कोरबा/कटघोरा (पब्लिक फोरम)। कटघोरा वन मंडल के ऐतमानगर रेंज के ग्राम बंजारी के आश्रित कटमोरगा गांव की 90 वर्षीय मथनकुंवर का घर पांच माह पहले हाथियों के हमले में तहस-नहस हो गया। इस हादसे के बाद मजबूरन मथनकुंवर अपने बेटे के घर पर शरण लीं, लेकिन दुर्भाग्य से हाथियों के झुंड ने उनके बेटे के घर की दीवारें भी तोड़ दीं। घटना के बाद वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर नुकसान का जायजा लिया और मुआवजे का प्रकरण भी बनाया गया, लेकिन अब तक मथनकुंवर को मुआवजा राशि नहीं मिल सकी है। वृद्धा की जिंदगी मुआवजे की आस में कट रही है, और वह दर-बदर भटकने पर मजबूर हैं।
हाथियों का आतंक, ग्रामीणों में दहशत
कटमोरगा गांव के निवासी मथनकुंवर के घर की तबाही की तस्वीरें दिल दहला देने वाली हैं। हाथियों के लगातार हमले से ग्रामीणों के बीच खौफ का माहौल है, और वे रातों को मशाल लेकर जागते रहते हैं। मथनकुंवर जैसे ग्रामीण, जो अपनी आजीविका के लिए सब्जी बेचकर गुजारा करते हैं, इन घटनाओं के बाद बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। बेटे के घर की भी दीवारें टूटने के बाद उनके पास कोई स्थायी ठिकाना नहीं बचा है। वन विभाग की टीम ने घटनास्थल पर मुआवजे का प्रकरण तैयार किया, लेकिन पांच महीने बीतने के बाद भी उन्हें सहायता राशि नहीं मिल पाई है।
लापरवाही का खामियाजा भुगतते ग्रामीण
मथनकुंवर के घर की दुर्दशा और मुआवजे के इंतजार ने कटघोरा वन मंडल में विभागीय लापरवाही को उजागर किया है। वन मंडल के अधिकारियों द्वारा बार-बार मुआवजा दिलाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन उनकी हकीकत तब सामने आती है जब सर्द रातों में ग्रामीण खुले में सोने पर मजबूर होते हैं। कई बार शिकायतों के बावजूद विभागीय कर्मचारी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं, जिसका खामियाजा वन क्षेत्र के ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है।
वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल
कटघोरा वन मंडल में हाथियों का आतंक वर्षों से जारी है, लेकिन अब तक प्रशासन और वन विभाग ने इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। वन विभाग केवल प्रयोग के नाम पर पैसे खर्च करता रहा है, जिसका फायदा ग्रामीणों को होता नहीं दिखता। डीएफओ कटघोरा ने हाथियों पर निगरानी और मुआवजा देने की बात कही है, लेकिन इन दावों की सच्चाई जंगल के उन टूटे मकानों और बाहर सोने पर मजबूर ग्रामीणों के चेहरे पर साफ दिखाई देती है।
यह घटना न सिर्फ मथनकुंवर की बेबसी को उजागर करती है, बल्कि शासन और वन विभाग की उदासीनता पर भी सवाल खड़े करती है। ग्रामीणों की सुरक्षा और हाथियों के आतंक से निपटने के लिए ठोस कदम उठाना अब बेहद जरूरी है।
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