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बुधवार, अक्टूबर 29, 2025
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सेवानिवृत्ति की आयु, सरकारी आदेश 62 साल, वेदांता का नियम 60 साल: छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों के हक पर दो साल की कटौती!

वेदांता बनाम सरकार के नियम: कर्मचारियों की सेवा आयु पर टकराव गहराया

रायपुर/कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ में निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी वेदांता लिमिटेड (बालको) और राज्य सरकार के बीच सेवानिवृत्ति की आयु को लेकर गंभीर असहमति सामने आई है। राज्य सरकार ने 2019 में सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष निर्धारित की थी, लेकिन वेदांता अब भी अपने कर्मचारियों को 60 वर्ष की आयु में ही सेवा से मुक्त कर रही है। इससे सैकड़ों कर्मचारी दो अतिरिक्त वर्ष की सेवा और उससे जुड़े आर्थिक व सामाजिक लाभों से वंचित हो रहे हैं।

कर्मचारी संगठनों में आक्रोश, राज्य नीति की खुली अनदेखी

वेदांता के इस कदम को कर्मचारी संगठनों ने राज्य सरकार के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना बताया है। संगठन लंबे समय से इस मुद्दे को उठाते आ रहे हैं, लेकिन प्रबंधन की ओर से कोई ठोस जवाब या नीति परिवर्तन सामने नहीं आया है। वेदांता का यह तर्क कि “कंपनी के अपने नियम हैं”, कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात के रूप में देखा जा रहा है।

छत्तीसगढ़ सरकार के आदेश स्पष्ट रूप से सभी शासकीय एवं संबंधित संस्थानों के कर्मचारियों को 62 वर्ष तक सेवा देने का अधिकार प्रदान करते हैं। ऐसे में वेदांता द्वारा इस आदेश को लागू न करना, संवैधानिक और नीतिगत प्रश्न बन गया है।

दो साल का नुकसान: आर्थिक और सामाजिक असर

सेवानिवृत्ति की उम्र में दो साल की कटौती न केवल पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य वित्तीय लाभों को प्रभावित करती है, बल्कि कर्मचारियों की मानसिक सुरक्षा और पारिवारिक स्थायित्व पर भी गहरा असर डालती है। 60 वर्ष की आयु में रिटायर कर देना कई कर्मचारियों के लिए “अचानक विस्थापन” जैसा झटका बन रहा है।

पूर्व बालको कर्मचारी रूप दास महंत बताते हैं, “हमने अपनी पूरी जवानी इस कंपनी को दी। लेकिन अब जब दो साल और सेवा देने का अधिकार मिला है, तो वेदांता उसे नकार रही है। यह अन्याय नहीं तो क्या है?”

क्या निजी कंपनियां सरकारी नीति से ऊपर हैं?

यह मामला अब केवल वेदांता के आंतरिक प्रशासन का नहीं, बल्कि पूरे राज्य में निजी और सार्वजनिक नीतियों के सामंजस्य का प्रश्न बन गया है। क्या कोई निजी कंपनी राज्य सरकार के कर्मचारी-हितैषी नीतियों को लागू करने से इंकार कर सकती है? अगर ऐसा होता है, तो इसका सीधा असर प्रदेश में निजी क्षेत्र में कार्यरत लाखों कर्मचारियों के अधिकारों पर पड़ेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाती है, तो वह नीति उस राज्य में संचालित सभी संस्थानों पर लागू होनी चाहिए, विशेषकर उन कंपनियों पर जो सार्वजनिक हितों और संसाधनों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हैं।

शासन-प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में

कर्मचारियों और यूनियनों द्वारा बार-बार शिकायत करने के बावजूद राज्य शासन की ओर से अब तक इस मुद्दे पर कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं हुआ है। यह चुप्पी प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है और वेदांता जैसे बड़े औद्योगिक समूहों को मनमानी करने का अप्रत्यक्ष अवसर देती है।

दो साल की नहीं, यह सम्मान और अधिकार की लड़ाई है!

छत्तीसगढ़ आदिनिवासी गण परिषद के संयोजक एवं अल्युमिनियम कामगार संघ (AICCTU) के वरिष्ठ नेता बी.एल नेताम बताते हैं कि यह टकराव अब सिर्फ दो वर्षों की सेवा या कुछ लाभों की मांग का नहीं, बल्कि कर्मचारियों के सम्मान, उनके भविष्य और राज्य की नीति की गरिमा का विषय बन गया है। यदि वेदांता जैसी कंपनियां खुलेआम राज्य के निर्णयों को दरकिनार कर सकती हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक अनुशासन के लिए खतरा है, बल्कि जनहित के मूल सिद्धांतों के लिए भी।

राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस संवेदनशील मुद्दे पर हस्तक्षेप कर वेदांता को अपने कर्मचारियों को राज्य के नियमों के अनुसार 62 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु का लाभ देने हेतु बाध्य करे। यह निर्णय न केवल कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि राज्य की नीतिगत साख को भी बरकरार रखेगा।

“सरकारी आदेश के बावजूद वेदांता द्वारा कर्मचारियों को दो साल पहले रिटायर करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि राज्य के श्रम कानूनों की अवमानना भी है। अब यह समय है कि सरकार को इस विषय पर तत्काल निर्णायक रुख अपनाना चाहिए।”

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