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बुधवार, मार्च 12, 2025
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कोरबा नगर पालिक निगम सभापति चुनाव: भाजपा में हार-जीत का खेल, संगठन पर उठे सवाल!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। ऊर्जा नगरी कोरबा में नगर निगम सभापति का चुनाव संपन्न हो गया है, लेकिन इसने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर भूचाल ला दिया है। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को अपने ही पार्षदों ने शिकस्त दे दी। 45 पार्षदों के भारी बहुमत के बावजूद हितानंद अग्रवाल हार गए, और नूतन सिंह ठाकुर 33 वोटों के साथ सभापति की कुर्सी पर काबिज हो गए। इस अप्रत्याशित नतीजे ने जिला से लेकर राजधानी तक संगठन में खलबली मचा दी है। आखिर यह हार किसकी नाकामी है? संगठन का अगला कदम क्या होगा? सवालों का दौर शुरू हो चुका है। 

हार से हंगामा, संगठन में सवालों की बौछार 
चुनाव से पहले सब कुछ तय माना जा रहा था। भाजपा के 45 पार्षदों की बैठक हुई, मोबाइल बंद कराए गए, और बंद कमरे में हितानंद अग्रवाल को अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया गया। लेकिन नतीजा उल्टा निकला। नूतन सिंह ठाकुर ने नामांकन दाखिल कर बाजी पलट दी। 33 पार्षदों ने उन्हें समर्थन दिया, जबकि हितानंद को हार का मुंह देखना पड़ा। अब सवाल यह है कि क्या नूतन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी, या उन्हें ही अधिकृत मान लिया जाएगा? कौन से पार्षद संगठन के फैसले के खिलाफ गए? क्या जिला संगठन और पर्यवेक्षक की जवाबदेही तय होगी? 

पर्यवेक्षक को भी लगा ‘880 वॉट का झटका’ 
चुनाव की निगरानी के लिए रायपुर से आए विधायक और पर्यवेक्षक पुरंदर मिश्रा को भी इस उलटफेर ने हैरान कर दिया। वे खुद मतदान के दौरान मौजूद थे। हार के बाद भाजपा नेताओं के बीच हंसी-मजाक भी हुआ। एक वरिष्ठ नेता ने चुटकी ली, “कोरबा में 440 नहीं, 880 वॉट का झटका लगता है।” यह हार संगठन के लिए कितना बड़ा सबक बनेगी, यह वक्त बताएगा। 

नामांकन से लेकर मतदान तक का ड्रामा 
चुनाव से पहले भाजपा नेताओं ने बैठक की। जिला अध्यक्ष मनोज शर्मा और पर्यवेक्षक की मौजूदगी में हितानंद का नाम लिफाफे से निकाला गया। सभी को उनके पक्ष में वोट देने को कहा गया। लेकिन नामांकन की आखिरी घड़ी में नूतन सिंह ठाकुर ने भी पर्चा भर दिया। नाम वापसी का समय था, पर जिला संगठन दोनों के बीच सुलह नहीं करा सका। नतीजा? दोनों मैदान में रहे, और नूतन ने जीत हासिल कर ली। 

नूतन का दावा: “मैं भाजपा का सिपाही” 
जीत के बाद नूतन सिंह ठाकुर ने कहा, “मुझे भाजपा ने पार्षद बनाया, जनता ने चुना, और अब पार्षदों ने सभापति की जिम्मेदारी दी। मैं पहले भी भाजपा का था, आज भी हूं, और आगे भी रहूंगा।” उनकी बातों में आत्मविश्वास और आभार झलक रहा था। वहीं, हितानंद अग्रवाल ने अपनी हार को संगठन का मामला बताते हुए कहा, “मैंने निर्देश का पालन किया। अब फैसला संगठन को लेना है।” 

संगठन में उठने लगीं अंदरूनी आवाजें 
इस हार ने भाजपा के भीतर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या भाजपा जिला संगठन कमजोर साबित हुआ? क्या प्रदेश नेतृत्व का फैसला पार्षदों को मंजूर नहीं था? सूत्रों की मानें, तो कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि एक प्रत्याशी ने नकदी और चेक बांटकर माहौल अपने पक्ष में करने की भरसक कोशिश की। सच क्या है, यह तो जांच का विषय है। 

कांग्रेस और निर्दलीय की भूमिका 
67 पार्षदों और महापौर के वोटों में से कांग्रेस के 11 और निर्दलीय 11 पार्षदों की भूमिका भी अहम हो सकती है। क्या वे किसी एक पक्ष का समर्थन करेंगे? यह सवाल भी चर्चा में है। 

यह चुनाव सिर्फ राजनीति का खेल नहीं, बल्कि पार्टी संगठन में विश्वास और एकता की परीक्षा भी था। कोरबा की जनता अपने नेताओं से विकास और पारदर्शिता की उम्मीद रखती है। सभापति की कुर्सी पर बैठने वाला शख्स न सिर्फ पार्टी संगठन का प्रतिनिधि है, बल्कि कोरबा शहर की उम्मीदों का प्रतीक भी। इस हार-जीत ने कई परिवारों, कार्यकर्ताओं और नेताओं की भावनाओं को झकझोरा है। 

अब आगे क्या? 
दोपहर-शाम तक नतीजों पर अंतिम मुहर भी लग जाएगी। लेकिन असली सवाल यह है कि भाजपा अपनी इस अंदरूनी हार से सबक लेगी या इसे भुलाकर आगे बढ़ेगी? वैसे कोरबा की सियासत में यह घटना लंबे वक्त तक याद रखी जाएगी। जनता की नजर अब इस बात पर है कि नूतन सिंह ठाकुर इस जिम्मेदारी को कैसे निभाते हैं, और भाजपा संगठन अपनी अंदरूनी एकता को कैसे बचाता है?

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