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15 साल बाद बालको चिमनी हादसे के पीड़ितों को मिलेगा इंसाफ? कोरबा कोर्ट में आज 17 फरवरी को अहम सुनवाई!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। 23 सितंबर 2009 की वह काली रात आज भी कोरबा के लोगों के ज़हन में ताज़ा है, जब वेदांता-बालको पावर प्लांट की 225 मीटर ऊंची चिमनी ढह गई थी। 56 मजदूरों की चीखें मिट्टी और कंक्रीट के नीचे दफन हो गईं। आज, 15 साल बाद, इस हादसे में “न्याय” की उम्मीद एक बार फिर जगी है। 17 फरवरी 2025 को कोर्ट में होने वाली सुनवाई इस मामले का निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। 

आज क्या होगा आज?
सरकारी अधिवक्ता ने बालको और उसकी ठेकेदार कंपनियों के उच्च अधिकारियों को आरोपी बनाने की मांग की है। इनमें तत्कालीन सीईओ गुंजन गुप्ता भी शामिल हैं, जिनका साक्ष्य पिछले साल सितंबर में दर्ज किया गया था। अगर कोर्ट यह मांग स्वीकार करती है, तो यह मामला देश भर में कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी पर बहस का आधार बनेगा। 

हादसे का वह भयावह मंज़र 
– तारीख: 23 सितंबर 2009, शाम 3:45 बजे। 
– क्या हुआ? निर्माणाधीन चिमनी अचानक ढह गई। मलबे में दबे मजदूरों को निकालने के लिए 10 दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला। 
– मृतकों का आंकड़ा: सरकार ने 40 बताया, लेकिन ट्रेड यूनियनों का दावा है कि 56 लोग मारे गए। 

जांच में क्या निकला?
  – न्यायिक आयोग की रिपोर्ट: जस्टिस संदीप बख्शी ने सुरक्षा मानकों की गंभीर लापरवाही को हादसे का मुख्य कारण बताया।
  – किसकी गलती? 
1. बालको प्रबंधन: चिमनी निर्माण की अनुमति नहीं थी। 
  2. ठेकेदार कंपनियां: निर्माण सामग्री घटिया थी। 
  3. सरकारी विभाग: नगरपालिका और श्रम विभाग ने निरीक्षण नहीं किया। 
– प्राकृतिक कारण नहीं: हादसे के दिन न तो बिजली गिरी थी, न ही आंधी का कोई रिकॉर्ड। 

15 साल से क्यों लटका है मामला?
– 46 गवाह, पर कोई सज़ा नहीं: अब तक सिर्फ निचले स्तर के कर्मचारियों पर केस चला। 
– पीड़ित परिवारों का दर्द: रामविलास (45), जिनका भाई हादसे में मरा था, कहते हैं, “हमें वादे ही मिले… नौकरी, मुआवजा, इंसाफ कुछ नहीं।” 
– नया मोड़: विवेचना अधिकारी विवेक शर्मा की जांच ने उच्च अधिकारियों की भूमिका उजागर की है। 

आगे क्या?
आज की सुनवाई में कोर्ट दो बड़े सवालों पर फैसला दे सकती है: 
1. क्या कंपनी के टॉप अधिकारियों को आरोपी बनाया जाएगा? 
2. क्या पीड़ित परिवारों को 15 साल बाद इंसाफ मिलेगा? 

जानकारों की राय
– “यह मामला सिर्फ छत्तीसगढ़ नहीं, बल्कि पूरे देश में औद्योगिक सुरक्षा के लिए एक मिसाल बनेगा,” – अधिवक्ता राजेश कोर्राम। 

न्याय की उम्मीद
पीड़ितों के परिवारों की आंखें आज कोर्ट पर टिकी हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस सुनवाई से “ज़िम्मेदारों को सज़ा” और “इंसाफ का दरवाजा” खुलेगा। जैसा कि हादसे में अपने पति को खोने वाली शांति बाई कहती हैं, “हम मरते दम तक लड़ेंगे… हमारे बच्चों को न्याय चाहिए।”  

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