नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। एक ऐतिहासिक और भावनात्मक बहस के बाद, वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को राज्यसभा ने भी मंजूरी दे दी है। गुरुवार देर रात हुई वोटिंग में 128 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट दिया, जबकि 95 ने विरोध में। इससे पहले यह बिल लोकसभा से पास हो चुका था। अब यह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास जाएगा, और उनकी मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। लेकिन इस बिल ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है – क्या यह वाकई अल्पसंख्यकों के हित में है या उनके अधिकारों पर चोट? आइए, इसकी गहराई में उतरते हैं।
सबसे बड़ा फैसला: बिल पास, लेकिन हंगामा बरकरार
राज्यसभा में गुरुवार को 13 घंटे से ज्यादा चली चर्चा के बाद वक्फ संशोधन विधेयक पर वोटिंग हुई। सभापति जगदीप धनखड़ ने मजाकिया अंदाज में कहा, “मुझे वोट डालने की जरूरत दूर-दूर तक नहीं पड़ी।” उनका यह बयान उस वक्त आया जब विपक्ष के कुछ सांसद उन्हें आसन पर देखकर हैरान हुए। दरअसल, सभापति को भी वोट डालने का अधिकार है, लेकिन बहुमत इतना साफ था कि उनकी जरूरत ही नहीं पड़ी। विपक्ष ने इस बिल के खिलाफ 139 संशोधन पेश किए, लेकिन सदन ने एक-एक कर सभी को खारिज कर दिया। कांग्रेस, सपा, RJD जैसे दलों ने इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया, वहीं सरकार ने इसे पारदर्शिता और सुधार का कदम करार दिया।
विपक्ष ने इस बिल के खिलाफ 139 संशोधन पेश किए, लेकिन सदन ने एक-एक कर सभी को खारिज कर दिया। कांग्रेस, सपा, RJD जैसे दलों ने इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया, वहीं सरकार ने इसे पारदर्शिता और सुधार का कदम करार दिया।
क्या बोले किरेन रिजिजू?
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा, “यह बिल मुसलमानों को डराने के लिए नहीं, बल्कि उनकी भलाई के लिए है। विपक्ष मुसलमानों को गुमराह कर रहा है।” रिजिजू ने बताया कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल में 22 सदस्य होंगे, जिनमें 4 से ज्यादा गैर-मुस्लिम नहीं होंगे। वहीं, वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम शामिल नहीं होंगे।
उन्होंने सवाल उठाया, “वक्फ बोर्ड एक वैधानिक संस्था है। इसमें सिर्फ मुसलमान ही क्यों हों? अगर हिंदू-मुस्लिम के बीच कोई विवाद हो, तो उसे कौन सुलझाएगा?” रिजिजू ने यह भी कहा कि बिल में जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के सुझावों को शामिल किया गया है। “हमने सबकी बात सुनी, बदलाव किए। यह लोकतंत्र का तकाजा है,” उन्होंने जोड़ा।
विपक्ष का गुस्सा: “यह अल्पसंख्यकों पर हमला है”
विपक्षी नेता इस बिल से नाराज हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भावुक होते हुए कहा, “देश में ऐसा माहौल बनाया गया है कि यह बिल अल्पसंख्यकों को तंग करने के लिए लाया गया है। अगर 1995 के कानून में सुधार होता, तो हम साथ देते। लेकिन यह पुरानी बातों को दोहराता है।” खरगे ने चेतावनी दी, “जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली नीति किसी के लिए ठीक नहीं।”
कांग्रेस सांसद आरिफ नसीम खान ने कहा, “इस बिल से वक्फ की संपत्तियों को नुकसान होगा। हमने जेपीसी में इसका विरोध किया था, लेकिन हमारी नहीं सुनी गई।” RJD के मनोज झा और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने भी इसे असंवैधानिक करार दिया।
बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी के भाषण पर विपक्ष ने हंगामा किया। त्रिवेदी ने कहा, “पहले मुस्लिम समुदाय उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे नामों से जाना जाता था, अब मुख्तार अंसारी जैसे नामों से। यह बदलाव 1976 में धर्मनिरपेक्षता आने के बाद शुरू हुआ।” इस पर जयराम रमेश ने आपत्ति जताई, तो गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया, “सुधांशु जी ने INDI गठबंधन की सच्चाई बताई। इशरत जहां को आपने शहीद कहा, अतीक अहमद आपके साथ थे। यह सब आपके दामन पर दाग है।”
बिल में क्या है खास?
– गैर-मुस्लिमों की भागीदारी: वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे। सरकार का तर्क है कि इससे निष्पक्षता बढ़ेगी।
– कलेक्टर की भूमिका: जमीन विवादों में कलेक्टर फैसला करेंगे, जिससे पारदर्शिता आएगी।
– पुराने प्रभाव से मुक्ति: यह बिल पुराने मामलों पर लागू नहीं होगा, ताकि विवाद न बढ़ें।
– संपत्ति की सुरक्षा: सरकार का दावा है कि वक्फ की जमीन पर कोई दखल नहीं होगा।
लोगों का दर्द और उम्मीद?
यह बिल सिर्फ कानून नहीं, बल्कि लाखों लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। वक्फ की जमीन पर मस्जिदें, कब्रिस्तान और गरीबों के लिए स्कूल चलते हैं। एक आम मुस्लिम नागरिक, मोहम्मद असलम कहते हैं, “हम चाहते हैं कि हमारी संपत्ति सुरक्षित रहे। लेकिन अगर यह बिल पारदर्शिता लाएगा, तो अच्छा है। बस हमें डर है कि कहीं हमारी आस्था पर चोट न पहुंचे।”
वहीं, सरकार समर्थक राम प्रसाद मानते हैं, “वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार की शिकायतें थीं। यह बिल उसे ठीक करेगा। हर समुदाय को साथ लेकर चलना जरूरी है।”
अब आगे क्या?
अब सबकी नजर राष्ट्रपति भवन पर है। अगर यह बिल कानून बना, तो वक्फ बोर्ड का ढांचा बदल जाएगा। लेकिन सवाल वही है – क्या यह बदलाव मुसलमानों के लिए राहत लाएगा या नई मुश्किलें खड़ी करेगा? विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश बता रहा है, तो सरकार इसे सुधार का कदम। सच क्या है, यह वक्त बताएगा।
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