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शुक्रवार, मार्च 14, 2025
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भूविस्थापितों की आवाज़: पुनर्वास और अधिकारों की अनदेखी पर सख्त कदम उठाने की मांग

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में औद्योगिकीकरण और कोयला खदान परियोजनाओं के चलते बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण और विस्थापन हुआ है। इस संबंध में ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति ने 11 सूत्रीय मांगों के साथ आंदोलन की रणनीति तैयार की है। समिति ने केंद्रीय मानव अधिकार आयोग, जनजाति आयोग, कोयला मंत्री, पर्यावरण मंत्रालय सहित अन्य संबंधित संस्थाओं को सामूहिक हस्ताक्षरयुक्त मांगपत्र भेजकर समस्याओं के समाधान की मांग की है।

समिति के अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने कहा कि 60 के दशक से औद्योगीकरण और खनन कार्यों के नाम पर जिले के किसानों और जनजातीय समुदायों को विस्थापित किया गया। भूमि अधिग्रहण के बाद भी उन्हें रोजगार, मुआवजा और पुनर्वास जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली हैं। अधिग्रहण के बावजूद प्रभावित परिवारों के अधिकारों की अनदेखी हो रही है, और विरोध करने वालों पर दमनात्मक कार्रवाई की जा रही है।

11 सूत्रीय मांगें और आंदोलन की योजना

समिति ने जिन प्रमुख मुद्दों को उठाया है, उनमें शामिल हैं:
1. पुनर्वास समिति की निष्क्रियता: पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम 2013 का पालन सुनिश्चित करने की मांग।
2. स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार: खदानों और आउटसोर्सिंग कार्यों में 80% स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार देने की अपील।
3. महिला और युवा सशक्तिकरण: कौशल उन्नयन और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर जोर।
4. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार: प्रभावित ग्रामों में बुनियादी सुविधाओं की स्थापना।
5. पर्यावरण संरक्षण: हैवी ब्लास्टिंग और गांवों के पास खनन कार्यों पर रोक लगाने की मांग।
भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के लिए मुआवजा और पुनर्वास अधिनियम 2013 और छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति 2007 का पालन सुनिश्चित करने की अपील की गई है। समिति का कहना है कि दशकों से लंबित मुआवजा और रोजगार के मुद्दों को जल्द हल नहीं किया गया तो आंदोलन तेज किया जाएगा।

आंदोलन के लिए व्यापक एकता की तैयारी

समिति ने जनप्रतिनिधियों, जनसंगठनों और प्रभावित समुदायों को एकजुट कर एक बड़े आंदोलन की योजना बनाई है। उनका कहना है कि यह आंदोलन स्थानीय अधिकारों की रक्षा और भविष्य की पीढ़ियों के रोजगार सुनिश्चित करने के लिए होगा।
संपूर्ण आंदोलन का लक्ष्य प्रभावित परिवारों को उनका हक दिलाना है। समिति ने स्पष्ट किया है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तो जनसंगठन और जनप्रतिनिधि मिलकर व्यापक विरोध प्रदर्शन करेंगे।
भूविस्थापन और औद्योगिकीकरण के बीच पिसते समुदायों को अब उनके अधिकार चाहिए। यह आंदोलन न केवल उनके पुनर्वास की लड़ाई है, बल्कि यह उनके अस्तित्व और भविष्य की सुरक्षा का भी सवाल है। क्या सरकार उनकी आवाज़ सुनेगी? इसका जवाब समय देगा।

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