back to top
रविवार, अक्टूबर 26, 2025
होमदेशभाकपा(माले) लिबरेशन का बिहार चुनाव 2025 संदेश: संघर्ष, शहादत और एकजुटता की...

भाकपा(माले) लिबरेशन का बिहार चुनाव 2025 संदेश: संघर्ष, शहादत और एकजुटता की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प

पटना (पब्लिक फोरम)। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन [CPI(ML)-Liberation] ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपने सीमित लेकिन सशक्त प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि जनसंघर्ष और सामाजिक न्याय की लड़ाई का हिस्सा है।

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि कार्यकर्ताओं और समर्थकों की अपेक्षाओं के बावजूद, इस बार प्रत्याशियों की सूची लंबी नहीं हो सकी। हालांकि, संगठन ने कुछ अन्य जनवादी और प्रगतिशील पार्टियों के साथ व्यापक गठबंधन बनाने में सफलता हासिल की है।

कॉमरेड भट्टाचार्य ने बताया कि पार्टी ने पहले ही यह तय कर लिया था कि किसी भी सीट पर ‘मित्रवत मुकाबला’ नहीं होगा। बीस सीटों की सीमित हिस्सेदारी के बावजूद माले ने इस सिद्धांत का पूरी तरह पालन किया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि कांग्रेस, राजद और अन्य दल भी सीट-बंटवारे के मुद्दों को सुलझाकर नामांकन वापसी की तिथि से पहले पूर्ण एकता सुनिश्चित करेंगे।

गठबंधन और जनप्रतिनिधित्व के बीच संतुलन की चुनौती
भाकपा(माले) लिबरेशन ने स्वीकार किया है कि उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में कुछ असंतुलन रहे और कई योग्य कार्यकर्ताओं को अवसर नहीं मिल सका। पार्टी ने कहा कि स्थानीय आकांक्षाओं और समग्र प्रतिनिधित्व के बीच संतुलन बनाना कठिन होता है, खासकर जब सीटें सीमित हों और गठबंधन की बाध्यताएँ मौजूद हों। फिर भी पार्टी का मानना है कि सभी कार्यकर्ता और सहयोगी इन परिस्थितियों को समझेंगे और चुनावी मैदान में उतरे सभी प्रत्याशियों को एकजुट समर्थन प्रदान करेंगे।

कॉमरेड दीपांकर ने दोहराया कि “चुनाव सामूहिक जनसंघर्ष का रूप है” – जहाँ उम्मीदवार भले एक हो, पर उसकी सफलता हजारों कार्यकर्ताओं की मेहनत, संगठनात्मक एकजुटता और जनता की सहभागिता से ही संभव होती है।

राज्य दमन और राजनीतिक प्रतिशोध के खिलाफ जंग
भाकपा(माले) ने इस चुनावी संघर्ष को सत्ता द्वारा जारी दमन और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई बताया।
गोपालगंज जिले के भोरे (अनुसूचित जाति) क्षेत्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी प्रत्याशी कॉमरेड जितेंद्र पासवान को नामांकन दाखिल करने के बाद ही पुलिस ने हिरासत में ले लिया। इसके बाद पूर्व जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कॉमरेड धनंजय को उनका स्थानापन्न बनाकर चुनाव मैदान में उतारा गया है, ताकि वे भोरे के उत्पीड़ितों और दमन के शिकार नागरिकों के पक्ष में न्याय की लड़ाई जारी रख सकें।

इतिहास गवाह है कि इस सीट से 1995 में कॉमरेड उमेश पासवान ने करीब 16,000 वोट हासिल कर तीसरा स्थान पाया था, लेकिन दो वर्ष बाद वे शहीद कर दिए गए।
साल 2020 में कॉमरेड जितेंद्र पासवान ने 70,000 से अधिक वोट प्राप्त किए, किंतु मात्र 400 वोटों के अंतर से हार गए। इसके तुरंत बाद उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किए गए। भोजपुर के कॉमरेड मनोज मंजिल की तरह ही, अब उन्हें भी दोषसिद्धि के खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

शहादतों से लिखी गई है चुनावी यात्रा की इबारत
भाकपा(माले) का कहना है कि उसके लिए चुनाव सिर्फ सीटों का गणित नहीं, बल्कि दमन और अन्याय के खिलाफ ऐतिहासिक प्रतिरोध का प्रतीक है।
1989 में जब दलितों और वंचितों ने पहली बार मतदान का अधिकार प्राप्त किया, तो इसकी कीमत उन्हें बड़े नरसंहार से चुकानी पड़ी।
फरवरी 2000 के चुनाव के बाद अरवल में कॉमरेड शाहचाँद और साथियों को दी गई TADA सजा,
फरवरी 1998 में असम के डिब्रूगढ़ में कॉमरेड अनिल बरूआ की चुनावी सभा के दौरान हुई शहादत,
और जनवरी 2005 में झारखंड में नामांकन दाखिल करने के बाद कॉमरेड महेंद्र सिंह की हत्या —
ये सब इस पार्टी के संघर्षमय इतिहास के जीवित उदाहरण हैं।

“शहीदों को याद रखो – उनके मिशन को आगे बढ़ाओ”
भाकपा(माले) लिबरेशन ने स्पष्ट किया कि उसका चुनाव अभियान जनसंघर्ष की परंपरा और शहीदों के बलिदान को आगे बढ़ाने का संकल्प है। पार्टी का नारा है —
“हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे।”
कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा “हर बार जब हम चुनाव में उतरते हैं, तो यह हमारे शहीद साथियों के सपनों को साकार करने का प्रयास होता है।
यह लड़ाई सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज में बराबरी, सम्मान और न्याय की स्थापना के लिए है।”

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments