मंगलवार, दिसम्बर 3, 2024
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शहादत से राष्ट्र-हित साध्य नहीं होती: RSS के गुरु गोलवलकर ने कहा था

शहीदों के प्रति इससे ज्यादा अपमान और क्या हो सकता है?

अंडमान की सैलुलर जेल से सावरकर ने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार को मांफी की दो प्रार्थनाएं भेजी थी।उक्त प्रार्थना में सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत को भरोसा दिलाया था कि:-

“ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसके दिल में भारत का तथा मानवता का भला हो, अब आंखे बंद करके उस कांटा भरे पथ पर नहीं चलेगा, जिसने 1906-1907 के भारत के विक्षुब्ध तथा हताशाभरे हालात में हमें, शांति व प्रगति के रास्ते से बहका लिया था।

इसलिए, अगर सरकार अपनी बहुमुखी कृपाशीलता तथा दया से मुझे रिहा कर देती है,तो मैं संवैधानिक प्रगति का और ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी का,जोकि इस प्रगति की सबसे बड़ा शर्त है,पक्का पैरोकार हुए नही रह सकता हूँ ।”

इस प्रार्थना में उन्होंने आगे यह भी लिखा है था:-
“मैं एतदद्वारा स्वीकार करता हूं कि मेरे मुकदमें की निष्पक्ष सुनवाई हुई है और न्यायसंगत सजा दी गई हैं।उन गुजरे हुए दिनों में हिंसा के जिन तरीकों का उपयोग किया गया था,मैं उनसे हार्दिक घृणा करता हूं और मैं यह महसूस करता हूं कि मेरा यह कर्तव्य है कि ब्रिटिश कानून तथा संविधान को अपनी सारी शक्ति से कायम रखें और मैं सुधारों को,जिस हद तक मुझे भविष्य में ऐसा करने की इजाजत दी जाएगी,सफल बनाने के लिए तैयार हूं।”

अपनी रिहाई की शर्तों का वफादारी से पालन करते हुए ‘वीर’ सावरकर ने इसके बाद किसी भी ब्रिटिश-विरोधी आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया ।वास्तव मे वह इस रिहाई के फौरन बाद ब्रिटिश शासन की सेवा में जुट गए।

इसमें अचरज की कोई बात नहीं थी ।वह तो हमेशा से ही भारतीय राष्ट्रवाद का नहीं बल्कि हिन्दुत्व का, हिन्दू सांप्रदायिक का पाठ पढ़ाते आए थे।

सावरकर ही नहीं आजादी के आंदोलन में शहीदों के प्रति आर.एस.एस.के नजरिए गुरू गोलवलकर के इस कथन से स्पष्ट होती हैः-

“अंग्रेजों के प्रति क्रोध के कारण अनेकों ने अद्भुत कारनामें किये।हमारे मन में भी एकाध बार विचार आ सकता है कि हम भी वैसा ही करें।वैसा अद्भुत कार्य करने वाले नि:संदेह आदरणीय हैं।उसमें व्यक्ति की तेजस्विता प्रकट होती है।स्वातंत्रय प्राप्ति के लिए शहीद होने की सिद्धता झलकती हैं।परन्तु सोचना चाहिए कि उससे (अर्थात शहादत से) संपूर्ण राष्ट्रहित साध्य होता है क्या? बलिदान(शहादत)के कारण पूरे समाज में राष्ट्र हितार्थ सर्वस्वार्पण करने की तेजस्वी व तिलग्न नहीं होता हैं।अब तक का अनुभव है कि वह हृदय की अंगारे सर्व साधारण को असहनीय होती हैं।”

उनके उपरोक्त कथन के अनुसार शहादत से राष्ट्रहित साध्य नहीं होती और शहादत जनता के लिए असहनीय हैं। शहीदों के प्रति अपमान इससे अधिक और क्या हो सकता हैं? (आलेख : सुख रंजन नंदी)

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