भानुपटपुर (पब्लिक फोरम)। गोंडी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने, भाषा के मानकीकरण तथा गोंड समाज के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भानुपटपुर में एक राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला आयोजित करने की दिशा में गहन चर्चा हुई। इस अवसर पर गोंडी भाषा संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्यरत विभिन्न संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी एकजुट होकर आगे की रणनीति तय करने पर सहमत हुए।
कार्यशाला का उद्देश्य
गोंडी भाषा, जो लाखों गोंड समुदाय के लोगों की मातृभाषा है, आज भी संवैधानिक मान्यता से वंचित है। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य इस भाषा को मानकीकृत करना, शिक्षा प्रणाली में इसकी मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित करना और आठवीं अनुसूची में शामिल करने की दिशा में ठोस पहल करना है। इससे न केवल गोंड समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती मिलेगी बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक इस भाषा का संरक्षण भी संभव होगा।
प्रमुख पदाधिकारियों की उपस्थिति
बैठक में गोंडी भाषा सृजन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष शेरसिंह आचला, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष तरुण नेताम, राष्ट्रीय सचिव पारस उसेंडी, गोंड समाज के वरिष्ठ नेता सी. पी. ठाकुर (कुरेती), राधेलाल नुरुटी तथा गोंडवाना भवन के सचिव के. आर. दर्रो प्रमुख रूप से मौजूद रहे। सभी ने मिलकर इस आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन दिलाने की आवश्यकता पर बल दिया।
संवैधानिक मान्यता की मांग
गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराना गोंड समाज की वर्षों पुरानी मांग है। इससे भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण मिलेगा और सरकारी नौकरियों, शिक्षा व प्रशासनिक कार्यों में इसे स्थान मिल सकेगा। वक्ताओं ने कहा कि यह न केवल गोंड समुदाय की अस्मिता का सवाल है बल्कि भारत की बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक धरोहर को मजबूत करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है।
शिक्षा और पाठ्यक्रम की पहल
बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि गोंडी भाषा के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जाए और विद्यालयों में इसे पढ़ाने की व्यवस्था हो। इसके लिए विद्वानों और भाषा विशेषज्ञों की टीम बनाई जाएगी जो सरल और मानकीकृत पाठ्य सामग्री तैयार करेगी। इससे गोंडी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या बढ़ेगी और भाषा के भविष्य को सुरक्षित किया जा सकेगा।
भविष्य की दिशा
बैठक में तय किया गया कि आगामी समय में भानुपटपुर में एक राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी, जिसमें देशभर से गोंडी भाषा के विद्वान, समाजसेवी और प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस कार्यशाला के माध्यम से एक साझा प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा जाएगा ताकि गोंडी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने की प्रक्रिया को गति दी जा सके।
भानुपटपुर में हुई यह पहल गोंडी भाषा आंदोलन की एक मजबूत कड़ी मानी जा रही है। यह केवल भाषा का मुद्दा नहीं, बल्कि गोंड समुदाय की पहचान, गौरव और अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है। गोंडी भाषा के मानकीकरण और संवैधानिक मान्यता की यह कोशिश आने वाले समय में न केवल गोंड समाज बल्कि पूरे भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता को नई ऊँचाई प्रदान करेगी।
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