बुधवार, दिसम्बर 4, 2024
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संभल में सत्य की तलाश से डर क्यों रही है योगी सरकार? 

सीपीआई-एमएल की फैक्ट-फाइंडिंग टीम को नज़रबंद करने की कड़ी आलोचना

उत्तर प्रदेश (पब्लिक फोरम)। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बार फिर अपनी आलोचनाओं को रोकने और सच्चाई को सामने आने से रोकने का प्रयास किया है। CPI (ML) के तथ्य-जांच दल, जिसमें सांसद सुधामा प्रसाद सहित कई प्रमुख नेता शामिल थे, को मुरादाबाद में नजरबंद कर दिया गया। यह दल उत्तर प्रदेश पुलिस की कथित हिंसा में मारे गए मुसलमानों के परिवारों से मिलने संभल जाने वाला था।
क्या है पूरा मामला?
CPI (ML) के इस प्रतिनिधिमंडल में सांसद सुधामा प्रसाद, AIPWA की अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी, पार्टी के केंद्रीय समिति सदस्य अफ़रोज़ आलम, मुरादाबाद प्रभारी रोहतास राजपूत, पूर्व JNUSU अध्यक्ष एन. साई बालाजी और अन्य नेता शामिल थे। यह टीम मुरादाबाद पहुँची और वहाँ से संभल के लिए रवाना होने की तैयारी कर रही थी।
हालांकि, जैसे ही टीम मुरादाबाद से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी, पुलिस ने उन्हें रोक दिया। मुरादाबाद के डिप्टी एसपी के नेतृत्व में पुलिस ने प्रतिनिधिमंडल को जानकारी दी कि उन्हें जिला प्रशासन के आदेश पर नजरबंद किया जा रहा है। पुलिस का हवाला था कि संभल के जिला मजिस्ट्रेट ने बाहरी लोगों के जिले में प्रवेश पर 10 दिसंबर तक प्रतिबंध लगाया है।

सांसद को भी मिलने से रोका गया

CPI (ML) ने प्रशासन से माँग की कि यदि पीड़ित परिवारों से मिलने की अनुमति नहीं दी जा सकती, तो कम से कम प्रतिनिधिमंडल को पुलिस कमिश्नर से मुलाकात करने दिया जाए। लेकिन पुलिस ने इस माँग को भी सिरे से खारिज कर दिया। एक निर्वाचित सांसद को भी संवाद का मौका नहीं दिया गया, जिससे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।

क्या छुपाना चाहती है सरकार?

यह पहली बार नहीं है जब योगी सरकार पर सच्चाई को दबाने का आरोप लगा हो। संसद में चर्चा पर रोक, प्रदर्शनों पर पाबंदी और अब जनता के प्रतिनिधियों को पीड़ितों से मिलने से रोकना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा दिखता है।
सरकार के इन कदमों से स्पष्ट है कि वह उन मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है, जिनसे जनता सीधे प्रभावित हो रही है—जैसे कि बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक हिंसा। संभल में मुसलमानों की हत्या और उसके बाद की घटनाएँ सरकार के सांप्रदायिक एजेंडे और विफलताओं को उजागर करती हैं।

CPI (ML) की मांग

CPI (ML) ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए निम्नलिखित माँगें उठाई हैं।

1. संभल के डीएम और एसपी को तत्काल बर्खास्त किया जाए और उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए।
2. मारे गए परिवारों को 25 लाख रुपये का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।
3. सांप्रदायिक हत्याओं और दमन की घटनाओं की निष्पक्ष जांच हो।

सामाजिक विभाजन को बढ़ावा क्यों?
CPI (ML) ने आरोप लगाया कि योगी और मोदी सरकार ‘डबल इंजन’ का नारा देकर जनहित के मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही हैं। समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटना, नफरत फैलाना और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को प्रोत्साहित करना एक खतरनाक राजनीतिक खेल का हिस्सा है।

CPI (ML) ने जनता से अपील की है कि इस विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें। यह समय है कि समाज नफरत और हिंसा की राजनीति को खारिज करे और सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाए।

मुरादाबाद में प्रतिनिधिमंडल की नजरबंदी और पीड़ित परिवारों से मिलने पर रोक न केवल लोकतंत्र पर चोट है, बल्कि यह सरकार के डर और असफलताओं को भी उजागर करता है। यह घटना हर जागरूक नागरिक से सवाल पूछती है—क्या हम ऐसी राजनीति को स्वीकार करेंगे जो सच्चाई को दबाने और समाज को बांटने का काम करती है?

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