कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के कुसमुंडा क्षेत्र में एक बड़ा आंदोलन तैयार हो रहा है। पाली, पडनिया, जतराज, सोनपुरी और रिसदी गांवों के सैकड़ों ग्रामीण अपनी जमीन, रोजगार और सम्मान की लड़ाई के लिए 16 अप्रैल को हड़ताल की तैयारी में जुट गए हैं। हाल ही में पाली-पडनिया में हुई एक बैठक में ग्रामीणों ने एकजुट होकर अपनी 12 सूत्रीय मांगों को पूरा करने के लिए आवाज बुलंद करने का संकल्प लिया। यह हड़ताल न सिर्फ उनकी जायज मांगों को उठाने का माध्यम है, बल्कि उनके जीवन और भविष्य से जुड़ा एक भावनात्मक संघर्ष भी है।
हड़ताल का ऐलान: अधिकारों की पुकार
पिछले 1 अप्रैल को ग्रामीणों ने एसईसीएल मुख्यालय पर प्रदर्शन कर अपनी 12 सूत्रीय मांगें पेश की थीं। इसमें रोजगार, पुनर्वास, मुआवजा और बुनियादी सुविधाओं की मांग शामिल थी। लेकिन मांगें अनसुनी रहने से ग्रामीणों का गुस्सा भड़क उठा। अब वे 16 अप्रैल को पूरे कुसमुंडा क्षेत्र में खनन कार्य को ठप करने के लिए तैयार हैं। बैठक में हजारों लोगों को जुटाने और हड़ताल को सफल बनाने का फैसला लिया गया।
ऊर्जाधानी संगठन के अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने कहा, “16 अप्रैल का आंदोलन हमारी एकता और ताकत का प्रतीक होगा। अगर एसईसीएल के सभी क्षेत्रों में एक साथ आवाज उठेगी, तो भू-विस्थापितों के हक में फैसला जरूर आएगा।” उनकी बातों में दर्द और उम्मीद दोनों झलक रहे थे।

6ग्रामीणों की भावनाएं: “हमारा हक छीना जा रहा है”
पाली गांव की सरपंच रमशीला कंवर ने किसानों से एकजुट होकर आंदोलन में शामिल होने की अपील की। उन्होंने कहा, “हमारी जमीन पर हमारा हक है। इसे कोई नहीं छीन सकता। यह लड़ाई हमारे बच्चों के भविष्य के लिए है।” वहीं, उपसरपंच बलराम यादव ने गुस्से में कहा, “एसईसीएल की ज्यादती अब बर्दाश्त नहीं होगी। जबरदस्ती खनन का विस्तार हमें मंजूर नहीं।”
दिलहरन सारथी ने एक गंभीर मुद्दे की ओर इशारा किया। उन्होंने बताया कि छोटे खातेदारों को रोजगार देने का मामला हाईकोर्ट में लंबित है, लेकिन प्रशासन और प्रबंधन इसका इंतजार करने को तैयार नहीं। “हम इसका जवाब सड़कों पर उतरकर देंगे,” उन्होंने दृढ़ता से कहा।
अशोक पटेल ने भावुक होते हुए कहा, “हमारी जमीन गई, रोजगार गया, अब सम्मान भी छीना जा रहा है। लेकिन हम एकजुट हैं और अपने हक की लड़ाई जरूर जीतेंगे।”

हड़ताल की तैयारी: गांव-गांव होगा प्रचार
बैठक में यह भी तय हुआ कि सभी प्रभावित गांवों में हड़ताल की जानकारी पहुंचाई जाएगी। ग्रामीण घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करेंगे और 16 अप्रैल को हजारों की संख्या में खदान पर पहुंचकर उत्खनन कार्य को रोकेंगे। यह आंदोलन सिर्फ मांगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन परिवारों की कहानी है, जिनकी जिंदगी खनन के फैलाव से उजड़ रही है।
क्यों है यह आंदोलन जरूरी?
एसईसीएल के खनन कार्यों से इन गांवों के सैकड़ों परिवार प्रभावित हुए हैं। उनकी जमीन अधिग्रहण तो कर ली गई, लेकिन बदले में न रोजगार मिला, न मुआवजा और न ही पुनर्वास की ठोस व्यवस्था। पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी आवाज को दबाया जा रहा है, लेकिन अब वे चुप नहीं रहेंगे।
एक संवेदनशील नजरिया
यह हड़ताल सिर्फ एक औद्योगिक विवाद नहीं, बल्कि इंसानी जज्बातों की कहानी है। यह उन मांओं की चिंता है, जो अपने बच्चों के लिए बेहतर завтра चाहती हैं। यह उन बुजुर्गों का दर्द है, जिनकी पुश्तैनी जमीन छिन गई। यह उन युवाओं की उम्मीद है, जो रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। यह आंदोलन एक मांगपत्र से कहीं ज्यादा है—यह एक समुदाय की एकता और हौसले की मिसाल है।
16 अप्रैल को होने वाली यह हड़ताल न सिर्फ कोरबा बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक बड़ा संदेश होगी। अगर ग्रामीणों की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो यह आंदोलन और तेज हो सकता है। प्रशासन और एसईसीएल प्रबंधन के लिए यह एक चुनौती है कि वे इस संकट का हल कैसे निकालते हैं। लेकिन ग्रामीणों का7 इरादा साफ है—वे अपने हक के लिए लड़ेंगे और पीछे नहीं हटेंगे।




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