कोरबा (पब्लिक फोरम)। कोरबा, जिसे “काले हीरे की धरती” कहा जाता है, अपने कोयले और बिजली उत्पादन के लिए मशहूर है। लेकिन यहां के ग्रामीणों के लिए यह धरती अब एक अभिशाप बन गई है। एचटीपीएस पावर प्लांट के नवागांव-झाबू राखड़ डेम से उड़ने वाली राख ने ग्रामीणों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है। राखड़ के कारण सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे ग्रामीणों ने गुरुवार को प्रदर्शन कर प्रबंधन को अपनी आवाज सुनाई।
ग्रामीणों का कहना है कि राखड़ के प्रदूषण से उनकी सेहत बिगड़ रही है। बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। पिछले कई सालों से ग्रामीण प्रबंधन से समस्या का समाधान मांग रहे हैं, लेकिन हर बार सिर्फ वादे ही किए जाते हैं। पिछली बार कटघोरा के तत्कालीन विधायक पुरुषोत्तम कंवर ने भी ग्रामीणों का समर्थन किया था, लेकिन सड़क मरम्मत जैसे विकास कार्यों की गुणवत्ता इतनी खराब थी कि कुछ ही महीनों में सड़कें उखड़ गईं।
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इस बार ग्रामीणों ने सिर्फ जुबानी वादों से संतुष्ट होने से इनकार कर दिया। उन्होंने लिखित आश्वासन की मांग की, ताकि प्रबंधन अपने वादों से मुकर न सके। लगभग चार घंटे तक चले प्रदर्शन के बाद एचटीपीएस प्रबंधन के अधिकारी राजेश पांडे ने मौके पर पहुंचकर कुछ अहम फैसले लिए। राखड़ डेम पर पानी छिड़काव के लिए फायर दमकल वाहन बुलाया गया और तुरंत छिड़काव शुरू कराया गया।
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साथ ही, ग्रामीणों की स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए डॉक्टर और एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। हर बुधवार को गांव में मुफ्त मेडिकल कैंप लगाने का भी ऐलान किया गया। ग्रामीणों ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई, जिसके बाद स्कूलों में विशेष सुरक्षा उपाय करने का वादा किया गया।
ग्रामीणों की मांगें:-
1. राखड़ डेम पर नियमित पानी छिड़काव किया जाए।
2. गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाई जाएं।
3. स्कूलों में विशेष सुरक्षा उपाय किए जाएं।
4. राखड़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई की जाए।
5. एनटीपीसी की तर्ज पर प्रभावित ग्रामीणों को आर्थिक सहायता दी जाए।
ग्रामीणों ने साफ कह दिया है कि अगर 15 दिनों के अंदर प्रबंधन ने अपने वादों को पूरा नहीं किया, तो वे बड़े आंदोलन पर उतरेंगे। उन्होंने कहा, “यह हमारी अंतिम चेतावनी है। अगर समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो हम सीएसईबी प्रबंधन के खिलाफ बड़ा आंदोलन करेंगे।”
कोरबा के ग्रामीणों का संघर्ष सिर्फ राखड़ प्रदूषण से नहीं, बल्कि अपने अधिकारों और स्वास्थ्य के लिए है। प्रबंधन के आश्वासन से उन्हें थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन अब ग्रामीणों की नजर प्रबंधन के कदमों पर है। अगर समय रहते समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।
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