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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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जैतखम्भ उखाड़ने से ग्रामीणों में आक्रोश: एसईसीएल और कंपनी पर गंभीर आरोप, धरने की चेतावनी

कोरबा (पब्लिक फोरम)। जैतखम्भ, जो सतनामी समाज की आस्था और परंपरा का प्रतीक है, को ग्रामीण की जानकारी और सहमति के बिना उखाड़ दिए जाने से अमगांव के जोकाही डबरी मोहल्ले के लोग बेहद आहत और नाराज हैं। मामले को लेकर प्रभावित व्यक्ति श्यामलाल सतनामी ने कलेक्टर से शिकायत दर्ज कराई है और उचित कार्यवाही की मांग की है।

पाली विकासखंड के हरदीबाजार तहसील के ग्राम पंचायत अमगांव के निवासी श्यामलाल सतनामी का कहना है कि उनका मकान जोकाही डबरी मोहल्ले में था। घर के बाहर सतनामी समाज की आस्था के केंद्र जैतखम्भ की स्थापना विधि-विधान से की गई थी। यहां पूरे मोहल्ले के लोग पूजा-अर्चना किया करते थे।
एसईसीएल गेवरा द्वारा इस मोहल्ले का अधिग्रहण किए जाने के कारण श्यामलाल और अन्य ग्रामीणों को विस्थापित होना पड़ा। श्यामलाल ने 29 जुलाई 2024 को एसईसीएल प्रबंधन को पत्र लिखकर जैतखम्भ को विधि-विधान से विस्थापित करने और इसके एवज में उचित मुआवजा देने की मांग की थी।

प्रबंधन की अनदेखी और जैतखम्भ उखाड़ने का आरोप
श्यामलाल का आरोप है कि उनकी मांगों और पत्र पर कोई विचार नहीं किया गया। हाल ही में, एसईसीएल दीपका के प्रबंधक मनोज कुमार, कंपनी के जीएम विकास दुबे, और कर्मचारी अनिल पाटले ने बिना सहमति और जानकारी के उनके ईष्टदेव के प्रतीक जैतखम्भ को उखाड़कर कहीं अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया।

श्यामलाल ने कलेक्टर से अपील की है कि इस मामले में संज्ञान लेते हुए दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए और जैतखम्भ के एवज में मुआवजा राशि दी जाए। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि एक सप्ताह के भीतर उनकी मांग पूरी नहीं की गई, तो वे उसी स्थल पर जैतखम्भ की पुनः स्थापना कर धरने पर बैठने को मजबूर होंगे। इसके लिए पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन और एसईसीएल प्रबंधन की होगी।

जैतखम्भ: आस्था का केंद्र
सतनामी समाज में जैतखम्भ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह न केवल पूजा-अर्चना का केंद्र है, बल्कि समाज की एकता और परंपरा का प्रतीक भी है। इसे उखाड़े जाने से समाज की भावनाओं को ठेस पहुंची है।
इस प्रकरण में यह स्पष्ट है कि प्रशासन और प्रबंधन ने विस्थापन प्रक्रिया में संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण का अभाव दिखाया है। जैतखम्भ जैसे धार्मिक प्रतीकों को हटाने से पहले संबंधित व्यक्ति की सहमति और समाज की भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक था।

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