रविवार, अक्टूबर 26, 2025
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वेदांता-बालको विवाद: मालिक, हमारी आवाज को नहीं मरवा सकते! – कर्मचारियों का छलकता दर्द

छत्तीसगढ़/कोरबा (पब्लिक फोरम)। वेदांता समूह के स्वामित्व वाली भारत एल्यूमिनियम कंपनी (बालको) के कर्मचारियों का दशकों से दबा हुआ गुस्सा और दर्द अब लावा बनकर फूट पड़ा है। “आप कंपनी के मालिक हैं, देश के नहीं,” इन शब्दों के साथ श्रमिकों ने वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल के खिलाफ अपने शोषण की 25 साल लंबी दास्तां बयां की है। उनका आरोप है कि प्रबंधन उन्हें “कीड़े-मकोड़े” की तरह समझता है और उनके अधिकारों का लगातार हनन कर रहा है।

यह केवल वेतन या सुविधाओं की लड़ाई नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और अस्तित्व की जंग है। कर्मचारियों ने सीधे तौर पर सरकार और प्रबंधन से भारतीय संविधान में निहित अपने अधिकारों पर सवाल उठाया है।

शोषण के 25 साल: “अब सहने की आदत नहीं”

श्रमिकों के अनुसार, जब से वेदांता ने बालको का अधिग्रहण किया है, पिछले 25 वर्षों से छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासियों, आदिवासियों, संयंत्र में कार्यरत कर्मचारियों, सेवानिवृत्त कर्मचारियों के साथ ही श्रमिक संगठनों का भी लगातार शोषण हो रहा है। एक व्यथित कर्मचारी ने कहा, “वेदांता प्रबंधन की शोषण की तलवार से कट-कट कर कीड़े-मकोड़े की तरह मरने की आदत हमें नहीं है। बालको कंपनी में वेदांता प्रबंधन के शोषण के खिलाफ हमारा विरोध है, हमारा विरोध रहेगा और यह संघर्ष जारी रहेगा।”

यह बयान उन गहरी पीड़ा और अन्याय की भावना को दर्शाता है जो इन कर्मचारियों के दिलों में घर कर गई है। वे याद दिलाते हैं कि 25 साल पहले भी निजीकरण के खिलाफ 67 दिनों का लंबा आंदोलन हुआ था, और वे उस संघर्ष की भावना को आज भी अपने अंदर जिंदा रखे हुए हैं।

मालिक बनाम नागरिक: अधिकारों की जंग

कर्मचारियों ने वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल को संबोधित करते हुए एक मार्मिक लेकिन दृढ़ सवाल पूछा है, “हम मानते हैं कि आप वेदांता के मालिक हैं, लेकिन आप इस देश के मालिक नहीं हैं। यह भारत आपकी जागीर नहीं है।” वे इस बात पर जोर देते हैं कि इस देश के नागरिक के तौर पर जितना अधिकार अनिल अग्रवाल का है, उतना ही अधिकार उनका भी है।

श्रमिकों ने अनिल अग्रवाल की दोहरी नागरिकता (लंदन) का उल्लेख करते हुए अपनी बेबसी पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “आपके पास तो दो-दो देशों की नागरिकता है, लेकिन बालको का स्थानीय गरीब कर्मचारी छत्तीसगढ़ की इस माटी को छोड़कर कहां जाएगा? ” यह सवाल केवल एक नौकरी का नहीं, बल्कि उनकी जड़ों, उनकी पहचान और उनके भविष्य का है।

कानून और संविधान के कटघरे में प्रबंधन

कर्मचारियों ने भारत के संविधान और श्रम कानूनों का हवाला देते हुए केंद्र और राज्य सरकार से पूछा है कि इन कानूनों में श्रमिकों के अधिकार कहाँ हैं? उनका कहना है कि वे जानना चाहते हैं कि श्रमिकों की जिंदगी और अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए प्रावधानों का क्या हुआ। यह सीधा सवाल देश की कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी एक टिप्पणी है। हाल के वर्षों में, बालको प्रबंधन पर कर्मचारियों के साथ मनमानी और भेदभावपूर्ण नीतियां अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। कई बार वेतन वृद्धि और अन्य मांगों को लेकर मजदूरों ने आंदोलन भी किया है।

“मलिक हमारी आवाज को नहीं मरवा सकते”

अपने भविष्य को लेकर आशंकित और अपनी जान को खतरा महसूस करते हुए भी इन श्रमिकों का हौसला नहीं टूटा है। एक कर्मचारी ने साहस के साथ कहा, “अनिल अग्रवाल साहब, आप मालिक हैं, हम नौकर हैं, हमारी कोई औकात नहीं! आप हमें निपटा सकते हैं, हमें मरवा भी सकते हैं। लेकिन, आप हमारी शोषण के खिलाफ उठी आवाज को नहीं मरवा सकते। वह जिंदा रहेगी।”

यह केवल एक कर्मचारी का बयान नहीं, बल्कि हर उस शोषित व्यक्ति की आवाज है जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है। यह दिखाता है कि धमकियों और दबाव के बावजूद, वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने को तैयार हैं।

छत्तीसगढ़ के कोरबा में स्थित बालको प्लांट न केवल देश के लिए एल्युमीनियम का उत्पादन करता है, बल्कि हजारों परिवारों की रोजी-रोटी का जरिया भी है।यहां होने वाली किसी भी घटना का असर पूरे क्षेत्र पर पड़ता है। ऐसे में कर्मचारियों द्वारा उठाए गए ये गंभीर सवाल न केवल वेदांता-बालको प्रबंधन के लिए, बल्कि सरकार और पूरे देश के लिए विचारणीय हैं। इन श्रमिकों की आवाज को अनसुना करना न्याय और मानवता के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

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