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बुधवार, सितम्बर 17, 2025
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राष्ट्रव्यापी भारत बंद का व्यापक असर: मजदूरों-किसानों-छात्रों के संयुक्त आंदोलन ने किया जनजीवन प्रभावित

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ आज देशव्यापी भारत बंद का आह्वान दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (CTUs) द्वारा किया गया, जिसका असर देश के कई राज्यों में व्यापक रूप से देखा गया। इस बंद को मजदूर संगठनों के साथ-साथ किसान, छात्र और युवा संगठनों का भी जोरदार समर्थन मिला, जिन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। देश के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक परिवहन बुरी तरह प्रभावित रहा, जिससे आम यात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यूनियन नेताओं का कहना है कि यह हड़ताल उनके 17-सूत्रीय मांगपत्र के समर्थन में है, जिसमें श्रम अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा और सरकारी संपत्तियों के निजीकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं।

बिहार में मतदाता सूची पर विवाद, दक्षिण में जनजीवन ठप्प

बिहार में इस बंद को राजनीतिक रंग भी मिला, जहाँ मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) के विरोध में महागठबंधन सड़कों पर उतरा। राज्य के छह प्रमुख विपक्षी दलों, जिनमें राजद, कांग्रेस, वाम दल और पप्पू यादव की पार्टी शामिल हैं, ने मिलकर इस बंद का आह्वान किया। वहीं, ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के संयुक्त बंद का सबसे अधिक प्रभाव दक्षिण भारत के कई राज्यों में रहा, जहाँ जनजीवन काफी हद तक प्रभावित हुआ।

केरल, पश्चिम बंगाल में स्थिति गंभीर, यात्रियों को भारी परेशानी

केरल में हड़ताल ने बंद जैसा रूप ले लिया। निजी और सार्वजनिक बसों के साथ-साथ लंबी दूरी की सेवाओं के पूरी तरह ठप्प हो जाने से सैकड़ों यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। कई लोगों को अपनी यात्राएं रद्द करनी पड़ीं या वैकल्पिक साधनों की तलाश करनी पड़ी। पश्चिम बंगाल में, वामपंथी कार्यकर्ताओं और पुलिस तथा तृणमूल कांग्रेस (TMC) समर्थकों के बीच कई जिलों में झड़पें हुईं, जिसके बाद हिंसा की खबरें भी सामने आईं। हालांकि, सामान्य जनजीवन सुनिश्चित करने के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की गई। सिलीगुड़ी में सरकारी बस सेवाएं बाधित हुईं, जबकि डायमंड हार्बर और श्यामनगर में रेल सेवाओं को भी रोका गया। जलपाईगुड़ी, आसनसोल और बांकुरा जैसे शहरों में सड़क जाम करने की कोशिशें की गईं।

अन्य राज्यों में भी असर, बैंकिंग और बिजली क्षेत्र में व्यवधान की आशंका

ओडिशा के भुवनेश्वर में CITU सदस्यों ने राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे सड़क परिवहन बाधित हुआ। हैदराबाद में लाखों श्रमिकों ने बंद के समर्थन में प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर मोर्चा निकाला। बेंगलुरु में, हालांकि बीएमटीसी और केएसआरटीसी ने सेवाओं के पूर्ण रूप से बंद होने की पुष्टि नहीं की, यात्रियों को देरी या रद्द होने की संभावना के लिए तैयार रहने की सलाह दी गई।

ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन (AIBEA) और बंगाल प्रांतीय बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन जैसी यूनियनों के समर्थन के कारण बैंकिंग सेवाएं भी प्रभावित हुईं। चेक क्लीयरेंस, ग्राहक सहायता और शाखा संचालन में व्यवधान की संभावना थी, हालांकि कोई आधिकारिक बैंक अवकाश घोषित नहीं किया गया। वहीं, 27 लाख से अधिक बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों की हड़ताल में भागीदारी के कारण बिजली आपूर्ति में संभावित व्यवधान या रखरखाव और शिकायत निवारण में देरी की आशंका जताई गई।

दिल्ली में सामान्य रहा माहौल, विरोध प्रदर्शनों की खास असर नहीं

इसके विपरीत, दिल्ली में भारत बंद का खास असर देखने को नहीं मिला। कनॉट प्लेस और खान मार्केट जैसे प्रमुख बाजार सामान्य रूप से खुले रहे और दिनभर सामान्य रूप से संचालित हुए। हालांकि, ट्रेड यूनियनों ने श्रम अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा सुधारों और अन्य 17-सूत्रीय मांगों को लेकर राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में इसका प्रभाव सीमित रहा।

बिहार में ‘वोटबंदी’ के खिलाफ चक्का जाम, लोकतंत्र की रक्षा का आह्वान

बिहार में, ‘इंडिया गठबंधन’ द्वारा आहूत ‘वोटबंदी’ के खिलाफ राज्यव्यापी चक्का जाम किया गया। पटना में भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजद नेता तेजस्वी यादव, एम.ए. बेबी, डी. राजा और मुकेश सहनी के साथ एक विशाल मार्च का नेतृत्व किया। यह मार्च इनकम टैक्स गोलंबर से शुरू होकर वीरचंद पटेल पथ से होते हुए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय की ओर बढ़ा, जहाँ हजारों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने बैरिकेड लगाकर रोक दिया।

दीपंकर भट्टाचार्य ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए इस चक्का जाम को ऐतिहासिक बताया और कहा कि बिहार की जनता एसआईआर (विशेष निवेश क्षेत्र) नहीं चाहती। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग गरीबों को उनके मताधिकार से वंचित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन बिहार की जनता अपनी लोकतांत्रिक आवाज़ को दबाने नहीं देगी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी अपील की कि वह जनभावनाओं को सुने, जहाँ इस मुद्दे पर कल सुनवाई होनी है। भट्टाचार्य ने मोदी सरकार की चार श्रम संहिताओं को मजदूरों को गुलाम बनाने की साजिश बताया और कहा कि पूरा देश कॉर्पोरेट-परस्त नीतियों के खिलाफ एकजुट है।

कॉर्पोरेट लूट और श्रम संहिताओं के विरोध में देशव्यापी एकजुटता

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (AIPF) और वर्कर्स फ्रंट के कार्यकर्ताओं ने भी राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस हड़ताल में भाग लिया। वक्ताओं ने मोदी सरकार पर कॉर्पोरेट घरानों और अमेरिका के एजेंट के रूप में काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि देश की कृषि को बर्बाद करने वाले समझौते अमेरिका के साथ किए जा रहे हैं, और देश की आर्थिक संप्रभुता को खतरा है। बिजली क्षेत्र के निजीकरण के सवाल पर चिंता जताते हुए वक्ताओं ने कहा कि इससे गरीबों और किसानों से बिजली छिन जाएगी। चार श्रम संहिताओं के जरिए काम के घंटे बढ़ाने और मजदूरी कम करने की साजिश का विरोध किया गया, वहीं बिहार में मतदाता पुनरीक्षण को लोकतंत्र के दायरे को सीमित करने का प्रयास बताया गया।

कुल मिलाकर, आज का भारत बंद एक महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शन रहा, जिसने देश भर के श्रमिकों, किसानों और छात्रों की आवाज को बुलंद किया और सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए। यह आंदोलन भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है, खासकर श्रम अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर।

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