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मंगलवार, दिसम्बर 2, 2025
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एकता ही ताकत: संगीत, समाज, संगठन और संघर्ष की असली शक्ति कैसे बनती है एकजुटता

मानव सभ्यता का इतिहास बताता है कि जब-जब लोग एकजुट हुए हैं, तब-तब उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया है। चाहे संगीत की दुनिया हो, सामाजिक जीवन हो, संगठन निर्माण हो या फिर किसी बड़े संघर्ष की निर्णायक घड़ी—हर जगह एकता ही वह मूल शक्ति रही है, जो दिशा भी देती है और गंतव्य भी। यही कारण है कि कहा जाता है- “संगीत, समाज, संगठन और संघर्ष की पहली और आखिरी ताकत एकता होती है।”

यह वाक्य केवल प्रेरक नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र का यथार्थ है। इसे समझने के लिए हमें उन आधारों को देखना होता है, जिन पर हमारा सामूहिक अस्तित्व टिका है।

संगीत: सुरों का विज्ञान भी एकता से ही पूर्ण
संगीत केवल आवाज़ों का मिश्रण नहीं, बल्कि सुर और ताल का सटीक संयोजन है। यदि एक भी सुर बेसुरा हो जाए, तो सारा स्वरूप बिगड़ जाता है। वाद्य हों या गायन- हार्मनी तभी बनती है जब सब एकताल हों। संगीत का सौंदर्य विविधता में एकता की सबसे परिष्कृत अभिव्यक्ति है।
एक-एक सुर मिलकर उस लय को गढ़ते हैं, जो मनुष्य के भीतर शांति, ऊर्जा और भाव जगाती है।

इसलिए संगीत यह सिखाता है कि विविधता किसी समस्या का नाम नहीं; समस्या तब पैदा होती है जब समन्वय खत्म होता है। जिस तरह सुर मिल जाते हैं, उसी तरह समाज के लोग भी अपने मतभेदों को संतुलित करके शक्ति बन सकते हैं।

समाज: विविधता के बीच सामूहिकता ही असली शक्ति
समाज अनेक वर्गों, समुदायों और विचारों का संगम है। यदि यह संगम टूट जाए, तो सामाजिक ढांचा कमजोर हो जाता है। परिवारों के बीच सहयोग, समुदायों में परस्पर विश्वास, अलग-अलग समूहों के बीच संवाद – इन्हीं आधारों पर समाज मजबूत होता है।

इतिहास में कई बार देखा गया है कि जब भी सामाजिक एकता कमजोर पड़ी है, तब बाहरी ताकतों ने उसका फायदा उठाया है- चाहे आर्थिक शोषण हो, राजनीतिक नियंत्रण हो या सांस्कृतिक विघटन। इसके उलट जब समाज एक साथ खड़ा होता है, तब वह न केवल अपने अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी बेहतर रास्ते बनाता है। एकता का अर्थ समानता नहीं; इसका अर्थ है- सम्मान, समन्वय और साझा जिम्मेदारी।

संगठन: एकता के बिना केवल ढांचा, एकता के साथ वास्तविक शक्ति
किसी भी संगठन—चाहे यूनियन हो, सामाजिक मंच हो, जनांदोलन हो या सांस्कृतिक संस्था- की असली ताकत उसके सदस्य नहीं, बल्कि उनकी एकता होती है। यदि सदस्य एक-दूसरे पर विश्वास करें, यदि निर्णय सामूहिक हों, यदि लक्ष्य साझा हो- तो संगठन किसी भी कठिन चुनौती का सामना कर सकता है। इसके उलट, यदि संगठन में आपसी खींचतान, अविश्वास और छोटे-छोटे समूहों का प्रभुत्व हो, तो वह अपने उद्देश्य से भटक जाता है।

दुनिया के बड़े आंदोलनों- नागरिक अधिकार आंदोलन, भारत का स्वतंत्रता संग्राम, किसानों के बड़े संघर्ष, श्रमिक आंदोलन- सभी की सफलता का मूल एक ही था: मजबूत संगठनात्मक एकता।

संघर्ष: अकेले की लड़ाई शोर बनती है, मिलकर लड़ाई आंदोलन बनती है
संघर्ष, चाहे सामाजिक हो, राजनीतिक हो या आर्थिक- सफल तभी होता है जब वह सामूहिक हो। व्यक्तिगत आवाज़ को आसानी से दबाया जा सकता है, पर सामूहिक आवाज़ को अनसुना करना सत्ता के लिए असंभव होता है। इसीलिए अधिकांश जनसंघर्षों में पहला कदम लोगों को साथ लाना होता है। लोगों की संख्या नहीं, बल्कि उनकी एकता की गुणवत्ता लड़ाई की दिशा तय करती है।

संघर्ष में एकता दो महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती है:—

1. मनोगत ऊर्जा देती है – सामूहिकता से भय समाप्त होता है और साहस बढ़ता है।
2. सैद्धांतिक स्पष्टता बनाती है – जब विचार और लक्ष्य साझा हों, तभी आंदोलन टिकता है।
कई संघर्ष इसलिए विफल होते हैं क्योंकि भीतर ही भीतर विभाजन जड़ पकड़ लेता है। इसलिए संघर्ष की पहली शर्त है- अंदर की एकता।

आधुनिक दौर: विभाजन की राजनीति बनाम एकता की नीति
आज का समय सामाजिक मीडिया, त्वरित सूचनाओं और विचारों की तेज़ बहसों का है। इस दौर में सबसे बड़ी चुनौती है—विभाजन का व्यापक प्रसार।
जाति, भाषा, धर्म, क्षेत्र, विचार,
आर्थिक स्थिति, शिक्षा, सांस्कृतिक पहचान- हर स्तर पर समाज को तोड़ने की कोशिशें चलती रहती हैं। इसलिए आज एकता केवल भावनात्मक मुद्दा नहीं, बल्कि समाज और लोकतंत्र की मूल आवश्यकता है। यदि लोग आपस में ही बंट जाएँ, तो शोषणकारी ताकतें और मज़बूत हो जाती हैं। पर यदि समाज संगठित रहे, तो लोकतांत्रिक ढांचा न केवल स्थिर रहता है, बल्कि नागरिक अधिकार भी सुरक्षित रहते हैं।

एकता का वास्तविक अर्थ: अंधी सहमति नहीं, साझा दृष्टिकोण
एकता का अर्थ यह नहीं कि हर व्यक्ति समान सोचे। यह असंभव और अव्यावहारिक भी है। एकता का अर्थ है- मतभेदों के बीच संवाद, विविधता का सम्मान, साझा लक्ष्य पर सहमति, और संघर्ष के समय कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना।

सच यह है कि एकता का मूल आधार विश्वास है- विश्वास कि हम एक-दूसरे के लिए खड़े रहेंगे। यही विश्वास संगठन की आत्मा, समाज की नींव और संघर्ष की ऊर्जा है।

एकता क्यों निर्णायक है? – सरल लेकिन गहरे कारण

🔹संख्या से नहीं, समन्वय से शक्ति मिलती है। एकजुट होकर 100 लोग हजारों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
🔹विविधता को सामर्थ्य में बदल देती है। अलग-अलग क्षमताएँ मिलकर समाधान को बहुपक्षीय बनाती हैं।
🔹संघर्ष को दिशा देती है। बिखरे आंदोलन लंबे नहीं चलते, पर संगठित आंदोलन इतिहास बदलते हैं।
🔹समाज को दीर्घकालिक स्थिरता देती है। एकजुट समाज किसी भी बड़े संकट से उबर सकता है- चाहे वह भूकंप हो, महामारी हो या आर्थिक मंदी।

(Author)

एकता है वह ताकत, जिससे बदलाव जन्म लेता है
दुनिया बदलती है- विचारों से, आंदोलनों से, संघर्षों से। पर इन सबमें breathe करती हुई असली शक्ति केवल एक ही है- एकता। यह वह ऊर्जा है- जो सुरों को संगीत बनाती है, जो समाज को समाज बनाती है, जो संगठन को प्रभावशाली बनाती है, और जो संघर्ष को सफल बनाती है। इसलिए कहा जाता है- “बिखराव किसी भी यात्रा का अंत है, और एकता हर नई शुरुआत की सबसे बड़ी ताकत।” आज के दौर में यह संदेश पहले से अधिक प्रासंगिक है। यदि हम बेहतर समाज, मजबूत संगठन, और न्यायपूर्ण संघर्ष की राह तलाश रहे हैं, तो पहला कदम केवल यही है- एकता का निर्माण और उसका संरक्षण।

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