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गुरूवार, सितम्बर 11, 2025
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ओडिशा में वेदांता की बॉक्साइट खनन परियोजना पर रोक: फर्जी हस्ताक्षर और आदिवासी अधिकारों के हनन का गंभीर आरोप

🔹आदिवासी ग्रामीणों ने ग्राम सभा की सहमति में धोखाधड़ी और जाली हस्ताक्षर का आरोप लगाया है.
🔹केंद्र सरकार ने ओडिशा उच्च न्यायालय के आदेश के बाद वन मंजूरी को अस्थायी रूप से रोक दिया है.
🔹वेदांता की 9 मिलियन टन प्रति वर्ष की बॉक्साइट खनन परियोजना विवादों में घिर गई है.
🔹आदिवासी समुदाय अपनी जमीन, जंगल, आस्था, अस्तित्व, आजीविका और   अधिकार को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

नई दिल्ली/भुवनेश्वर (पब्लिक फोरम)। ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ जिलों में प्रस्तावित वेदांता लिमिटेड की विशाल बॉक्साइट खनन परियोजना पर केंद्र सरकार ने फिलहाल रोक लगा दी है. यह फैसला तब आया जब स्थानीय आदिवासी समुदायों ने गंभीर आरोप लगाए कि परियोजना के लिए उनकी सहमति धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ली गई थी. यह मामला अब सिर्फ एक खनन परियोजना का नहीं, बल्कि भारत के सबसे कमजोर समुदायों में से एक के अधिकारों, उनकी संस्कृति और अस्तित्व की लड़ाई का प्रतीक बन गया है.

धोखाधड़ी और जाली दस्तावेजों का जाल

विवाद का केंद्र 708.20 हेक्टेयर वन भूमि है, जिसे वेदांता अपनी सिजिमाली बॉक्साइट खनन परियोजना के लिए चाहती है. कानून के अनुसार, इस तरह की किसी भी परियोजना के लिए वन-निर्भर स्थानीय समुदायों की सहमति अनिवार्य है, जो ग्राम सभाओं (ग्राम परिषदों) के माध्यम से ली जाती है.

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि 8 दिसंबर 2023 को कथित तौर पर आयोजित की गई ग्राम सभा की बैठकें एक दिखावा थीं. भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए काम करने वाले एक स्थानीय संगठन के प्रमुख, सुभा सिंह माझी ने चौंकाने वाले दावे किए. उन्होंने कहा, “बाहरी लोगों को ग्राम सभा की बैठकों में लाया गया, उनकी तस्वीरें खींची गईं और उन्हें परियोजना से प्रभावित गांवों का निवासी बताकर पेश किया गया. कई मामलों में, उन लोगों के नाम पर हस्ताक्षर किए गए हैं जिनकी वर्षों पहले मृत्यु हो चुकी है. यहां तक कि कॉलेज में पढ़ रहे युवाओं के नाम पर अंगूठे के निशान लगा दिए गए.”

इन आरोपों ने परियोजना की पूरी वैधता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है, जिससे सरकार और न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

अदालत का हस्तक्षेप और सरकार की कार्रवाई

जब स्थानीय समुदायों को लगा कि उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है, तो उन्होंने ओडिशा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. 5 मार्च 2025 को, अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वेदांता को वन मंजूरी देने से पहले वह स्थानीय समुदायों के वन अधिकारों के दावों पर गंभीरता से विचार करे.

इस अदालती आदेश के आधार पर, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (FAC) ने 30 जुलाई 2025 को वेदांता के प्रस्ताव पर रोक लगा दी. समिति ने ओडिशा की मोहन माझी के नेतृत्व वाली नई भाजपा सरकार से उच्च न्यायालय के आदेश का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने और इस मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

संस्कृति, आस्था और आजीविका का सवाल

यह लड़ाई सिर्फ जमीन के एक टुकड़े की नहीं है. यह ग्रामीणों की पहचान और आस्था से जुड़ी है. याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि प्रस्तावित खनन क्षेत्र में उनके देवता “तिजिराजा” का निवास स्थान है. उनका कहना है कि खनन गतिविधियों से उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन होगा.

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत, जब तक इन समुदायों के वन भूमि पर अधिकारों की मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक उन्हें उनकी भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता. ग्रामीणों का तर्क है कि इस कानून को ताक पर रखकर परियोजना को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.

वेदांता का पक्ष और परियोजना का महत्व

दूसरी ओर, वेदांता लिमिटेड का दावा है कि इस परियोजना से पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़ेगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे. यह सिजिमाली खदान कंपनी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे रायगढ़ स्थित उसकी लांजीगढ़ एल्यूमिना रिफाइनरी की बॉक्साइट की आधी जरूरत पूरी होगी. गौरतलब है कि इससे पहले भी वेदांता को नियमगिरि पहाड़ियों में खनन की अनुमति नहीं मिली थी, जब 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद स्थानीय ग्राम सभाओं ने परियोजना को खारिज कर दिया था.

संघर्ष और प्रतिरोध की गूंज

धोखाधड़ी के आरोपों के बाद, 30 अगस्त से 4 सितंबर 2024 के बीच प्रभावित दस गांवों के निवासियों ने फिर से ग्राम सभाएं आयोजित कीं. इन बैठकों में, उन्होंने सर्वसम्मति से खनन परियोजना के लिए वन भूमि के हस्तांतरण के प्रस्ताव को खारिज कर दिया और अपने फैसले की प्रतियां जिला प्रशासन को भेज दीं.

इस बीच, प्रशासन और कार्यकर्ताओं के बीच भी तनाव बढ़ा है. जून 2025 में, रायगढ़ प्रशासन ने मेधा पाटकर सहित कई प्रमुख कार्यकर्ताओं के जिले में प्रवेश पर रोक लगा दी, जिसे बाद में ओडिशा उच्च न्यायालय ने “असंवैधानिक” करार देते हुए रद्द कर दिया.

यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य कॉर्पोरेट इकाई, लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के साथ स्वामित्व को लेकर लंबित है. फिलहाल, सिजिमाली के जंगलों पर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं, और यहां के आदिवासी समुदाय अपनी जमीन, अपनी संस्कृति और अपने भविष्य के लिए एक लंबी और कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं. उनकी आवाज इस बात की याद दिलाती है कि विकास की दौड़ में मानवाधिकारों और पर्यावरण की उपेक्षा नहीं की जा सकती.

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