back to top
रविवार, जुलाई 27, 2025
होमUncategorisedडिफेंस कर्मचारियों के हड़ताल के अधिकार को खत्म करने के लिए मोदी...

डिफेंस कर्मचारियों के हड़ताल के अधिकार को खत्म करने के लिए मोदी सरकार द्वारा लाए गए फासीवादी अध्यादेश का ऐक्टू ने किया विरोध

” इसे फौरन वापस लेने की मांग करते हुए मजदूर वर्ग के संगठित प्रतिरोध का किया आव्हान “

एक चरम दमनकारी कदम उठाते हुए, भारत के राष्ट्रपति ने 30 जून को, ”इसेंशियल डिफेंस सर्विसेज़, अध्यादेश 2021” (आवश्यक सुरक्षा सेवा अध्यादेश, 2021) की घोषणा की है और इसके द्वारा किसी भी ऐसे ”प्रतिष्ठान में जहां सुरक्षा से संबंध रखने वाले किसी भी तरह के सामान या उपकरणों का उत्पादन होता हो”, या ”जो संघ की सशस्त्र सेना से संबंधित हो, या सुरक्षा से संबंधित कोई अन्य प्रतिष्ठान या कोई स्थापना हो वहां, ”हड़ताल” पर रोक लगा दी गई है।

यह दमनकारी अध्यादेश इसलिए लाया गया है ताकि डिफेंस सेक्टर में 26 जुलाई से कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन देशव्यापी हड़ताल को रोका जा सके जिसका आहृान यहां के ज्वाइंट एक्शन फोरम ऑफ डिफेंस फेडरेशनस् ने किया है. इस फोरम में एआईडीईएफ, आईएनडीडब्ल्यूएफ, बीपीडब्ल्यूएस, एनपीडीईएफ, एआईबीडीईएफ और सीएडीआरए शामिल हैं. ये हड़ताल केन्द्र सरकार की देश के डिफेंस सेक्टर के कोरपोरेटीकरण/निजीकरण के फैसले के विरोध में है. ”आवश्यक सुरक्षा सेवाओं की हिफाजत और देश एवं जनता के जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा के लियेे” के बहाने से इस अध्यादेश को ”तत्काल” प्रभाव से लागू किया गया है. तो, ऐसा बहाना इस अध्यादेश को फौरन लागू करने का बनाया गया है.

यह अध्यादेश सिर्फ हड़ताल पर ही रोक नहीं लगाता, बल्कि हर तरह के विरोध पर रोक लगाता है और आईआर (औद्योगिक संबंध) कोड के अनुच्छेद 2 (जेड के) की परिभाषा से भी आगे तक बढ़ा देता है, जिसे केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के विरोध के वावजूद संसद में पास किया जा चुका है. यह अध्यादेश हड़ताल को सिर्फ ”काम रोकने” तक ही परिभाषित नहीं करता, बल्कि, ”धीरे काम करना, धरना देना, घेराव, टोकन हड़ताल और मास कैजुअल लीव” को, और यहां तक कि, ”ओवरटाइम से इन्कार करने या कोई अन्य व्यवहार जो आवश्यक सुरक्षा सेवा के काम में बाधा हो या गतिरोध आता हो, या काम रुकता हो” को भी ”ग़ैरकानूनी हड़ताल” के दायरे के अंदर ला दिया गया है.

इस हड़ताल को तोड़ने के लिए पुलिस को अंधाधुंध शक्तियां दे दी गई हैं, और अनुच्छेद 11 पुलिस ऑफिसर को लाइसेंस देता कि वो, ”इस अध्यादेश के अंतर्गत किसी भी तरह के अपराध का समुचित शक होने पर किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है”.

इसके अलावा इस अत्याचारी अध्यादेश ने अफसरों को पूरा अधिकार दे दिया है और क्लाॅस 15 कहता है कि इस अध्यादेश को लागू करने पर, ”केन्द्र सरकार या किसी अन्य अफसर के खिलाफ कोई मुकद्मा, या अभियोग या कोई अन्य कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।"

मोदी सरकार का यह काॅरपोरेट-परस्त, मजदूर-विरोधी अध्यादेश हिटलर की नाजी नीतियों की याद दिलाता है. यह अध्यादेश साफ तौर पर सैन्य-औद्योगिक समूह बनाने के उद्देश्य से लाया गया है।

ऐक्टू छत्तीसगढ़ के महासचिव कॉमरेड सीबृजेंद्र तिवारी ने कहा है कि हमारे संविधान में प्रतिष्ठापित लोकतांत्रित अधिकारों का हनन मोदी सरकार के फासीवादी शासन का नग्न कार्य है जिसका पूरे देश में मजदूर वर्ग के संगठित आंदोलन के एकजुट प्रतिरोध द्वारा विरोध होना चाहिये।

ऐक्टू डिफेंस कर्मियों का एकजुट होकर जुझारू संघर्ष खड़ा करने का आहृान करता है।

50 साल की सेवा, फिर भी न कर्मचारी का दर्जा, न...

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का हक और उनका संघर्ष: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन रायपुर/नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। देशभर में कार्यरत करीब 27...
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments