उत्तर प्रदेश में मतदान के तीसरे चरण तक पहुंचने से पहले ही संघ-भाजपा का दम फूल गया लगता है। इसके लक्षण एक नहीं, अनेक हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण लक्षण तो यही है कि पहले दो चरणों में मतदाताओं के रुझान और तीसरे चरण के प्रचार तक आम तौर पर मतदाताओं के मूड को देखकर, भाजपा के शीर्ष नेताओं की प्रचार सभाओं तक में चुनाव के मुख्य मुद्दे, एक खास दिशा में बदल गए हैं। और शीर्ष नेताओं से भी बढ़कर खुले तरीके से जमीनी स्तर पर, भाजपा उम्मीदवारों के प्रचार का मुख्य स्वर और मुद्दे, जाहिर है कि खुल्लमखुल्ला बहुसंख्यकवादी सांप्रदायिक दुहाई की ओर खिसक गए हैं।
इसके प्रमुख कारणों मेें से एक, जनता के मूड के जमीनी इनपुटों के अलावा, खुफिया विभाग से मिलीं, पहले दो चरणों के मतदान में भाजपा के बुरी तरह पिछड़ने की जानकारियों को माना जा रहा है। लखनऊ तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश व रुहेलखंड में अनेक केंद्रों से प्रकाशित, एक स्थानीय दैनिक की खबर पर अगर विश्वास करें तो, पहले दो चरणों में पिछले चुनाव के मुकाबले भाजपा के बहुत भारी घाटे में रहने की खुफिया विभाग की रिपोर्ट के बाद फौरन हरकत में आए, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने उत्तर प्रदेश के आरएसएस के सभी पदाधिकारियों की वर्चुअल बैठक कर खतरे की घंटी बजा दी और उन्हें आगे के चरणों में पूरी ताकत झोंक देने का निर्देश दे दिया। ऊपर से लेकर नीचे तक भाजपा नेताओं के ज्यादा से ज्यादा बिगड़ते स्वर, उनके अपने हिसाब से पूरी ताकत झोंक देने का ही हिस्सा लगते हैं।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के प्रचार पर सांप्रदायिक रंग गहरा से गहरा होने की चर्चा को हम दोहराना नहीं चाहेेंगे। हां! इतना जरूर याद रखा जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के संदर्भ में भाजपा की शीर्ष तिकड़ी—मोदी, शाह और योगी—के प्रचार की मुख्य थीम के रूप में, विकास आदि के दावों तथा वादों को पीछे कर के, जिस तरह अपने मुख्य-विरोधी, सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को ‘दंगा राज, माफिया राज, गुंडा राज’ का पर्याय बनाने की और योगी के डबल इंजन राज को ठीक इन्हीं से मुक्ति दिलाने वाला बताने की कोशिशें की जाती रही हैं, खुद उनमें एक स्पष्ट सांप्रदायिक दावा निहित रहा है। और इसे छुपाने की नहीं बल्कि रेखांकित करने की ही पूरी कोशिशें की जा रही थीं।
मुजफ्फरनगर के 2013 के दंगे की शुद्घ हिंदुत्ववादी प्रस्तुति और कैराना आदि से हिंदुओं के पलायन के झूठ से कथित गुंडा, माफिया, दंगा को सीधे जोड़ने के जरिए, इन शब्दों में और आम तौर पर कानून व व्यवस्था के विमर्श में, स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक अर्थ भर दिया गया है। तिकड़ी ने मुजफ्फरनगर दंगे के लिए आरोपित भाजपाई नेताओं की पीठ ठोकने के जरिए, जिन्हें मोदी ने अपने मंत्रिमंडल तक में जगह दी थी, इस सांप्रदायिक अर्थ को ज्यादा से ज्यादा मुखर कर दिया। अमित शाह ने आजम खान समेत, तमाम कद्दावर मुस्लिम नेताओं को नाम लेकर, गुंडा, माफिया आदि करार देकर, इसे और धार दे दी, जबकि तिकड़ी के तीसरे फलक, योगी ने शुरूआत ही इस बार के चुनाव को 20 फीसदी बनाम 80 फीसदी के बीच लड़ाई घोषित करने से की थी।
बेशक, प्रधानमंत्री मोदी भी अपने दोनों संगियों से ज्यादा पीछे रहने वाले नहीं थे। तीसरे चरण के मतदान से पहले, सीतापुर की अपनी सभा में प्रधानमंत्री भी, भाजपा के विरोधियों को परिवारवाद नाम पर हमले को निशाना बनाने से ही संतुष्ट नहीं हो गए। उन्होंने विरोधियों को ‘दंगा राज, माफिया राज, गुंडा राज’ का पर्याय बताने के बाद, यह जोड़ना भी बहुत जरूरी समझा कि योगी की सत्ता में वापसी का अर्थ, इन सब से आजादी के अलावा जाहिर है कि हिंदुओं के लिए ‘अपने धार्मिक त्यौहार मनाने की आजादी’ भी होगा! प्रधानमंत्री का इससे ज्यादा खुला सांप्रदायिक इशारा तो, उनके पालतू चुनाव आयोग के लिए भी हजम करना मुश्किल हो जाता।
फिर भी, जमीनी स्तर पर जो कुछ हो रहा है, संघ-भाजपा के प्रचार की लुढ़कन की पूरी हकीकत तो सिर्फ वही बयां करता है। वैसे तो भाजपा उम्मीदवारों के अपने प्रचार के क्रम में हिंदू वोट पुख्ता तथा एकजुट करने के लिए, खुलेआम सांप्रदायिक और खासतौर पर मुस्लिम विरोधी बयानबाजी करना, एक तरह से नॉर्म ही बन गया है। इस पैंतरे पर भाजपा की निर्भरता कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा एक इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भाजपा ने, बाकायदा एक मुस्लिम प्रकोष्ठ बनाकर मुसलमानों के एक हिस्से तक पहुंच बनाने की अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद, इस चुनाव में भी, उत्तर प्रदेश में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है।
हां! इस मुस्लिम-विमुश मुद्रा को बनाए रखते हुए भी, मुस्लिम मतदाताओं के बीच कुछ सेंध लगाने की कोशिश में उसने, आजम खान के बेटे के खिलाफ एक वजनी मुस्लिम उम्मीदवार खरीदकर खड़ा जरूर कर दिया है, लेकिन अपने गठबंधन में शामिल अपना दल के नाम से ही। गठजोड़ का इकलौता मुस्लिम उम्मीदवार, जिसे अपना दल के टिकट पर उतारा गया है, उसका उस क्षेत्र में इससे पहले शायद ही किसी ने नाम भी सुना होगा। अचरज नहीं कि चुनाव आयोग के मैदान में आने के फौरन बाद, उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भाजपा के एक उम्मीदवार को सांप्रदायिक प्रचार के लिए बाकायदा कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी थी। यह दूसरी बात है कि बाद में आयोग के कोई कार्रवाई करने की कोई खबर नहीं आयी।
बहरहाल, अब मुस्लिमविरोध की मुद्रा के उक्त नॉर्म से आगे, भाजपा उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या दूसरे चरण के मतदान के बाद से, सांप्रदायिक दांव के इस्तेमाल में बदहवासी दिखा रही है। इसी सप्ताह के पहले दिन, पूर्वी उत्तर प्रदेश में, सिद्घार्थनगर जिले के डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीवार तथा निवर्तमान विधायक, राघवेंद्र सिंह एक वीडियो में यह एलान करते हुए नजर आए कि वे एक बार फिर से चुनकर आ जाएं, ‘मुसलमान चंदिया टोपी छोड़कर, तिलक लगाने लग जाएंगे!’ याद रहे कि राघवेंद्र सिंह, खुद योगी आदित्यनाथ द्वारा खड़ी की गयी ‘सेना’, हिंदू युवा वाहनी के प्रदेश के प्रमुख हैं।
जाहिर है कि पिछले विधानसभाई चुनाव के समय भाजपा से शुरूआती खींचतान के बाद, योगी के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी ‘सेना’ को भाजपा में और जाहिर है कि संघ परिवार में भी, सम्मानपूर्ण तरीके से समायोजित कर लिया गया है। इससे चार रोज ही पहले, पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही अमेठी में तिलोई से भाजपा विधायक तथा उम्मीदवार, मयंकेश्वर शरण सिंह को चुनाव प्रचार भाषण के दौरान यह कहते हुए रिकार्ड किया गया था कि, ‘अगर हिंदुस्तान का हिंदू जाग गया, तुम्हारी दाढ़ी उखाड़कर, उसकी चोटी बना देगा।
अगर तुम्हें हिंदुस्तान में रहना है तो, ”राधे-राधे” कहना होगा। वर्ना पार्टीशन के समय जो लोग पाकिस्तान चले गए थे, उनकी तरह तुम भी जा सकते हो…तुम्हारा यहां कोई काम नहीं है।’ इसी दौरान, पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही भाजपा के बाहुबली सांसद, शशिभूषण शरण सिंह अफजल के बहाने, जाहिर है कि मुसलमानों को ‘घर में घुसकर मारने’ की धमकी दे चुके थे।
बहरहाल, भाजपा नेताओं के ज्यादा से ज्यादा सांप्रदायिक होते बोल ही, उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा के हाथ से फिसलता नजर आने की बौखलाहट की कहानी नहीं कह रहे हैं। इटावा सदर से, निवर्तमान भाजपा विधायक तथा इस बार उम्मीदवार, सरिता भदौरिया का वाइरल वीडियो इस बौखलाहट की वजह और खोलकर रख देता है। संभवत: अपने कार्यकर्ताओं/ समर्थकों को संबोधित करते हुए, भाजपा विधायक वीडियो में इसकी शिकायत करती नजर आती हैं कि चुनाव प्रचार के लिए जाने पर महिलाएं उनकी ‘नमस्कार तक नहीं ले रही हैं।’
भदौरिया इस पर काफी खफा नजर आती हैं कि ये वही लोग हैं, जिन्हें उनकी सरकार ने गल्ला दिया था, नमक दिया था, राशन दिया था, घर दिया था, सुविधाएं दी थीं, वगैरह। इन लोगों ने तब तो ”हमारा” सब कुछ ले लिया और अब वोट मांगने जा रहे हैं, तो बात नहीं सुन रहे हैं। यह तो न्याय नहीं है। ऐसा ही था तो पहले ही कह देते कि आपका राशन हम नहीं लेंगे!
यह प्रकरण, यह तो दिखाता ही है कि विकास के शब्दजाल की ओट में, संघ-भाजपा खासतौर पर गरीबों को काम, शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन आदि के बुनियादी अधिकार देने के बजाए, उन्हें लाभार्थी बनाकर रखने के जरिए, सार्वजनिक संसाधनों के बल पर, निजी राजनीतिक समर्थन बढ़ाने तथा पुख्ता करने की जो कोशिश करती रही है, लोगों पर उसका असर अब उतर चला है।
गरीब भी इतना तो समझ ही रहे हैं कि ‘हमारा राशन’, ‘हमारी सुविधाएं’, ‘हमारे आवास’ के संघ-भाजपा के दावे बदनीयती भरे हैं, क्योंकि जो भी थोड़ी-बहुत सुविधाएं उन्हें मिली भी हैं, सार्वजनिक या सरकारी पैसे से मिली हैं, न कि भाजपा के या उनके नेताओं के निजी कोष से। गरीबों की आंखों के आगे से यह पर्दा जैसे-जैसे हटता जा रहा है, वैसे-वैसे संघ-भाजपा के हाथों से, खुली सांप्रदायिक दुहाई के अलावा, बहुसंख्यक समुदाय से वोट मांगने का हरेक बहाना फिसलता जा रहा है।
इस सिलसिले में यह याद दिलाना भी अप्रासांगिक नहीं होगा कि किस तरह से मोदी के नेतृत्व में संघ-भाजपा कुनबे ने, लाभ बांटने की लोगों को ‘पुरुषार्थहीन बनाने वाली’ नीतियों के मुखर विरोध से शुरू करने के बाद, बड़ी तेजी से, लाभ बांटने के जरिए लोगों को नागरिक की जगह लाभार्थी बनाकर छोड़ देने के खेल को साधा है। वास्तव में इसमें विरोधाभास लग तो सकता है, लेकिन कोई वास्तविक विरोध नहीं है।
जन कल्याण की राजनीति के बजाए, जो विभिन्न क्षेत्रों में नागरिकों के रूप में लोगों के अधिकारों का ही विस्तार करती है और नागरिकों की बुनियादी जरूरतें पूरी करना राज्य की जिम्मेदारी होने की जन चेतना विकसित करती है। लाभार्थी बनाने का मोदी-संघ मॉडल, लोगों को मौजूदा शासन के कृपाकांक्षियों यानी नागरिक की जगह प्रजा बनाने का ही प्रयास करता है। अचरज नहीं कि मोदी राज का अपनी कृपालुता के प्रचार पर जितना जोर है, उतना ही जोर अधिकारों का विमर्श बंद कराने पर भी है।
और अंत में चुनाव भाजपा के हाथ से फिसल रहा होने का एक साक्ष्य और। दूसरे चरण के मतदान के बाद, केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश तथा पंजाब के दो दर्जन से ज्यादा भाजपा नेताओं को, जिनमें कई उम्मीदवार भी शामिल हैं, केंद्रीय सुरक्षा बलों की सुरक्षा का कवच मुहैया कराने का एलान किया है। जनता की नाराजगी, नमस्ते नहीं लेने से लेकर, भाजपा नेताओं की सुरक्षा के खतरे में पड़ जाने तक जाती है। उत्तर प्रदेश के मतदान के पहले दो चरणों पर, इससे ज्यादा सटीक एक्जिट पोल दूसरा क्या होगा!
आलेख : राजेंद्र शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘लोकलहर’ के संपादक हैं.)
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