गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी हिंसा: जनता की आवाज़ या राजनीतिक षड्यंत्र?

बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों ने एक भयानक मोड़ ले लिया है। रविवार को हुई हिंसा में 90 लोगों की जान चली गई, जिसमें 13 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। यह घटना देश के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है।

हिंसा का तांडव
सिराजगंज में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, जहां 18 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। ढाका सहित कई शहरों में सरकार समर्थकों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें हुईं। छात्र संगठनों द्वारा बुलाए गए ‘पूर्ण असहयोग आंदोलन’ ने हिंसा को और भड़का दिया।

आंदोलन का नया रूप
शुरू में आरक्षण विरोधी प्रदर्शन अब सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया है। छात्र नेता प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। उन्होंने लोगों से टैक्स न चुकाने और सार्वजनिक परिवहन बंद करने का आह्वान किया है।

सरकार की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हिंसा में शामिल लोगों को आतंकवादी करार दिया है। सरकार ने ढाका में कर्फ्यू लगा दिया है और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। तीन दिन की सरकारी छुट्टी की घोषणा भी की गई है।

सेना का रोल
पूर्व सैन्य अधिकारियों ने सुरक्षा बलों से छात्रों पर कार्रवाई न करने की अपील की है। पूर्व आर्मी चीफ इकबाल करीब भूईयां ने कहा, “सशस्त्र बलों को अपने कैंपों में लौटना चाहिए और आपात स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।”

आगे की राह
छात्र नेताओं ने ‘ढाका तक लॉन्ग मार्च’ की घोषणा की है। वे पीड़ितों के लिए स्मारक भी बनाना चाहते हैं। हालांकि, न्यायालय ने प्रदर्शनकारियों पर सीधे गोली चलाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
यह आंदोलन आरक्षण से शुरू होकर अब एक बड़े राजनीतिक संघर्ष में बदल गया है। सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता खतरे में है।

बांग्लादेश के इस संकट का समाधान शांतिपूर्ण वार्ता और समझौते से ही निकल सकता है। दोनों पक्षों को अपने मतभेदों को सुलझाने और देश के हित में काम करने की ज़रूरत है। क्या यह आंदोलन जनता की आवाज़ है या कोई राजनीतिक षड्यंत्र, अब यह तो समय ही बताएगा।

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