back to top
गुरूवार, सितम्बर 11, 2025
होमट्राइबल फोरमछत्तीसगढ़ नन प्रकरण : आदिवासी युवतियों को न्याय से वंचित करने पर...

छत्तीसगढ़ नन प्रकरण : आदिवासी युवतियों को न्याय से वंचित करने पर बृंदा करात ने महिला आयोग की कार्यप्रणाली पर उठाए गंभीर सवाल

बृंदा करात ने आयोग को लिखा पत्र

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलिट ब्यूरो की पूर्व सदस्य, पूर्व राज्यसभा सांसद और देश में महिला आंदोलन की अग्रणी नेता बृंदा करात ने छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग को एक सख्त पत्र लिखकर उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। यह पत्र छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में घटित उस घटना के संदर्भ में है, जिसमें 25 जुलाई 2025 को बस्तर क्षेत्र के नारायणपुर की तीन आदिवासी लड़कियां नौकरी की तलाश में दो ननों के साथ आगरा जा रही थीं, लेकिन दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं उन्हें रोककर रेलवे पुलिस की मौजूदगी में उन पर हमला किया, उन्हें अश्लील गालियां दीं और ननों पर जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी का आरोप लगाया था। पुलिस ने बिना जांच के ननों और एक आदिवासी युवक को गिरफ्तार कर लिया था। इस घटना की पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई थी और छत्तीसगढ़ और केरल सहित देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। संसद में प्रदर्शन कर विपक्ष ने भाजपा पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया था। इस मामले की जांच के लिए स्वयं माकपा नेत्री बृंदा करात और माकपा सांसद जॉन ब्रिटास और अन्य वामपंथी नेता दुर्ग पहुंचे थे और जेल में जाकर ननों से मुलाकात की थी। केरल के भाजपा अध्यक्ष ने भी दुर्ग आकर संघी संगठनों की हरकत और छत्तीसगढ़ में भाजपा राज्य सरकार के रवैए पर ननों से माफी मांगी थी। इन आदिवासी युवतियों को न्याय देने की मांग पर  सीपीआई द्वारा नारायणपुर में लगातार आंदोलन किया जा रहा है।

इसके बाद 2 अगस्त 2025 को बिलासपुर में एनआईए कोर्ट ने ननों और आदिवासी युवक को जमानत दे दी थी,  क्योंकि एफआईआर मात्र शक पर आधारित था और आरोपियों के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद नहीं थे। पीड़ित लड़कियों के परिवार ने शपथ-पत्र देकर कहा कि एनआईए कोर्ट को बताया है कि उनकी बेटियों के साथ कोई जबरदस्ती नहीं की गई थी और वे काफी पहले से ही ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। पीड़ित आदिवासी लड़कियों ने उन पर यौनिक हमला करने वाले बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ नारायणपुर थाने में शिकायत दर्ज की है, लेकिन अभी तक हमलावरों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, जिसके बाद पीड़ित युवतियां छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग पहुंचीं है।लेकिन 4 सितंबर 2025 को हुई सुनवाई में आयोग के सदस्यों ने उनका पक्ष सुनने के बजाय धर्मांतरण से जुड़े सवालों की झड़ी लगा दी। सदस्यों ने पूछा, “धर्म क्यों बदल रहे हो?”, “नारायणपुर में नौकरी क्यों नहीं मिली?” और “गांव से शहर जाने से पहले पुलिस को क्यों नहीं बताया?” एक सदस्य ने तो सलाह दी, “मंदिर-चर्च के साथ मस्जिद भी जाओ।” इस सुनवाई के बाद पीड़ित आदिवासी युवतियों ने मीडिया से कहा है कि उन्हें आयोग से न्याय की उम्मीद नहीं है।

महिला आयोग की इस हैरत भरी सुनवाई के बाद माकपा नेता वृंदा करात ने आयोग को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि आयोग राजनीतिक दबाव में है और वीडियो सबूत होने के बावजूद मामले को दबाया जा रहा है और आदिवासी युवतियों को अपमानित किया जा रहा है। उन्होंने मांग की है कि हमलावरों पर तुरंत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए जाएं, दोषियों को सजा मिले और पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए।

छत्तीसगढ़ महिला आयोग को 4 सितंबर 2025 को बृंदा करात द्वारा लिखे गए पूरे पत्र का हिंदी अनुवाद यहां दिया जा रहा है:

अध्यक्ष महोदया एवं सदस्यगण,
छत्तीसगढ़ महिला आयोग,
रायपुर.

आदरणीय अध्यक्ष महोदया एवं सदस्यगण,

मैं आपको यह पत्र तीन युवा आदिवासी महिलाओं द्वारा की गई शिकायतों पर आयोग द्वारा अपनाए जा रहे तरीके पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करने के लिए लिख रही हूँ, जो इन महिलाओं द्वारा अपनी शिकायत में नामित व्यक्तियों द्वारा उनके विरुद्ध किए गए आपराधिक कृत्यों, जिनमें यौन उत्पीड़न भी शामिल है, के संबंध में आयोग द्वारा की जा रही शिकायतों का समाधान करने के तरीके से संबंधित है। यह घटना 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन स्थित पुलिस कक्ष में घटी है। ये महिलाएं आयोग के समक्ष दूसरी बार उपस्थित हुई थीं। मीडिया द्वारा यह रिपोर्ट की गई है और जिसकी शिकायतकर्ताओं द्वारा  पुष्टि भी की गई है कि आयोग के कम से कम दो सदस्यों द्वारा उठाए गए प्रश्न शिकायतकर्ताओं के ही विरुद्ध थे, मानो वे ही आरोपी हों। इन युवतियों द्वारा नामित आरोपियों, अर्थात् ज्योति शर्मा, रवि निगम, रतन यादव, द्वारा उनके साथ किए गए दुर्व्यवहार के वीडियो साक्ष्य प्रथम दृष्टया आसानी से उपलब्ध हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि इन व्यक्तियों के विरुद्ध कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने के बजाय, ऐसा प्रतीत होता है कि आयोग वास्तव में आरोपियों को बचाने के लिए काम कर रहा है, जो शिकायतकर्ताओं द्वारा आयोग के प्रति व्यक्त किए गए विश्वास के खिलाफ जाता है।

आयोग में अपने अनुभव के बाद युवतियाँ सदमे में थीं। मैंने वहाँ मौजूद युवतियों से बात की और मुझे बताया गया कि : (1) एक सदस्य ने उनकी धार्मिक मान्यताओं का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि अगर आप चर्च और मंदिर जाते हैं, तो मस्जिद क्यों नहीं जाते? (2) एक अन्य सदस्य ने उनसे पूछा कि उन्हें नारायणपुर में काम क्यों नहीं मिला? इसके अलावा, उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने पुलिस को बताया था कि वे आगरा में नौकरी करने जा रही हैं? (3) उन पर चर्च से पैसे लेने का आरोप लगाया गया। (4) उनसे लगातार पूछताछ करके यह कहकर दबाव डाला गया कि उनके बयान दूसरों ने गढ़े और लिखे हैं। (5) यह कहा गया कि वे यह स्वीकार करें कि उनका धर्मांतरण करने और ननों द्वारा जबरन ले जाने का आरोप सच है। मीडिया द्वारा पूछे जाने पर, प्रत्येक महिला ने पुष्टि की है कि वास्तव में ऐसा ही हुआ था।

इनमें से हर सवाल राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित है। इसके अलावा, प्रश्न पूछने का आधार ही दोषपूर्ण है। उदाहरण के लिए, अगर कोई वयस्क महिला रोज़गार के लिए ज़िले से बाहर जा रही है, तो उसे पुलिस को क्यों सूचित करना चाहिए? उनकी धार्मिक आस्था के बारे में सवाल अपमानजनक हैं और साथ ही, उनकी धार्मिक आस्थाओं  पर कोई भी आक्षेप अंतरात्मा की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध है।

यदि ऊपर कही गई बातें सच हैं और इस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है, तो ये घटनाएँ आयोग के लिए कलंक हैं और इसकी विश्वसनीयता और इसके अधिदेश को गहराई से प्रभावित करती हैं। मैं आपको याद दिलाना चाहूँगी कि ऐसे आयोगों के स्थापना के लिए कानून का बनना महिला संगठनों के संघर्षों का परिणाम था, ताकि महिला शिकायतकर्ताओं को त्वरित न्याय दिलाने के लिए एक “स्वायत्त” संस्था सुनिश्चित की जा सके, जो सरकारों की शक्ति और राजनीतिक प्रभाव से प्रभावित न हो। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि आप एक राजनीतिक एजेंडे के अनुसार काम कर रहे हैं। ऐसे गंभीर मामले में जहां वीडियो साक्ष्य उपलब्ध हैं, जहां रेलवे पुलिस के कर्मियों की सीधी संलग्नता हैं, जहां स्थानीय पुलिस ने पीड़ितों की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की है, महिला आयोग का कानूनी कर्तव्य है कि वह पीड़ितों के समर्थन में हस्तक्षेप करे। यह तब और भी ज्यादा जरूरी है, जब वे गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, जिनके पास अपने साहस और ईमानदारी के अलावा कोई ताकत नहीं है।

पीड़ितों को न्याय दिलाने वाली संस्था के रूप में आयोग की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने का अभी भी अवसर है। बिना किसी और देरी के, पहले कदम के रूप में, आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए, दोषी पुलिसकर्मियों को दंडित किया जाना चाहिए और युवतियों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए।

भवदीय,
बृंदा करात
(विशेष आमंत्रित सदस्य, केंद्रीय समिति, माकपा)

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments