नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित केते कोल परियोजना के विस्तार पर गंभीर चिंता जताते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद बृंदा करात ने केंद्र सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर इस परियोजना को दी गई मंजूरी को रद्द करने का आग्रह किया है।
अपने पत्र में, बृंदा करात ने इस बात पर जोर दिया है कि यह मंजूरी न केवल स्थानीय ग्राम सभाओं की राय की अवहेलना है, बल्कि यह संविधान और कानूनी प्रावधानों का भी उल्लंघन करती है। उन्होंने बताया कि स्थानीय समुदायों द्वारा सरकार को 1500 से अधिक लिखित आपत्तियां सौंपे जाने के बावजूद, उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।
पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव की आशंका
माकपा नेता ने आगाह किया है कि इस वन क्षेत्र में पहले से ही ओपन कास्ट माइनिंग के कारण हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं, जिससे जल और भूमि गंभीर रूप से प्रदूषित हो गए हैं। परियोजना के विस्तार से स्थिति और भयावह हो जाएगी, क्योंकि इसके तहत 1742 हेक्टेयर घने वन क्षेत्र में मौजूद लगभग 4.5 लाख पेड़ों को काटने की योजना है। यह क्षेत्र कार्बन अवशोषण के लिए महत्वपूर्ण देशी पेड़ों से समृद्ध है। इस विनाशकारी कदम से न केवल परियोजना क्षेत्र, बल्कि आसपास के कई अन्य गांव भी बुरी तरह प्रभावित होंगे।
‘जनहित’ पर उठे सवाल, निजी लाभ का आरोप
बृंदा करात ने परियोजना को मंजूरी देने के पीछे ‘जनहित’ के दावे पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने बताया कि यह परियोजना राजस्थान सरकार के स्वामित्व वाली एक बिजली कंपनी को आवंटित की गई है, जिसने अडानी एंटरप्राइजेज के साथ एक संयुक्त उद्यम बनाया है, जिसमें अडानी की 74% हिस्सेदारी है। इस कंपनी को हसदेव-परसा कोयला परियोजना के खनन विकास संचालक (एमडीओ) के रूप में नियुक्त किया गया था। करात ने दस्तावेजी सबूतों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि खनन किए गए कोयले का एक बड़ा हिस्सा ‘अस्वीकृत कोयला’ के रूप में वर्गीकृत कर निजी बिजली कंपनियों को बेचा गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह परियोजना जनहित की आड़ में केवल निजी मुनाफे के लिए चलाई जा रही है।
वन अधिकार अधिनियम और आदिवासियों की भूमिका
करात ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपे केंद्रीय मंत्री के उस बयान की भी आलोचना की, जिसमें कहा गया था कि वन अधिकार अधिनियम के कारण वन नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि असलियत यह है कि ‘विकास’ के नाम पर निजी खनन परियोजनाओं के कारण हमारे जंगल नष्ट हो रहे हैं और उन्हें कॉर्पोरेट हितों से बचाने के लिए कड़े संरक्षण उपायों की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने हसदेव क्षेत्र के आदिवासियों के संघर्ष की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने एक बार फिर पेड़ों और प्रकृति के विनाश का विरोध करके यह साबित कर दिया है कि वे ही भारत के वनों के सच्चे संरक्षक हैं।

अंत में, बृंदा करात ने केंद्रीय मंत्री से आग्रह किया कि वे निजी कंपनी के हितों की पूर्ति करने के बजाय वनों की अंधाधुंध कटाई और इस समृद्ध जैव-विविधता वाले क्षेत्र के विनाश को रोकने के लिए निर्णायक कदम उठाएं।
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