रविवार, जुलाई 20, 2025
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एसईसीएल प्रबंधन के खिलाफ भू-विस्थापितों का फूटा गुस्सा: जीएम और सीएमडी के पुतले फूंके

कोरबा (पब्लिक फोरम)। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) कुसमुंडा परियोजना में फर्जी नियुक्तियों के आरोपों को लेकर भू-विस्थापित परिवारों का प्रबंधन के खिलाफ आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। शुक्रवार को महिलाओं द्वारा अर्धनिर्वस्त्र प्रदर्शन के बाद, शनिवार को भू-विस्थापितों ने कुसमुंडा जीएम सचिन पाटिल और सीएमडी का पुतला फूंका। इस दौरान उन्होंने प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और पुतले पर थूक कर अपना रोष व्यक्त किया।

विस्तार से जानें क्या है मामला

कुसमुंडा परियोजना में कालांतर में दी गई फर्जी नौकरियों के कारण अनेक भू-विस्थापित परिवार नौकरी के लिए भटक रहे हैं। विस्थापितों का आरोप है कि उनके खातों में दूसरों को फर्जी नौकरी दी गई है। इसी के विरोध में भू-विस्थापित रोजगार एकता महिला किसान के बैनर तले महिलाओं ने शुक्रवार को जीएम कार्यालय के भीतर अर्धनिर्वस्त्र प्रदर्शन किया था। उन्होंने अधिकारियों से कहा था कि “आप चूड़ी पहन लो, हम यहां से चले जाएंगे।”

इस प्रदर्शन के बाद शनिवार को भू-विस्थापितों ने जीएम और सीएमडी के पुतले को कार्यालय गेट पर फूंका। पुतला दहन से पहले उन्होंने पुतले का जुलूस निकाला और नारेबाजी करते हुए दहन स्थल पर पहुंचे। एक भू-विस्थापित ने पुतले पर थूक कर और फिर मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए उसे आग के हवाले कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने पुतलों को पैर से कुचलकर भी अपना गुस्सा जाहिर किया। भू-विस्थापितों के चेहरे पर साफ तौर पर नाराजगी झलक रही थी और वे प्रबंधन के रवैये से बेहद खफा नजर आए।

एसईसीएल का पक्ष

दूसरी ओर, एसईसीएल के अधिकारियों का कहना है कि जिनकी जमीन ली गई है, उन्हें सहमति के आधार पर और राज्य शासन की इकाइयों द्वारा किए गए सत्यापन के उपरांत ही नौकरी दी गई है। ऐसे में एसईसीएल की गलती कहाँ है, यह सवाल उन्होंने उठाया। इस पूरे मामले में तत्कालीन अधिकारी अनुपम दास का नाम काफी सुर्खियों में रहा है, जिन पर अनेक लोगों को फर्जी नौकरियां लगवाने का आरोप है।

वर्षों पुराना है फर्जीवाड़े का खेल

जानकारों के अनुसार, यह फर्जीवाड़े का खेल 1978 के दौर का है, जब अविभाजित मध्यप्रदेश में भी पुनर्वास नीति लागू नहीं हुई थी। उस समय कलेक्टर भू-अर्जन समिति के अध्यक्ष होते थे और उनके द्वारा गठित कमेटी में शामिल सदस्यों और आसपास के विधायकों की बनाई नीति के अनुसार कार्य होता था। लगभग तीन एकड़ भूमि पर एक नौकरी का प्रावधान था, साथ ही छोटी जमीन वालों को भी नौकरी देने का नियम था ताकि मैनपावर की पूर्ति की जा सके।

उस दौर में राजस्व विभाग से जुड़े अधिकारियों, आरआई और पटवारियों ने बड़ी चालाकी से जमकर खेल खेला। कुछ नाम आज भी चर्चित हैं जिन्होंने जमीनों में हेरफेर कर, टुकड़ों में जमीन की बिक्री करवाकर रिकॉर्ड में दिखाकर नौकरियां बेचीं। बड़ी जमीनों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर उन पर नौकरियां दिलवाई गईं और यह पूरा फर्जीवाड़ा हुआ। इसके अलावा, कई ऐसे लोग थे जो नौकरी नहीं करना चाहते थे या उनके घर में कोई नौकरी लायक आश्रित नहीं था, लेकिन चालाक लोगों ने उनसे समझौता कर, कोई न कोई नाता जोड़कर, सहमति लेकर नौकरी हासिल कर ली।

आज ऐसे ही अधिकांश जमीन मालिकों के परिवार, जिनके खाते में नौकरी उनके आश्रितों को नहीं मिली, वे अपनी नौकरी मांग रहे हैं। यह सारा खेल तत्कालीन चंद राजस्व अधिकारियों-कर्मियों और एसईसीएल के चंद अधिकारियों की सांठगांठ से हुआ, जिसका खामियाजा आज तक भू-विस्थापित भुगत रहे हैं और प्रबंधन टारगेट में है। आज भी प्रभावितों को रोजगार, मुआवजा, बसाहट, पुनर्वास के मामले में प्रबंधन की नीतियां और कार्यशैली सवालों व नाराजगी के घेरे में है।

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