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गुरूवार, सितम्बर 11, 2025
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छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाओं पर संकट: सरकार ने 25 हड़ताली NHM कर्मचारियों को किया बर्खास्त, हजारों की नौकरी पर लटकी तलवार

– 18 अगस्त से जारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर सरकार की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई।
– नियमितीकरण और वेतन वृद्धि समेत 10 सूत्रीय मांगों को लेकर अड़े हैं 16,000 संविदा स्वास्थ्यकर्मी।
– ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं ठप, मरीज बेहाल; हड़ताल के दौरान एक कर्मचारी की हार्ट अटैक से मौत।
– कर्मचारी संघ ने कहा- “दमन से नहीं डरेंगे,” आंदोलन जारी रखने का ऐलान।

रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ में पिछले 17 दिनों से चल रही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा कर्मचारियों की हड़ताल ने अब एक गंभीर मोड़ ले लिया है। जनसेवाओं में बाधा और मरीजों की बढ़ती परेशानियों का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने बुधवार को एक कठोर कदम उठाते हुए 25 आंदोलनरत अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी हैं। इस कार्रवाई ने प्रदेश के लगभग 16,000 हड़ताली स्वास्थ्यकर्मियों के बीच आक्रोश और अनिश्चितता की लहर दौड़ा दी है, जो अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं।

सरकार का सख्त रुख: चेतावनी के बाद कार्रवाई

स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार, यह कार्रवाई कई चेतावनियों के बाद की गई है। शासन का कहना है कि 18 अगस्त से जारी इस हड़ताल के कारण प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था, विशेषकर ग्रामीण अंचलों में, चरमरा गई है। स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया ने 29 अगस्त को ही कर्मचारियों को काम पर लौटने का निर्देश दिया था, जिसका पालन न करने पर सेवा समाप्ति की चेतावनी भी दी गई थी। सरकार का स्पष्ट मत है कि लोकहित से जुड़े कार्यों में इस तरह की बाधा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बर्खास्त किए गए कर्मचारियों में बलौदाबाजार जिले के एनएचएम संघ के पदाधिकारी हेमंत सिंह और कौशलेश तिवारी भी शामिल हैं।

क्यों सड़कों पर हैं स्वास्थ्यकर्मी?

एनएचएम कर्मचारी, जो प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं, अपनी 10-सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। उनकी सबसे प्रमुख मांग वर्षों से संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों का नियमितीकरण या स्थायीकरण है। इसके अलावा, उनकी मांगों में पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना, ग्रेड पे का निर्धारण, लंबित 27 प्रतिशत वेतन वृद्धि का भुगतान, अनुकंपा नियुक्ति, और न्यूनतम 10 लाख रुपये का कैशलेस चिकित्सा बीमा शामिल है। कर्मचारियों का कहना है कि वे कम वेतन और अनिश्चित भविष्य के बीच महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं, लेकिन सरकार उनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।

मानवीय संवेदनाओं का सैलाब और एक दुखद अंत

यह हड़ताल केवल मांगों और सरकारी आदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हजारों परिवारों के भविष्य और मानवीय संवेदनाओं से भी जुड़ी है। कर्मचारी अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए अनोखे तरीके अपना रहे हैं – कहीं मुंडन कराकर विरोध जताया जा रहा है, तो कहीं पकौड़े बेचकर और आदिवासी नृत्य करके। कुछ कर्मचारी भगवान की शरण में “मनोकामना यात्रा” निकाल रहे हैं, तो कुछ ने खून से खत लिखकर अपनी पीड़ा बयां की है।

इस आंदोलन के बीच एक दुखद घटना भी सामने आई, जब जगदलपुर में हड़ताल पर बैठे ब्लॉक अकाउंट मैनेजर बी.एस. मरकाम की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। इस घटना ने हड़ताली कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक दबाव को उजागर किया है और उनके साथियों को शोक में डुबो दिया है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर चौतरफा असर

इस हड़ताल का सबसे गंभीर प्रभाव प्रदेश की आम जनता, विशेषकर ग्रामीण और गरीब तबके पर पड़ रहा है। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ताले लटक गए हैं, जिससे संस्थागत प्रसव, नियमित टीकाकरण, पैथोलॉजी जांच, और टीबी, मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज प्रभावित हो रहा है। मरीजों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है, और बड़े अस्पतालों पर बोझ कई गुना बढ़ गया है। त्योहारी सीजन और मौसमी बीमारियों के इस दौर में स्वास्थ्यकर्मियों का सड़कों पर होना एक बड़े स्वास्थ्य संकट को न्योता दे रहा है।

आगे क्या? टकराव या समाधान?

सरकार की बर्खास्तगी की कार्रवाई के बाद कर्मचारी संघ ने भी अपना रुख और कड़ा कर लिया है। संघ का कहना है कि वे इस तरह की दमनकारी नीतियों से डरने वाले नहीं हैं और जब तक उनकी मांगें लिखित आदेश के रूप में पूरी नहीं हो जातीं, आंदोलन जारी रहेगा। वहीं, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का कहना है कि सरकार ने 22% वेतन वृद्धि और ट्रांसफर पॉलिसी जैसी कुछ मांगों पर सहमति दे दी है, लेकिन नियमितीकरण का मामला केंद्र सरकार के अधीन है।

इस टकराव के बीच सवाल यह उठता है कि क्या दोनों पक्ष कोई बीच का रास्ता निकाल पाएंगे? एक तरफ हजारों कर्मचारियों के परिवारों का भविष्य दांव पर है, तो दूसरी तरफ लाखों मरीजों की सेहत। यह समय सरकार और कर्मचारियों के बीच संवाद का है, ताकि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को और अधिक बिगड़ने से बचाया जा सके और उन कोरोना योद्धाओं को सम्मान मिल सके, जिन्होंने महामारी के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना समाज की सेवा की थी।

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