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गुरूवार, सितम्बर 11, 2025
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छत्तीसगढ़ में संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल, चरमराई स्वास्थ्य सेवाएं; 20 साल से अधर में मांगें

रायपुर/कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत कार्यरत 16 हजार संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी अपनी 10 सूत्रीय मांगों को लेकर 18 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। घंटाघर चौक पर छत्तीसगढ़ प्रदेश एनएचएम कर्मचारी संघ के बैनर तले धरना-प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि उनकी मांगों की लंबे समय से अनदेखी की जा रही है। हड़ताल के चलते राज्यभर की स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने लगी हैं।

आंदोलनरत कर्मचारियों ने कहा कि रायपुर के अंबेडकर अस्पताल से लेकर सुकमा और बीजापुर जैसे सुदूर जिलों तक वे वर्षों से ईमानदारी के साथ सेवाएं दे रहे हैं।
कोरोना काल में कई संविदा स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर जनता की सेवा की, जिनमें से कई की जान भी गई।

कर्मचारियों का आरोप है कि —
“सरकार ने हमें कोरोना योद्धा कहा, लेकिन अनुकम्पा नीति के अभाव में हमारे दिवंगत साथियों के परिवार आज भी बेसहारा हैं। न बीमा मिला, न पेंशन, न कोई सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा।”

एनएचएम कर्मचारी पिछले दो दशकों से संविलियन, स्थायीकरण, ग्रेड पे निर्धारण, पारदर्शी कार्य मूल्यांकन, लंबित 27% वेतन वृद्धि, नियमित भर्ती में आरक्षण, अनुकम्पा नियुक्ति, स्थानांतरण नीति, अवकाश सुविधाएं और 10 लाख रुपये का कैशलेस बीमा जैसी मूलभूत मांगें उठा रहे हैं।

कर्मचारियों का कहना है कि चुनावी घोषणाओं में “मोदी की गारंटी” के तहत समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया गया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

हड़ताली कर्मियों ने उदाहरण देते हुए कहा कि—

मणिपुर में एनएचएम कर्मचारियों का नियमितीकरण किया गया।

बिहार में पब्लिक हेल्थ कैडर लागू हुआ।

मध्यप्रदेश में समान काम-समान वेतन, अनुकम्पा नियुक्ति, नई पेंशन योजना और 50% आरक्षण तक की सुविधा दी गई है।

जबकि छत्तीसगढ़ के कर्मचारी 20 साल बाद भी असुरक्षा और अनिश्चितता में जी रहे हैं।

कर्मचारियों ने बताया कि वे कई बार मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों से मुलाकात कर चुके हैं। शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन और वार्ताओं के बावजूद उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ।

1 मई मजदूर दिवस और 14 जुलाई को भी मिशन संचालक से हुई चर्चा में समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज तक कोई निर्णय नहीं हुआ।

अब कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि—
“यदि इस बार भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो एसएनसीयू (नवजात शिशु देखभाल केंद्र) और अन्य आपातकालीन सेवाएं भी प्रभावित होंगी, जिसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन पर होगी।”

अब तक हड़ताल के दौरान कर्मचारियों ने जनता का ध्यान रखते हुए आपातकालीन सेवाएं बाधित नहीं की थीं, लेकिन इस बार स्थिति गंभीर हो सकती है।
यदि जल्द समाधान नहीं निकला, तो सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को उठाना पड़ेगा, खासकर ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों के मरीजों को।

कानूनन संविदा कर्मचारियों का स्थायीकरण राज्य सरकार की नीतिगत प्रक्रिया पर निर्भर करता है।

सरकार ने अतीत में 1.50 लाख शिक्षकों का संविलियन किया और हाल ही में ढाई हजार शिक्षकों की नौकरी बचाने के लिए विशेष निर्णय लिया।

ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर स्वास्थ्यकर्मी, जो जनता की जिंदगी से सीधे जुड़े हैं, उनकी मांगों को क्यों लगातार नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार ने संविदा स्वास्थ्यकर्मियों की समस्याओं पर समय रहते गंभीरता दिखाई होती, तो आज स्वास्थ्य सेवाएं बाधित नहीं होतीं।

एनएचएम संविदा कर्मचारियों की हड़ताल ने सरकार और जनता दोनों को एक कठिन स्थिति में खड़ा कर दिया है। जहां कर्मचारी अपने अधिकार और सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, वहीं जनता की स्वास्थ्य सेवाएं ठप पड़ने से संकट गहरा सकता है।

यह आंदोलन सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा है — क्या वह कर्मचारियों की 20 साल पुरानी पीड़ा का समाधान करेगी, या फिर जनता को स्वास्थ्य संकट का सामना करना पड़ेगा?

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