शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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भारतीय रेल दुर्घटनाओं के लिए उच्च अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने की मांग: 11 रेलवे संगठनों और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त बयान

रेल सुरक्षा की अनदेखी और सिस्टम की विफलता पर उठाए गंभीर सवाल

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारत की रेल सेवाओं में लगातार बढ़ती दुर्घटनाओं ने यात्रियों और रेल कर्मचारियों के मन में गहरा भय पैदा कर दिया है। रेलवे सुरक्षा नियमों का उल्लंघन, खाली पदों की भरपाई में देरी, और उच्च अधिकारियों द्वारा रेलकर्मियों पर दोषारोपण की संस्कृति ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है।

रेलवे दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी और उच्च अधिकारियों की जवाबदेही
भारत तेजी से रेल दुर्घटनाओं की राजधानी बनता जा रहा है। चाहे वह टक्कर हो या अन्य हादसे, इनमें होने वाली मौतें, गंभीर चोटें और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान लगातार बढ़ रहा है। दुर्घटनाओं के बाद, बिना किसी जांच के उच्च अधिकारी तुरंत लोको पायलट, स्टेशन मास्टर, ट्रेन मैनेजर, और सिग्नलिंग स्टाफ को दोषी ठहरा देते हैं, जो अक्सर खुद दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं या घायल होते हैं और अपनी बात नहीं रख पाते।

हादसों की झड़ी

1. 17 जून 2024: पश्चिम बंगाल के रंगापानी और छात्तर हाट स्टेशनों के बीच एक मालगाड़ी और कंचनजंगा एक्सप्रेस की टक्कर में लोको पायलट, ट्रेन मैनेजर और 14 यात्रियों की मौत हो गई, जबकि लगभग 50 लोग घायल हो गए। रेलवे बोर्ड के सीईओ और चेयरपर्सन ने तत्काल मालगाड़ी के लोको पायलट को दोषी ठहरा दिया, जबकि रेल सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस) की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई थी।
2. 29 अक्टूबर 2023: आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में दो यात्री ट्रेनों की टक्कर में रेल मंत्री ने दावा किया कि लोको पायलट और सहायक लोको पायलट क्रिकेट मैच देख रहे थे। बाद में सीआरएस की रिपोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया।

संकेत व्यवस्था की विफलता
कंचनजंगा एक्सप्रेस दुर्घटना के समय स्वचालित संकेत प्रणाली विफल हो गई थी, जिसे एक निजी कंपनी, सिमेंस लिमिटेड द्वारा स्थापित किया गया था। भारतीय रेलवे के नियमों के अनुसार, नई संकेत प्रणाली की स्थापना के बाद, लोको पायलटों को इसके बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। हालांकि, पूरे भारतीय रेलवे में इस प्रशिक्षण के लिए कोई एकरूपता नहीं है, जिससे लोको पायलट और सहायक लोको पायलट नई संकेत प्रणाली और उसकी विफलता के समय की जाने वाली प्रक्रियाओं को ठीक से नहीं समझ पाते।
प्रशासनिक अनियमितताएं
उच्च रेलवे अधिकारी खुद भी ट्रेन संचालन के जटिल नियमों को ठीक से नहीं जानते हैं। उदाहरण के लिए, एक दुर्घटना के बाद पूर्वी रेलवे के उच्च अधिकारियों की बैठक में एक सर्कुलर जारी किया गया जिसमें ‘T/A 912’ फॉर्म के उपयोग को निलंबित कर दिया गया था। अगले ही दिन, एक नया नोटिफिकेशन जारी कर इसे ‘गलत और वापस लिया गया’ घोषित किया गया।

सुरक्षा कर्मचारियों की कमी और कार्यभार
कंचनजंगा दुर्घटना में शामिल मालगाड़ी के लोको पायलट को लगातार तीन रात की ड्यूटी के बाद चौथी रात को अचानक ड्यूटी पर बुला लिया गया। सुरक्षा समिति की सिफारिशों के बावजूद, रेलवे अधिकारी लोको पायलटों और सहायक लोको पायलटों से लगातार तीन से अधिक रात की ड्यूटी कराते हैं, जिससे उनकी थकान और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
निजीकरण और आर्थिक लाभ की होड़
भारतीय रेलवे अब एक निजी कंपनी की तरह चलाई जा रही है, जो सिर्फ लाभ पर ध्यान दे रही है और यात्रियों और कर्मचारियों की सुरक्षा और सुविधा की उपेक्षा कर रही है। रेलवे के सामाजिक दायित्व को नजरअंदाज कर महंगे कोच और वातानुकूलित ट्रेनें शुरू की जा रही हैं, जबकि सामान्य श्रेणी के कोचों और ट्रेनों में कटौती की जा रही है।

संघर्ष और मांगे
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU), ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) और अन्य संघों ने निम्नलिखित मांगें उठाई हैं:
1. दुर्घटनाओं के लिए मंत्रियों और उच्च रेलवे अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाए।
2. सभी सुरक्षा नियमों का उल्लंघन बंद किया जाए और ऐसा करने वालों को कड़ी सजा दी जाए।
3. सुरक्षा श्रेणी के सभी खाली पदों को भरा जाए।
4. नए संसाधनों और नई लाइनों के अनुसार सुरक्षा श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए।
इन मांगों को पूरा किए बिना भारतीय रेलवे की सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित नहीं की जा सकती।

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