नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। केंद्र सरकार द्वारा 22 सितंबर को खाद्य पदार्थों पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% करने की घोषणा को ‘जनता के लिए बड़ी राहत’ बताया गया था। लेकिन बाजार में जमीनी स्थिति कुछ और ही बयान कर रही है। कर कटौती के बावजूद उपभोक्ताओं को राहत मिलने के बजाय कई उत्पादों की कीमतें या तो स्थिर बनी हुई हैं या फिर बढ़ गई हैं।
क्या है जमीनी हकीकत?
बाजार सर्वेक्षण और उपभोक्ता अनुभवों से सामने आए तथ्य चौंकाने वाले हैं। घी, ड्राई फ्रूट्स और अन्य डेयरी उत्पादों की कीमतों में कमी आने के बजाय वृद्धि दर्ज की गई है।
🔸घी और दूध उत्पाद: जहां पहले घी 540 रुपये प्रति किलो (12% जीएसटी सहित) मिलता था, वहीं अब यह 585 रुपये प्रति किलो पर बिक रहा है। यानी 45 रुपये की अतिरिक्त वृद्धि।
🔸बादाम (ड्राई फ्रूट्स): पहले 680 रुपये प्रति किलो मिलने वाला बादाम अब 790 रुपये प्रति किलो पर उपलब्ध है—110 रुपये की बढ़ोतरी।
🔸मक्खन: जो पहले 62 रुपये प्रति पैक था, वह अब भी उसी कीमत पर बिक रहा है। उपभोक्ता को कोई लाभ नहीं मिला।
कीमत वृद्धि का गणित
विशेषज्ञों का कहना है कि कई कंपनियों ने जीएसटी कटौती की घोषणा से पहले ही अपने उत्पादों की कीमतें 8-10% तक बढ़ा दी थीं। इसके चलते कर में मिली राहत का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचने के बजाय निर्माता कंपनियों के मुनाफे में जुड़ गया।

उपभोक्ता मामलों के जानकारों का कहना है कि सरकार द्वारा कंपनियों पर कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रभावी निगरानी तंत्र नहीं होने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है।
महंगाई का व्यापक असर
देश में खाद्य पदार्थों की महंगाई पहले से ही चिंताजनक स्तर पर है। अगस्त 2025 में खाद्य मुद्रास्फीति 9% से अधिक रही। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की ऊंची कीमतों से पहले ही आम जनता की जेब पर भारी बोझ है। ऐसे में आवश्यक खाद्य वस्तुओं पर मिलने वाली राहत की उम्मीद भी धराशायी हो गई है।
उठ रहे हैं सवाल
इस पूरे प्रकरण ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं:-
🔹पहला: यदि कर कटौती से कीमतें नहीं घटीं तो इस राहत का वास्तविक लाभार्थी कौन है—आम जनता या कॉरपोरेट कंपनियां?
🔹दूसरा: क्या सरकार उन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी जिन्होंने कर कटौती से पहले मनमाने ढंग से कीमतें बढ़ाईं?
🔹तीसरा: मूल्य निगरानी तंत्र को और सशक्त बनाने की क्या योजना है?
मीडिया की जिम्मेदारी
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह सरकारी घोषणाओं के साथ-साथ उनके वास्तविक प्रभाव की भी निष्पक्ष समीक्षा करे। सरकारी नीतियों की केवल प्रशंसा करने के बजाय उनके जमीनी परिणामों को जनता के सामने लाना भी उतना ही आवश्यक है।
जीएसटी कटौती निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम था, लेकिन उसका लाभ अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचे, इसके लिए प्रभावी निगरानी और जवाबदेही जरूरी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कर राहत का लाभ कंपनियों के मुनाफे में न जाकर जनता की जेब में पहुंचे।
लोकतंत्र की मजबूती इसी में है कि नागरिक सरकारी घोषणाओं और उनके वास्तविक परिणामों में अंतर को समझें और अपने सवाल पूछते रहें। तभी नीतियां केवल कागजों पर नहीं, बल्कि धरातल पर भी प्रभावी हो सकेंगी।
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