नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। सुप्रीम कोर्ट ने 29 फरवरी को तमिलनाडु के तूतीकोरिन स्थित वेदांता समूह के तांबा प्रगलन संयंत्र को पुनः खोलने की याचिका खारिज कर दी है। यह संयंत्र मई 2018 से बंद है, जब इसके कारण उत्पन्न प्रदूषण को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में पुलिस फायरिंग के चलते 13 लोगों की मौत हो गई थी।
क्यों हुआ वेदांता संयंत्र बंद?
मई 2018 में तूतीकोरिन स्थित इस संयंत्र से होने वाले कथित प्रदूषण ने स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाला। इसके विरोध में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए, जो हिंसक रूप ले गए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस द्वारा गोलीबारी की गई, जिसमें 13 निर्दोष प्रदर्शनकारियों की जान चली गई। इस घटना ने देशभर में चिंता और आक्रोश पैदा किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ (अब सेवानिवृत्त), न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वेदांता की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, “रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के नियमों के तहत समीक्षा का कोई आधार नहीं बनता। इसलिए, याचिका खारिज की जाती है।”
पर्यावरण बनाम औद्योगिक विकास
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य और पर्यावरण का संरक्षण सर्वोपरि है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि कानून का पालन करते हुए न्याय और मानवीय संवेदनाएं प्राथमिकता में रहें।
वेदांता की प्रतिक्रिया
वेदांता समूह ने संयंत्र को पुनः खोलने के लिए यह दावा किया था कि तांबा उत्पादन के लिए इस संयंत्र की आवश्यकता है और यह क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को सुधारने में योगदान देगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से न्यायोचित नहीं माना।
मानवीय और पर्यावरणीय दृष्टिकोण
तूतीकोरिन के निवासियों के लिए यह फैसला उनके जीवन और स्वास्थ्य के प्रति एक जीत के समान है। संयंत्र के बंद होने से पर्यावरण को हुए नुकसान में कमी आई है, लेकिन औद्योगिक विकास और रोजगार के अवसरों पर असर भी पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्याय, पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है। यह दिखाता है कि औद्योगिक विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे मानवीय और पर्यावरणीय मूल्यों की कीमत पर नहीं किया जा सकता। यह घटना सरकार और उद्योगों के लिए यह सीखने का अवसर भी है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच तालमेल बनाना कितना अनिवार्य है।
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