शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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जैव विविधता कानून में प्रस्तावित संशोधन जन विरोधी : किसान सभा

स्पष्ट है भविष्य में जैव संरक्षण के नाम पर आदिवासियों के विस्थापन की योजनाएं भी सामने आयेंगी

रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने जैव विविधता कानून, 2001 में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को जन विरोधी और राष्ट्र विरोधी करार दिया है और इसे वापस लेने की मांग की है।

आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि मोदी सरकार जिस तरीके से इस देश की सार्वजनिक संपत्तियों को बेच रही है और जल, जंगल, जमीन और स्थानीय स्वशासन के अधिकार से आदिवासी समुदाय को वंचित कर रही है, उससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि जैव विविधता के क्षेत्र में विदेशी निवेश का असली मकसद इन बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा को कॉरपोरेटों के हाथों में सौंपना ही है।

उन्होंने कहा है कि जैव अधिकार कानून, 2001 और वन अधिकार मान्यता कानून, 2006 मूलतः वन और वनों में निवासरत समुदायों के बीच पारस्परिक निर्भरता को मान्यता देते हैं, जबकि प्रस्तावित संशोधन इस मान्यता को खत्म करते हैं और स्थानीय आदिवासी समुदायों को जैव विविधता संरक्षण और संवर्धन के लिए समस्या के रूप में चिन्हित करते हैं। इससे स्पष्ट है कि भविष्य में जैव संरक्षण के नाम पर आदिवासियों के विस्थापन की योजनाएं भी सामने आएंगी। वनाधिकार कानून की धारा-5 में ग्राम सभाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में मौजूद सामुदायिक वन संसाधनों का इस्तेमाल करने और उनका नियंत्रण व प्रबंधन करने का अधिकार दिया गया है। ये प्रस्तावित संशोधन इस अनुच्छेद को भी निष्प्रभावी करते हैं। इस प्रकार अपने सार में ये संशोधन आदिवासी विरोधी भी है।

किसान सभा नेताओं ने कहा कि देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियां हमारे देश की जैविक संपदा को लूटने और अपने कॉर्पोरेट मुनाफे बढ़ाने के लिए प्राकृतिक वनों पर अपना अबाध नियंत्रण स्थापित करना चाहती हैं। प्रस्तावित संशोधन इस कॉर्पोरेटपरस्त मंशा को पूरा करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इसके लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के लोकतांत्रिक स्वरूप को भी नष्ट किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित ये संशोधन छत्तीसगढ़ के हितों के खिलाफ है, जो जैव विविधता से परिपूर्ण हैं और जहां के स्थानीय आदिवासी समुदायों का जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के साथ सीधा टकराव चल रहा है और वे निर्मम दमन के शिकार हो रहे हैं।

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने प्रदेश की जैव विविधता, पर्यावरण और आदिवासी हितों के संरक्षण के लिए चिंतित सभी ताकतों से अपील की है कि वे जैव विविधता कानून में प्रस्तावित कॉर्पोरेटपरस्त और आदिवासी विरोधी संशोधनों का तीखा विरोध करें, ताकि छत्तीसगढ़ की कॉरपोरेटी लूट पर अंकुश लगाया जा सके।

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