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सोमवार, अप्रैल 28, 2025
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वेदांता के अतिक्रमण पर बिलासपुर हाई कोर्ट ने थामा कानून का हाथ: 85 एकड़ वन भूमि पर कब्जे का मामला

बिलासपुर (पब्लिक फोरम)। बिना किसी अनुमति के जंगल काटने और वन भूमि पर अवैध कब्जे के गंभीर आरोपों में बिलासपुर उच्च न्यायालय ने वेदांता समूह की कंपनी बालको को नोटिस जारी किया है। कोरबा जिले में संचालित कंपनी पर शासकीय वन भूमि पर अतिक्रमण और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के आरोप हैं।

वन भूमि पर हुआ बड़ा अतिक्रमण

छत्तीसगढ़ के कोरबा में स्थित बालको पावर प्लांट और वेदांता प्रबंधन पर आरोप है कि उन्होंने लगभग 85 एकड़ वन भूमि पर न केवल अवैध कब्जा किया, बल्कि बिना किसी वैध अनुमति के बड़े झाड़ के जंगल का सफाया भी कर दिया गया। स्थानीय स्तर पर कई बार शिकायतें करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने पर अंततः मामला उच्च न्यायालय में पहुंचा, जहां जनहित याचिका दायर की गई।

इस गंभीर मामले में उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किया है, जिसके बाद कंपनी के खिलाफ कार्रवाई के आसार बढ़ गए हैं।

नियमों की खुली अवहेलना

उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बृजेश सिंह के अनुसार, वेदांता समूह द्वारा किया गया यह अतिक्रमण वन संरक्षण अधिनियम 1980 का खुला उल्लंघन है। कानून के मुताबिक, वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधि भारत सरकार के अनुमोदन के बिना नहीं की जा सकती।

अधिवक्ता ने बताया कि नोटिस जारी होने के बावजूद अवैध अतिक्रमण वाले स्थान पर निर्माण कार्य अभी भी जारी है, जो वेदांता समूह की मनमानी को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

पहले भी लगा था जुर्माना

जानकारी के अनुसार, पूर्व में नगर पालिक निगम कोरबा द्वारा कंपनी पर लगभग 7 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। हालांकि, वेदांता समूह ने इस जुर्माने को कहीं चुनौती नहीं दी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली थी।

पर्यावरण और वन्य जीवों को गंभीर नुकसान

अधिवक्ता ने संविधान के अनुच्छेद 48(A) और मूल कर्तव्यों के अनुच्छेद 51क(छ) का हवाला देते हुए बताया कि इनके अनुसार पर्यावरण के संरक्षण, वन और वन्य जीवों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, साथ ही प्राणी मात्र के लिए दया का भाव रखना भी आवश्यक है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े झाड़ के 85 एकड़ भूमि पर हुए अतिक्रमण से स्थानीय लोगों, वन्य जीवों और पर्यावरण को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कर पाना लगभग असंभव है।

इस मामले में अब न्यायालय की कार्रवाई पर सभी की नज़रें टिकी हैं, जबकि स्थानीय लोग और पर्यावरणविद् वन भूमि के संरक्षण की मांग कर रहे हैं।

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