कोरबा (पब्लिक फोरम)। जिले के बालको क्षेत्र में वेदांता समूह के बालको संयंत्र पर वायु एवं जल प्रदूषण को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं। पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने इस संबंध में कोरबा कलेक्टर को एक विस्तृत पत्र लिखा है, जिसमें बालको प्रबंधन द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के दिशानिर्देशों की लगातार अवहेलना करने और इससे आस-पास के गांवों जैसे रुकबहरी, नेहरूनगर, परसाभांठा और बेलगरी बस्ती में रहने वाले लगभग 30 से 35 हजार लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों पर चिंता व्यक्त की गई है। अग्रवाल ने कलेक्टर से बालको प्रबंधन की मनमानी कार्यशैली की गहन जांच और जनहित में कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करने की मांग की है। इस पत्र की प्रतिलिपि प्रदेश के मुख्य सचिव और क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी को भी भेजी गई है।
नियमों की अनदेखी और अतिक्रमण का आरोप
जयसिंह अग्रवाल ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि वेदांता समूह द्वारा बालको संयंत्र का प्रबंधन संभालने के बाद से ही हर क्षेत्र में नियम विरुद्ध कार्यप्रणाली अपनाई जा रही है, जिसके संबंध में पहले भी जन प्रतिनिधियों द्वारा संबंधित विभागों को सूचित किया जा चुका है। पत्र में एक विशेष घटना का जिक्र है, जिसमें लगभग 10 साल पहले ग्राम रुकबहरी में राखड़ बांध के किनारे वन विभाग की 5 एकड़ “लो लाइन” क्षेत्र की भूमि पर राखड़ भराव के बाद वृक्षारोपण के लिए बालको प्रबंधन ने अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त किया था। हालांकि, बाद में शासन-प्रशासन से मिलीभगत कर सरकारी दस्तावेजों में इस 5 एकड़ क्षेत्र को कपटपूर्वक 15 एकड़ दर्शाया गया। वर्तमान में, बालको द्वारा इस क्षेत्र में लगभग 25 से 30 एकड़ वन भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया गया है, जिस पर लगभग 25 से 30 मीटर ऊंचा राखड़ का पहाड़ बना दिया गया है। आरोप है कि इस राखड़ के ढेर पर न तो पानी का छिड़काव किया जाता है और न ही मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है, जिससे आंधी-तूफान आने पर पूरा क्षेत्र राखड़ के गुबार से ढक जाता है, जिससे स्थानीय निवासियों का जीवन दूभर हो गया है।
राखड़ बांधों से रिसाव और नदी प्रदूषण
पत्र में यह भी बताया गया है कि बालको वर्तमान में 1740 मेगावाट क्षमता के विद्युत संयंत्रों का संचालन कर रहा है, जिसमें भारी मात्रा में कोयले की खपत होती है और परिणामस्वरूप विशाल मात्रा में फ्लाई ऐश का उत्सर्जन होता है। इस फ्लाई ऐश का एक बड़ा हिस्सा स्लरी के रूप में पाइपलाइन के माध्यम से ऐश डाइक (राखड़ बांध) में जमा किया जाता है। मौजूदा ऐश डाइक की क्षमता पूरी होने के बाद, तटबंधों की ऊंचाई लगातार बढ़ाई जा रही है। मानसून के दौरान भारी बारिश होने पर कई बार ये तटबंध टूट जाते हैं, जिससे लाखों टन राखड़ पानी के साथ बेलगरी नाला में प्रवाहित हो जाता है, और अंततः हसदेव नदी में मिलकर उसे बुरी तरह प्रदूषित करता है।
जयसिंह अग्रवाल ने बालको प्रबंधन पर दिखावा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि बेलगरी नाला के पास राखड़ बांध से रिसाव हो रहे पानी को इकट्ठा करने के लिए कंक्रीट की बड़ी टंकियां बनाई गई हैं, जिन्हें रात के समय खोल दिया जाता है ताकि एकत्र हुआ पानी बेलगरी नाला में मिल जाए। सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार, जल स्रोतों से दूर राखड़ बांध के रिसाव वाले पानी को इकट्ठा करने के लिए कच्चे ट्रेंच बनाने का प्रावधान है, ताकि वह पानी जमीन में समा जाए। हालांकि, बालको प्रबंधन द्वारा इन नियमों की लगातार धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
जनस्वास्थ्य पर गंभीर खतरा
अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि बेलगरी नाला के निकट बसी नेहरूनगर, परसाभांठा और बेलगरी बस्ती के हजारों परिवार इसी दूषित पानी का उपयोग दैनिक कार्यों और पालतू पशुओं को पिलाने के लिए करते हैं। इस गंभीर रूप से दूषित पानी के सेवन से अंचल वासियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जिससे लोगों में भारी आक्रोश व्याप्त है। जयसिंह अग्रवाल ने कलेक्टर से अपील की है कि वे इस मामले से संबंधित सभी पहलुओं की गहन जांच करवाएं और बालको प्रबंधन के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें। उन्होंने यह भी अपेक्षा की है कि नियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु बालको को सख्त हिदायत दी जाएगी।
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