सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: बिहार में ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ पर सवाल
पटना (पब्लिक फोरम)। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा अचानक शुरू किए गए ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ अभियान में पाई गई संवैधानिक और कानूनी खामियों को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने आम मतदाताओं को हो रही व्यावहारिक परेशानियों और अव्यवस्थाओं को भी स्वीकार किया है, जिससे इस अभियान को लेकर पहले से उठाई जा रही चिंताओं की पुष्टि हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे आम दस्तावेजों को स्वीकार्य सूची में शामिल करने की सलाह दी है, जो जमीनी स्तर पर मतदाताओं की एक प्रमुख मांग रही है।
भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस संबंध में एक बयान जारी कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने मतदाताओं की दो सबसे अहम चिंताओं को उजागर किया है। अभियान के शुरुआती पंद्रह दिनों के अनुभव से यह बात सामने आई है कि अधिकांश मतदाताओं को जमा किए गए फॉर्मों की कोई पावती नहीं मिल रही है। जहाँ चुनाव आयोग अभियान की तेज़ी का दावा कर रहा है, वहीं मतदाताओं के पास फॉर्म जमा करने का कोई सबूत नहीं है।
विशेष रूप से प्रवासी मजदूरों, जो विदेश या राज्य के बाहर काम कर रहे हैं, के लिए गणना फॉर्म जमा करना अत्यंत मुश्किल साबित हो रहा है। इससे उनके मताधिकार के छिनने और नागरिकता पर खतरे की आशंका मंडरा रही है।
दूसरी बड़ी चिंता निवास (डोमिसाइल) और जाति प्रमाण पत्र जैसे आवश्यक दस्तावेजों को जुटाने में आ रही कठिनाई को लेकर है। यदि कोई मतदाता इन दस्तावेजों को उपलब्ध कराने में असमर्थ रहता है, तो इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) स्थानीय जांच के आधार पर उसका नाम सूची में रखने या हटाने का निर्णय लेगा। दीपंकर भट्टाचार्य ने चिंता व्यक्त की कि हर विधानसभा क्षेत्र में हजारों ऐसे मतदाता हो सकते हैं जो इन ग्यारह निर्दिष्ट दस्तावेजों में से कोई भी एक प्रदान नहीं कर पाएंगे। इन मामलों का फैसला ERO के विवेक पर छोड़ना, जिसमें पारदर्शिता की कमी है, भेदभावपूर्ण और मनमाने ढंग से नाम काटने या जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार की जनता अब समझ रही है कि उनके मताधिकार पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। वह अपने इस संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष के लिए तैयार है। उन्होंने 9 जुलाई के ‘चक्का जाम’ में लोगों की व्यापक भागीदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ‘वोटबंदी’ अभियान के प्रति जनता की बेचैनी और गुस्से का प्रतीक है, साथ ही ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार’ की संवैधानिक गारंटी की रक्षा करने के उनके दृढ़ संकल्प को भी दर्शाता है।










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