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गुरूवार, सितम्बर 11, 2025
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जशपुर में पत्रकारिता पर हमला: जनसंपर्क अधिकारी ने पत्रकारों को भेजा एक-एक करोड़ का मानहानि नोटिस

जशपुर (पब्लिक फोरम)। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर एक अभूतपूर्व हमले में, जशपुर जिले के एक जनसंपर्क विभाग के अधिकारी ने स्थानीय पत्रकारों को कानूनी नोटिस भेजकर उन्हें एक-एक करोड़ रुपये के मानहानि के मुकदमे में घसीटने की धमकी दी है। इस घटना ने पूरे प्रदेश में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर एक गंभीर बहस छेड़ दी है।

क्या है पूरा मामला?
जनसंपर्क अधिकारी द्वारा भेजे गए नोटिस में आरोप लगाया गया है कि कुछ पत्रकारों द्वारा प्रकाशित की गई खबरें निराधार, भ्रामक और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली हैं। नोटिस में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि यदि पत्रकार भविष्य में इस तरह की रिपोर्टिंग जारी रखते हैं, तो उनके खिलाफ मानहानि अधिनियम 1867, दंड प्रक्रिया संहिता 1908 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के तहत कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

यही नहीं, नोटिस में यह भी कहा गया है कि अगर पत्रकार 15 दिनों के भीतर लिखित में माफी नहीं मांगते हैं, तो उन्हें अदालत में ले जाकर करोड़ों रुपये का हर्जाना वसूला जाएगा।

पत्रकारों में आक्रोश और लोकतंत्र पर चिंता
इस कानूनी धमकी के बाद जशपुर के पत्रकार समुदाय में भारी रोष है। पत्रकारों का कहना है कि यह कदम सत्ता का दुरुपयोग कर उनकी आवाज को दबाने और सच्चाई को सामने लाने से रोकने का एक प्रयास है।उन्होंने आरोप लगाया कि जिन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगते हैं, वे अब कानूनी दांव-पेंच का इस्तेमाल कर मीडिया को चुप कराना चाहते हैं। यह घटना प्रेस की स्वतंत्रता पर एक सीधा हमला है, जो लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक खतरनाक संकेत है।

क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ?
कानूनी जानकारों का मानना है कि इस तरह के मानहानि के मामले अदालत में टिकना मुश्किल होते हैं, खासकर जब पत्रकारिता तथ्यों और सबूतों पर आधारित हो। उनका कहना है कि जनसंपर्क विभाग का मुख्य कार्य सरकार और मीडिया के बीच एक सेतु का काम करना है, न कि मीडिया को धमकाना। यदि कोई अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर मीडिया पर इस तरह का आक्रामक रुख अपनाता है, तो यह न केवल उसकी विभागीय मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के भी खिलाफ है।

आगे की रणनीति: पत्रकार संगठन होंगे लामबंद
जिले के पत्रकार अब इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं। वे विभिन्न पत्रकार संगठनों के साथ मिलकर इस मामले को राज्यपाल और मुख्यमंत्री के समक्ष रखेंगे। उनकी मांग है कि इस नोटिस को तत्काल वापस लिया जाए और संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। पत्रकारों का यह एकजुट संघर्ष न केवल अपने अधिकारों के लिए है, बल्कि यह लोकतंत्र के उसूलों और जनता के सूचना के अधिकार की रक्षा के लिए भी है।

“यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मामले में क्या रुख अपनाती है। क्या वह प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए पत्रकारों को संरक्षण देगी, या फिर अधिकारियों की इस कार्यवाही को मौन स्वीकृति प्रदान करेगी? जशपुर की यह घटना छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के भविष्य और लोकतंत्र की मजबूती की दिशा तय करने में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है।”

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