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उत्तर प्रदेश उपचुनाव: क्या बसपा अपनी रणनीति से वोट बैंक फिर से मजबूत कर पाएगी?

लखनऊ (पब्लिक फोरम)। उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर बुधवार को उपचुनाव के लिए मतदान होगा। इस बार कांग्रेस चुनावी मैदान से बाहर रहकर समाजवादी पार्टी (सपा) का समर्थन कर रही है, जबकि मुख्य मुकाबला भाजपा, सपा और बसपा के बीच है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उपचुनाव में अपने सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर भरोसा करते हुए उम्मीदवार उतारे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि बसपा अपनी रणनीति में कितनी सफल हो पाती है।
बसपा के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं ये उपचुनाव?

बसपा के लिए यह उपचुनाव कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं।

1. वोट बैंक पर पकड़ साबित करनी होगी: हाल के वर्षों में बसपा का वोट प्रतिशत तेजी से घटा है। ऐसे में पार्टी को यह दिखाना होगा कि उसका कोर वोट बैंक आज भी उसके साथ है।
2. मुस्लिम उम्मीदवारों की स्वीकार्यता: मीरापुर और कुंदरकी जैसी सीटों पर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। अब यह देखना होगा कि इन उम्मीदवारों को जनता कितना पसंद करती है।

बसपा के उम्मीदवार और सीटें
बसपा ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
कटेहरी: अमित वर्मा
फूलपुर: जितेंद्र कुमार सिंह
मीरापुर: शाहनजर
सीसामऊ: वीरेंद्र कुमार शुक्ला
करहल: डॉ. अवनीश कुमार शाक्य
कुंदरकी: रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा
गाजियाबाद: परमानंद गर्ग
मझवां: दीपक तिवारी
खैर: डॉ. पहल सिंह

पिछले चुनावों में बसपा का प्रदर्शन
बसपा के लिए हाल के चुनाव परिणाम चिंताजनक रहे हैं।
2017 विधानसभा चुनाव: 22.23% वोट

2022 विधानसभा चुनाव: 12.88% वोट

2019 लोकसभा चुनाव: 19.43% वोट

2024 लोकसभा चुनाव: 9.35% वोट

लगातार गिरते वोट प्रतिशत ने बसपा के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह चर्चा जोरों पर है कि पार्टी का कोर वोट बैंक उससे दूर होता जा रहा है। हालांकि, बसपा प्रमुख मायावती बार-बार यह दावा करती रही हैं कि दलित, शोषित और वंचित वर्ग अब भी पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा है।

क्या सोशल इंजीनियरिंग काम करेगी?
बसपा की यह रणनीति इस उपचुनाव में परखी जाएगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ज्यादातर सीटों पर तीसरे या चौथे स्थान पर रही थी। सिर्फ खैर सीट पर ही पार्टी दूसरे स्थान पर आ पाई थी। मायावती का सोशल इंजीनियरिंग मॉडल, जो जातिगत संतुलन को साधने पर केंद्रित है, इस बार कितना सफल होगा, यह परिणाम बताएंगे।

क्या बसपा की राह आसान है?
बसपा को अपने मतदाताओं को फिर से प्रेरित करना होगा। सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों के बीच पार्टी को यह सिद्ध करना होगा कि वह अब भी एक मजबूत विकल्प है। उपचुनाव के नतीजे यह तय करेंगे कि बसपा अपनी खोई जमीन वापस पाने की ओर कदम बढ़ा रही है या उसका ग्राफ और गिरने वाला है।

उत्तर प्रदेश के ये उपचुनाव केवल सीटों की लड़ाई नहीं हैं, बल्कि यह बसपा और अन्य दलों के भविष्य की दशा-दिशा तय करेंगे। मायावती की नेतृत्व क्षमता और पार्टी की रणनीतिक मजबूती इस परीक्षा में कितनी खरी उतरती है, यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।

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