भिलाई नगर (पब्लिक फोरम)। सेंटर ऑफ स्टील वर्कर्स यूनियन (ऐक्टू) ने सेल प्रबंधन द्वारा कर्मियों के ग्रेज्युटी में एकतरफा तानाशाही रवैय्या अख़्तियार करते हुए लगाई गई सीलिंग (कटौती) के आदेश को तुगलकी फ़रमान बताते हुए इस पर गहरी नाराजगी जताई है और अपना सख़्त विरोध दर्ज कराया है।
ऐक्टू ने सेंल पेंशन फंड में प्रबंधन के 9% अंशदान को भी एक तरह से छलावा ही कहा है, क्योंकि प्रबंधन ने यह बढ़ोतरी 1 जनवरी, 2017 से लागू करने की बजाय 1 नवंबर 2021 से लागू करने का आदेश जारी किया है। वहीं 1 जुलाई, 2014 के बाद ज्वायनिंग वाले कर्मियों को 20 लाख से ज्यादा ग्रेज्युटी न देने का फैसला किया है। इससे भी कर्मियों को कम से कम 6 लाख से 10 लाख रूपयों का नुकसान होगा। ऐक्टू ने प्रबंधन के इस आदेश पर सख्त एतराज जताया है।
तत्संबंध में बयान जारी कर सेंटर ऑफ स्टील वर्कर्स युनियन– ऐक्टू के महासचिव श्याम लाल साहू ने सवाल उठाया है कि सेल प्रबंधन आखिर किसके इशारे पर एक के बाद एक तुगलकी फरमान जारी कर रहा है? यह तो तय है कि केंद्र सरकार इसमें बड़ी भूमिका अदा कर रहा है, क्योंकि उसकी शुरू से नीति रही है कि कर्मचारियों को हताश कर सब कुछ कार्पोरेट घरानों के हवाले कर दिया जाये और कार्पोरेट घरानों को श्रम को लूटने की खुली छूट दे दी जाये। इसीलिए 2014 में सत्ता में आने के बाद भारतीय उद्योग परिसंघ को संबोधित करते हुए मोदीजी ने कहा था कि “सार्वजनिक क्षेत्र मरने के लिए ही पैदा होता है।” उसने आगे यह भी कहा था कि “व्यापार करना सरकार का काम नहीं है।” इससे साफ है कि सरकार के निर्देश पर ही सेल प्रबंधन द्वारा लगातार कर्मचारी विरोधी आदेश जारी किए जा रहे हैं।
सेल प्रबंधन के एक के बाद एक इन फरमानों से सवाल केवल केंद्र सरकार और प्रबंधन पर ही नहीं खड़े हो रहे, बल्कि एनजेसीएस की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा होने लगा है। इससे कर्मियों को ऐसा लगने लगा है कि एनजेसीएस में शामिल यूनियनों का विरोध प्रदर्शन भी कहीं मात्र छलावा तो नहीं है।
ऐक्टू ने इस बात पर घोर आश्चर्य व्यक्त किया है कि प्रबंधन के इस कर्मचारी विरोधी फैसले के बावजूद वामदलों को छोड़ तमाम सरकारों ने चुप्पी साध रखी है। इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि श्रमिक बिरादरी के हितों की वामदलों के सिवाय किसी को भी कोई परवाह नहीं है।
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