🔸बालको परसाभाठा चौक पर अतिक्रमण हटाने पहुंचा था निगम का दस्ता, व्यापारियों के हंगामे के बाद महापौर ने रुकवाई कार्रवाई।
🔸महापौर ने अपनी ही निगम की कार्रवाई का ठीकरा बालको प्रबंधन पर फोड़ा, प्रबंधन ने किया इनकार।
🔸अतिक्रमण और जाम से त्रस्त जनता पूछ रही – आखिर किसकी सुनें, आयुक्त की या महापौर की?
कोरबा/बालको नगर (पब्लिक फोरम)। शहर की व्यवस्था सुधारने निकले नगर निगम के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी उस वक्त खुलकर सामने आ गई, जब निगम आयुक्त के निर्देश पर चल रही अतिक्रमण हटाने की एक बड़ी कार्रवाई को महापौर ने मौके पर पहुंचकर रुकवा दिया। बुधवार की सुबह बालको के परसाभाठा चौक पर यह हाई-वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला, जिसने न केवल व्यापारियों और निगम कर्मचारियों को असमंजस में डाल दिया, बल्कि शहर की जनता के मन में भी कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
कुछ दिनों पहले, नगर निगम आयुक्त आशुतोष पांडेय ने अपने अमले के साथ बालको क्षेत्र का निरीक्षण किया था। परसाभाठा चौक पर भारी अतिक्रमण और उसके कारण लगने वाले जाम को देखकर उन्होंने तत्काल निगम के कर्मचारियों को अवैध कब्जा हटाने का निर्देश दिया। आयुक्त के आदेश का पालन करते हुए, निगम के अधिकारियों ने दुकानदारों को नोटिस जारी कर जगह खाली करने को कहा।
जब व्यापारियों ने नोटिस को गंभीरता से नहीं लिया, तो बुधवार सुबह निगम का तोड़ू दस्ता बुलडोजर और भारी दल-बल के साथ परसाभाठा चौक पहुंच गया। जैसे ही कार्रवाई शुरू हुई, व्यापारियों ने एकजुट होकर जमकर हंगामा करना शुरू कर दिया। अपनी रोजी-रोटी पर संकट आता देख, उन्होंने सीधे महापौर संजू देवी राजपूत से गुहार लगाई।
महापौर का हस्तक्षेप और चौंकाने वाला निर्देश
व्यापारियों की शिकायत मिलते ही महापौर तत्काल मौके पर पहुंच गईं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि अतिक्रमण हटाने वाली टीम किसी और की नहीं, बल्कि उनके अपने ही नगर निगम की है, तो उन्होंने गाड़ी से उतरना भी मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने कार में बैठे-बैठे ही निगम के कर्मचारियों को कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया और वहां से चली गईं। महापौर के इस कदम ने सभी को हैरान कर दिया।
जिम्मेदारी से पलायन? महापौर ने बालको पर मढ़ा दोष
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौंकाने वाला मोड़ तब आया, जब मीडिया ने महापौर संजू देवी राजपूत से इस बारे में सवाल किया। यह जानते हुए कि कार्रवाई निगम आयुक्त के निर्देश पर हो रही थी, उन्होंने इसका पूरा ठीकरा बालको प्रबंधन पर फोड़ दिया। उन्होंने कहा, “बालको कंपनी द्वारा मनमानी की जा रही है। छत्तीसगढ़ के निवासी जो वर्षों से यहां व्यापार कर रहे हैं, उनके पेट पर लात मारने का काम करेंगे तो मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी।” महापौर के इस बयान ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है, क्योंकि बालको प्रबंधन ने इस कार्रवाई से किसी भी तरह का संबंध होने से साफ इनकार किया है। बालको के जनसंपर्क अधिकारी ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई पूरी तरह से नगर निगम की है और इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है।
अतिक्रमण की जकड़न में परसाभाठा चौक
परसाभाठा चौक बालको क्षेत्र का एक प्रमुख चौराहा है, जो वर्षों से अतिक्रमण की मार झेल रहा है। चारों तरफ से छोटी-बड़ी दुकानों और ठेलों के कब्जे के कारण सड़कें संकरी हो गई हैं। दिन भर भारी वाहनों के दबाव और यातायात के कुप्रबंधन के चलते यहां आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। बाजार के दिनों में तो यहां से गुजरना भी मुश्किल हो जाता है। अतिक्रमण की वजह से वर्षों पुराना ‘आजाद चौक’ आज अपना अस्तित्व खो चुका है। क्षेत्र की जनता भी इस जाम और अव्यवस्था से निजात चाहती है।
जनता के मन में उठते सवाल
निगम की इस आंतरिक खींचतान ने आम नागरिकों को भ्रम में डाल दिया है। वे सीधे सवाल पूछ रहे हैं:
– जब कार्रवाई निगम की टीम कर रही थी, तो महापौर ने उसे क्यों रुकवाया?
– महापौर ने अपनी ही निगम की कार्रवाई के लिए बालको प्रबंधन को जिम्मेदार क्यों ठहराया?
– क्या शहर के विकास के लिए जिम्मेदार महापौर और निगम आयुक्त के बीच तालमेल की इतनी कमी है?
– अगर कार्रवाई गलत थी, तो निगम आयुक्त ने आदेश क्यों दिया? और अगर सही थी, तो महापौर ने उसे क्यों रोका?
यह घटना सिर्फ एक अतिक्रमण की कार्रवाई का रुकना नहीं है, बल्कि यह शहर के नेतृत्व और प्रशासनिक व्यवस्था पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। अब देखना यह होगा कि इस गतिरोध का क्या समाधान निकलता है और परसाभाठा चौक के लोगों को अतिक्रमण और जाम से कब मुक्ति मिलती है।
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