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कोरबा में भू-विस्थापित महिलाओं का आक्रोश: ज़मीन के बदले नौकरी न मिलने पर अर्धनिर्वस्त्र प्रदर्शन!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में ज़मीन के बदले नौकरी की मांग को लेकर भू-विस्थापित परिवारों की महिलाओं का दर्दनाक प्रदर्शन सामने आया है। एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की कुसमुंडा परियोजना कार्यालय में गुरुवार को महिलाओं के एक समूह ने अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए अर्धनिर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया। यह पहली बार है जब खदान प्रभावित महिलाओं ने इस तरह का कदम उठाया है, जिससे प्रबंधन की कार्यप्रणाली और भू-विस्थापितों की समस्याओं पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

रोज़गार के वादे पर एसईसीएल की चुप्पी बरकरार

प्रदर्शनकारी महिलाओं का आरोप है कि उनकी ज़मीन एसईसीएल द्वारा अधिग्रहित की गई है, लेकिन उन्हें आज तक नौकरी नहीं दी गई है। लंबे समय से वे इस मामले में न्याय की गुहार लगा रही हैं, लेकिन प्रबंधन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। प्रदर्शनकारियों के अनुसार, 10 दिन पहले ही उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगी। इस मामले में एसईसीएल प्रबंधन की कथित उदासीनता और ज़मीन के बदले रोज़गार देने में बरती जा रही लापरवाही को इस प्रदर्शन का मुख्य कारण बताया जा रहा है।

“रोज़गार दो या ज़मीन वापस करो” – महिलाओं का नारा

कुसमुंडा कोयला खदान के लिए जरहाजेल, मनगांव, दुरपा, पाली, गेवरा बस्ती सहित कई गांवों की ज़मीन का अधिग्रहण किया गया था। इसके बावजूद, भू-विस्थापित परिवार और उनके सदस्य वर्षों से नौकरी के लिए एसईसीएल कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। इस बार महिलाओं ने “रोज़गार दो या ज़मीन वापस करो” के नारे लगाते हुए अपना विरोध दर्ज कराया।

व्यवस्था पर गंभीर सवाल

महिलाओं के इस उग्र प्रदर्शन ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या प्रबंधन जानबूझकर भू-विस्थापितों को उनके हक़ से वंचित कर रहा है? क्या फर्जी नियुक्तियों में ज़्यादा रुचि के कारण असली हकदारों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है? प्रदर्शनकारी महिलाओं ने पहले भी जेल जाने का ज़िक्र किया है, जो उनकी लंबे समय से चल रही लड़ाई को दर्शाता है।

आगे उग्र आंदोलन की चेतावनी

भू-विस्थापित रोज़गार एकता महिला किसान संगठन की अध्यक्ष कमलेश्वरी देवी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया है। उन्होंने कहा कि अगर जल्द ही उनकी मांगों का समाधान नहीं हुआ तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा। एसईसीएल प्रबंधन के खिलाफ यह आंदोलन पिछले कई महीनों से चल रहा है, जिसमें पहले भी कई बार खदानों को बंद करने जैसे कदम उठाए गए हैं।

यह घटना न केवल भू-विस्थापितों की निराशा और गुस्से को दर्शाती है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि किस तरह विकास परियोजनाओं के नाम पर लोगों की आजीविका छीन ली जाती है और फिर उन्हें अपने हक़ के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। एसईसीएल प्रबंधन का इस संवेदनशील मामले पर क्या रुख रहेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

कोरबा का दोहरा संकट: विकास और पर्यावरण के बीच फंसा शहर, मंत्री लखन से जवाब देही की उम्मीद

अब, यह देखना भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगा कि प्रदेश के वाणिज्य, उद्योग और श्रम मंत्री, जो कोरबा के निवासी और विधायक भी हैं, इन ज्वलंत मुद्दों पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी कैसे निभाते हैं। सत्ता पक्ष के “सुशासन तिहार” के तहत, वे इन त्रासदीपूर्ण समस्याओं के समाधान के लिए क्या कदम उठाते हैं, यह क्षेत्र की जनता के लिए एक बड़ी कसौटी होगी। उनसे उम्मीद है कि वे न केवल विकास कार्यों को गति देंगे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और आम नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में भी ठोस पहल करेंगे। कोरबा की जनता अपने विधायक और मंत्री से इन गंभीर मसलों पर स्पष्ट जवाब और प्रभावी समाधान की अपेक्षा रखती है।

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