गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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गुजरात हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलने का रास्ता साफ

अहमदाबाद (पब्लिक फोरम)। गुजरात उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्ल्यूडब्ल्यू) और सहायिकाओं (एडब्ल्यूएच) को स्थायी सरकारी कर्मचारी के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है। इस फैसले का लाभ न केवल गुजरात के 1 लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मिलेगा, बल्कि देशभर में 24 लाख से अधिक महिलाओं के अधिकारों को भी बल मिलेगा।
30 अक्टूबर को जारी इस आदेश में न्यायमूर्ति निखिल करियल ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे संयुक्त रूप से एक नीति तैयार करें, जिसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सरकारी सेवाओं में शामिल कर उनकी नौकरियों का नियमितीकरण किया जाए। इसके तहत, इन महिलाओं को तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के लिए तय न्यूनतम वेतनमान का लाभ देने का भी निर्देश दिया गया है। यह आदेश गुजरात सिविल सेवा (वर्गीकरण और भर्ती) (सामान्य) नियम, 1967 के तहत दिया गया है।

अभी तक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास सेवा) योजना के तहत मानदेय मिलता था, जो तीसरी और चौथी श्रेणी के कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन से भी कम था। वर्तमान में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को 10,000 रुपये और सहायिकाओं को 5,500 रुपये का मानदेय मिलता है, जबकि उन्हें प्रतिदिन चार घंटे कार्य करना होता है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इन महिलाओं को बकाया राशि का भुगतान करने का भी आदेश दिया, जिसकी गणना याचिका दायर करने की तिथि से तीन वर्ष पूर्व से की जाएगी।
फैसले में न्यायालय ने कहा, “सरकार आईसीडीएस जैसे कार्यक्रमों पर गर्व तो करती है, लेकिन इस योजना से जुड़े कार्यकर्ताओं को उनके श्रम का समुचित पारिश्रमिक नहीं मिलता।” कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस निर्णय को छह महीने के भीतर लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें ठोस नीति बनाएं। जब तक यह नीति तैयार नहीं होती, तब तक याचिकाकर्ताओं को तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के न्यूनतम वेतनमान के अनुसार भुगतान सुनिश्चित किया जाए।

यह निर्णय उन सैकड़ों याचिकाओं के जवाब में आया है, जिन्हें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने 2015 में न्यायालय के समक्ष रखा था। वे पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से सेवा नियमितीकरण और न्यूनतम वेतन की मांग कर रही थीं, साथ ही उन्होंने अपने कार्य और जिम्मेदारियों के आधार पर उचित वेतनमान की मांग भी की थी। न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात को भी स्पष्ट किया कि इन कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारियों की तुलना में वेतन और सुविधाओं में भारी असमानता का सामना करना पड़ता है।
इस निर्णय ने लाखों महिलाओं को न्याय की नई आशा दी है, जो अपने मेहनत और समर्पण के लिए लंबे समय से उचित मान्यता की हकदार थीं।

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