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छत्तीसगढ़ में ‘प्राथमिक शाला’ शब्द होगा इतिहास: सरकारी स्कूलों के नामों और पहचान में बड़ा बदलाव

रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ में संचालित शासकीय विद्यालयों के नाम और संरचना में ऐतिहासिक बदलाव होने जा रहा है। जल्द ही ‘प्राथमिक शाला’ जैसे पारंपरिक शब्द सिर्फ यादों में रह जाएंगे। राज्य सरकार द्वारा शिक्षा व्यवस्था के युक्तियुक्तकरण (Rationalization) की प्रक्रिया के तहत एक ही परिसर में संचालित विभिन्न स्तर के विद्यालयों को एकीकृत (मर्ज) कर दिया गया है। इसके बाद अब विद्यालयों के नाम, पहचान, और सरकारी रिकॉर्ड में बड़े स्तर पर परिवर्तन किए जा रहे हैं।

क्या है बदलाव का मुख्य उद्देश्य?
इस निर्णय का उद्देश्य है विद्यालयी शिक्षा को अधिक संगठित, समन्वित और प्रभावशाली बनाना। इससे न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाएं सरल होंगी, बल्कि छात्रों और अभिभावकों को भी एकीकृत प्रणाली का लाभ मिलेगा।

अब किस प्रकार रखे जाएंगे विद्यालयों के नाम?
नए नियमों के अनुसार, विद्यालय का नाम उस कक्षा स्तर के आधार पर निर्धारित होगा जो उसमें संचालित उच्चतम कक्षा होगी:

कक्षा 1 से 12 तक: हायर सेकंडरी स्कूल
कक्षा 1 से 10 तक: हाईस्कूल या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
कक्षा 1 से 8 तक: माध्यमिक विद्यालय
केवल कक्षा 1 से 5 तक: प्राथमिक शाला (अब सिर्फ चुनिंदा जगहों पर ही शेष रहेगी)

राजधानी रायपुर सहित अधिकांश जिलों में अब अधिकांश विद्यालय कक्षा आठ या उससे ऊपर तक संचालित हैं। इस कारण ‘प्राथमिक शाला’ शब्द अब धीरे-धीरे शैक्षणिक मानचित्र से विलुप्त होता जाएगा।

यू-डायस कोड में भी होगा बदलाव
प्रत्येक स्कूल का यूनिक यूडायस कोड (UDISE Code) अब मर्ज की गई स्कूल इकाइयों में एकीकृत होगा। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी परिसर में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर विद्यालय संचालित थे, तो अब केवल हायर सेकंडरी स्कूल का यूडायस कोड ही मान्य रहेगा।

इस संबंध में शिक्षा विभाग द्वारा आंतरिक प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है, और आगामी शैक्षणिक सत्र से पहले सभी नाम व रिकॉर्ड्स को अद्यतन (अपडेट) किया जाएगा।

सभी दस्तावेज़ों में परिलक्षित होगा परिवर्तन
विद्यालय के नाम में बदलाव केवल नाम पट्टिका तक सीमित नहीं रहेगा। विद्यार्थी की अंकसूची, प्रमाणपत्र, और अन्य शासकीय दस्तावेज़ों में भी नया नाम और यूडायस कोड दर्ज किया जाएगा। वर्तमान में स्कूलों के बाहर पुराने नाम युक्त पट्टिकाएं लगी हुई हैं जिन्हें जल्द ही हटाकर नई पहचान के अनुरूप बदला जाएगा।

जनमानस से जुड़ा एक भावनात्मक बदलाव
जहां एक ओर यह निर्णय प्रशासनिक और शैक्षणिक दृष्टि से सकारात्मक बताया जा रहा है, वहीं कई शिक्षकों, विद्यार्थियों और ग्रामीण समाज के लोगों में ‘प्राथमिक शाला’ शब्द के प्रति गहरी भावनात्मक जुड़ाव है। आजादी के बाद से बच्चों की शिक्षा का पहला पड़ाव रही ‘प्राथमिक शाला’ अब इतिहास बनने को है।

यह बदलाव छत्तीसगढ़ की शैक्षणिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण अध्याय की तरह दर्ज होगा। बेहतर प्रशासन, सुव्यवस्थित प्रबंधन और समेकित शिक्षा प्रणाली की दिशा में यह एक साहसिक और दूरदर्शी कदम है।

हालांकि, यह प्रक्रिया सिर्फ बदलाव नहीं, बल्कि शिक्षा की एक नई परिभाषा है — जो आधुनिकता, समावेशिता और सरलता को एक साथ लेकर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चलाई जा रही एक नया अनोखा अभियान है।

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