रायपुर (पब्लिक फोरम)। राज्य में हाल ही में घटित एक दर्दनाक और चौंकाने वाली घटना ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता, कानून व्यवस्था और पुलिस प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। चोरी के लोहे की जांच करने पहुंचे पत्रकारों पर कबाड़ियों द्वारा किया गया हमला, न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली बल्कि पुलिस की निष्पक्षता पर भी प्रश्न खड़ा करता है।
टाटीबंध-बिलासपुर बायपास रोड पर एक कबाड़ के यार्ड में बड़े पैमाने पर चोरी के लोहे की खरीद-फरोख्त की सूचना मिलने पर पत्रकारों का एक दल वहां पहुंचा। उन्होंने देखा कि एक ट्रेलर से लोहा उतारा जा रहा था और एक व्यक्ति गैस कटर से सरियों को काट रहा था। पत्रकारों ने इस गतिविधि का वीडियो बनाना शुरू किया, लेकिन तभी यार्ड के कर्मचारियों ने उन पर हमला बोल दिया। एक महिला पत्रकार सहित सभी पत्रकारों के साथ मारपीट की गई, उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए और उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई।
पुलिस का संदिग्ध रवैया
घटना के बाद जब पत्रकार अपनी शिकायत लेकर उरला थाने पहुंचे, तो उन्हें न्याय के बजाय निराशा हाथ लगी। थाने के प्रभारी अधिकारी ने एफआईआर दर्ज करने के बजाय पत्रकारों को कबाड़ियों से समझौता करने की सलाह दी। इस रवैये ने पुलिस की निष्पक्षता और उनकी नीयत पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या पुलिस प्रशासन कबाड़ियों के साथ मिली हुई है, या यह केवल प्रशासन की लापरवाही है?
समस्या की जड़ में क्या है?
यह घटना कोई अकेली घटना नहीं है। छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में कबाड़ियों द्वारा चोरी का माल खुलेआम खरीदा और बेचा जाता है, और प्रशासन इस पर नज़र नहीं रखता। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस और कबाड़ियों के बीच गहरी सांठगांठ है, जो चोरी के सामान की खरीद-फरोख्त को बढ़ावा देती है। इस व्यवस्था में सबसे अधिक नुकसान मीडिया और समाज के उन नागरिकों का होता है, जो सच्चाई उजागर करने का प्रयास करते हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कार्रवाई की मांग
इस हमले के बाद पत्रकारों ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को मामले की शिकायत दी है और मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं, जिनमें पीसीसी प्रमुख दीपक बैज और पूर्व मंत्री सत्य नारायण शर्मा शामिल हैं, ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। अब पूरे प्रदेश की नज़र प्रशासन की ओर है, जो इस मामले में आगे क्या कार्रवाई करता है, यह देखना बाकी है।
सुरक्षा का सवाल और न्याय की मांग
इस घटना ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक गंभीर सवाल खड़ा किया है। समाज के हर वर्ग से दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग उठ रही है। यह घटना हमें इस सच्चाई का एहसास दिलाती है कि लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता और सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं, तो समाज में सच्चाई की आवाज़ दबाई जा सकती है। इसलिए, इस मामले में त्वरित और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न दोहराई जाएं।
यह घटना छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियों और पुलिस की लापरवाही को उजागर करती है। अगर जल्द ही सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह स्थिति और खराब हो सकती है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सच्चाई को सामने लाना है, और उसे दबाने का कोई भी प्रयास लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है। समाज को यह समझना होगा कि पत्रकारों की सुरक्षा हमारी अपनी सुरक्षा है।
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