रविवार, जनवरी 12, 2025
होमआसपास-प्रदेशजंगल कटाई के खिलाफ नागरामुडा में ग्रामीणों का 47 दिनों से आंदोलन...

जंगल कटाई के खिलाफ नागरामुडा में ग्रामीणों का 47 दिनों से आंदोलन जारी

रायगढ़ (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के नागरामुडा गांव के ग्रामीण 47 दिनों से जंगल कटाई के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह क्षेत्र संविधान के पांचवी अनुसूची के तहत आता है और यहां पेसा कानून लागू है। इसके बावजूद, ग्राम सभा की सहमति के बिना जंगल कटाई की अनुमति दी गई है।
तमनार तहसील के अंतर्गत गारे पेलमा IV/I कोयला उत्खनन परियोजना के लिए 91.179 हेक्टेयर वन भूमि को मेसर्स जिंदल पावर लिमिटेड को सौंपा गया है। इस परियोजना के तहत 19,738 पेड़ों की कटाई प्रस्तावित है। 27 नवंबर 2024 को जब कटाई शुरू हुई, तभी से ग्रामीण जंगल में आंदोलन कर रहे हैं और इसकी रक्षा कर रहे हैं।

ग्रामीणों का विरोध और प्रयास

ग्रामीणों ने अनुविभागीय अधिकारी और जिला कलेक्टर को लिखित शिकायत देकर जांच और कार्रवाई की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस पर उन्होंने हाईकोर्ट बिलासपुर में याचिका दाखिल की। ग्रामीणों का आरोप है कि अब तक दो सुनवाई हो चुकी हैं, लेकिन शासन की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है।

ग्राम सभा ने किया विरोध

ग्राम सभा जांजगीर पंचायत, जिसमें नागरामुडा शामिल है, ने 2018 में इस वन भूमि को न देने का प्रस्ताव पारित किया था। इसके अलावा, तमनार जनपद पंचायत ने 23 सितंबर 2023 को आयोजित सामान्य सभा में भी इस वन क्षेत्र को न देने का प्रस्ताव पारित किया।

क्यों है यह जंगल खास?

नागरामुडा गांव से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित यह जंगल 50,000 से अधिक पेड़ों का घर है। इनमें सागौन, सराई, तेंदू, मौहा, साजा, बांस जैसे पेड़ शामिल हैं। यह जंगल न केवल शुद्ध ऑक्सीजन का स्रोत है, बल्कि आसपास के ग्रामीणों का जीवन-यापन भी इस पर निर्भर है। ग्रामीणों की आस्था के केंद्र देवी-देवताओं के स्थान भी इसी जंगल में हैं।
इस क्षेत्र में भालू, तेंदुआ, लकड़बग्घा और कई अन्य जानवर पाए जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जंगल कटने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ेगा, शुद्ध ऑक्सीजन की कमी होगी और जंगली जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

इस जंगल में रहने वाले करीब 50 भूमिहीन परिवारों का भविष्य खतरे में है। ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार ने पुनर्वास और पुनर्योजन की कोई योजना नहीं बनाई है। यदि खनन कार्य शुरू होता है, तो उनकी आजीविका पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

सामाजिक कार्यकर्ता का बयान

सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मरकाम ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारें संविधान और ग्राम सभा को नजरअंदाज कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचा रही हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर से लेकर सरगुजा तक और सरगुजा से लेकर रायगढ़ तक लोग जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।”

ग्रामीणों ने सरकार से अपील की है कि इस परियोजना को तत्काल रद्द किया जाए और जंगलों को संरक्षित किया जाए। उनका कहना है कि जंगल की कटाई न केवल पर्यावरणीय नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि उनकी परंपरा, आस्था और आजीविका को भी नष्ट कर देगी।

“ग्रामीणों का यह संघर्ष न केवल पर्यावरण बचाने का प्रयास है, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत और जीवन को संरक्षित रखने की एक जंग भी है।”

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments