी देशभर में 19 दवा निर्माण इकाइयों के निरीक्षण का आदेश दिया है।
मुआवज़ा: मध्य प्रदेश सरकार ने पीड़ित परिवारों को 4-4 लाख रुपये की मुआवज़ा राशि देने की घोषणा की है।

एक बड़ा संकट: बार-बार क्यों हो रही हैं ऐसी घटनाएं?

यह पहली बार नहीं है जब भारत में बनी कफ़ सिरप से बच्चों की मौत हुई है। 2022 में गाम्बिया और उज़्बेकिस्तान में भी भारतीय कफ़ सिरप से कई बच्चों की जान चली गई थी। ये घटनाएं भारत की “दुनिया की फार्मेसी” की छवि पर एक गहरा धब्बा हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि दवा निर्माण में लागत बचाने के लिए कंपनियां अक्सर सस्ते और खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल करती हैं, और नियामक ढांचा उन्हें पकड़ने में नाकाम रहता है।

यह त्रासदी केवल कुछ अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा नहीं है, बल्कि यह उस पूरी व्यवस्था की विफलता है जिसे हमारे बच्चों के जीवन की रक्षा करनी चाहिए। जब तक दवा की गुणवत्ता को लेकर शून्य-सहिष्णुता की नीति नहीं अपनाई जाती और दोषियों को कठोरतम सज़ा नहीं दी जाती, तब तक हमारे नौनिहाल इस तरह के ज़हर का शिकार होते रहेंगे। सवाल यह है कि क्या सत्ता में बैठे लोग इन मासूम चीखों को सुनेंगे या वे चुनावी वादों के शोर में दबकर रह जाएंगी?
(आलेख : प्रदीप शुक्ल)

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