नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारतीय खनन और धातु क्षेत्र की दिग्गज कंपनी, वेदांता लिमिटेड, एक बड़े वित्तीय विवाद के केंद्र में आ गई है। कंपनी पर आरोप है कि उसने अपनी लंदन स्थित मूल कंपनी वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड (VRL) को लगभग 81,000 करोड़ (लगभग 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की भारी धनराशि जटिल वित्तीय लेनदेन के माध्यम से विदेश भेजी है। इन आरोपों ने कॉर्पोरेट प्रशासन, नियामकीय निगरानी और भारतीय वित्तीय प्रणाली की स्थिरता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह मामला एक अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म, वायसरॉय रिसर्च (Viceroy Research) की एक रिपोर्ट के बाद सामने आया, जिसमें आरबीआई से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है।रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि इन गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो यह भारत की वित्तीय संप्रभुता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकता है।
आरोपों के केंद्र में “ब्रांड फीस” का जाल
वायसरॉय रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, वेदांता ने अपनी भारतीय सहायक कंपनियों से मूल कंपनी VRL को “ब्रांड और रणनीतिक सेवा शुल्क” के नाम पर बड़ी रकम हस्तांतरित की है।रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्त वर्ष 2022 और 2025 के बीच इस तरह के शुल्क के रूप में 1.2 बिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान किया गया। ये शुल्क असामान्य रूप से बहुत अधिक हैं और उद्योग के मानकों के विपरीत हैं, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि ये वास्तव में कर्ज में डूबी मूल कंपनी को बिना किसी ब्याज और सुरक्षा के फंड मुहैया कराने का एक छिपा हुआ तरीका था।
प्रवर्तन निदेशालय की जांच और गुप्त धनवापसी
मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई जब यह बात सामने आई कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जुलाई 2023 में इन ब्रांड शुल्क भुगतानों की जांच शुरू की थी।वायसरॉय का आरोप है कि ईडी द्वारा पूछताछ किए जाने के बाद, वेदांता की मूल कंपनी VRL ने अपनी भारतीय इकाई वेदांता लिमिटेड (VEDL) को चुपचाप 1,030 करोड़ रुपए (लगभग 123 मिलियन डॉलर) वापस कर दिए। चिंताजनक बात यह है कि इस धनवापसी का खुलासा शेयरधारकों, बॉन्डधारकों या बाजार नियामकों के सामने कभी नहीं किया गया।
प्रणालीगत जोखिम और अल्पसंख्यक शेयरधारकों की चिंता
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे भारतीय इकाई, वेदांता लिमिटेड, ने भारी लाभांश का भुगतान किया, जो उसके नकदी प्रवाह से कहीं अधिक था, जिससे उसका शुद्ध कर्ज बढ़ गया। इससे VRL के विदेशी लेनदारों को तो फायदा हुआ, लेकिन वेदांता लिमिटेड के अल्पसंख्यक शेयरधारकों और भारतीय ऋणदाताओं के लिए जोखिम काफी बढ़ गया।विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की अपारदर्शी कॉर्पोरेट संरचनाएं भारतीय बैंकों और निवेशकों के लिए एक बड़ा खतरा हैं।
वेदांता का पक्ष: आरोपों को किया खारिज
दूसरी ओर, वेदांता समूह ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। कंपनी के एक प्रवक्ता ने वायसरॉय की रिपोर्ट को “चुनिंदा और भ्रामक जानकारी का दुर्भावनापूर्ण मिश्रण” बताया, जिसका उद्देश्य कंपनी को बदनाम करना और उसकी कॉर्पोरेट पहलों को पटरी से उतारना है। वेदांता का कहना है कि रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को सनसनीखेज बनाकर पेश किया गया है और रिपोर्ट जारी करने से पहले उनसे कोई संपर्क नहीं किया गया। समूह ने यह भी कहा है कि उसकी सभी व्यावसायिक गतिविधियां पारदर्शी और वैधानिक मानदंडों के अनुरूप हैं।
आगे क्या?
यह मामला अब भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य नियामक निकायों के पाले में है। वायसरॉय रिसर्च ने आरबीआई से वेदांता के वित्तीय प्रवाह, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के अनुपालन और अंतर-कंपनी लेखांकन संरचनाओं की फोरेंसिक जांच शुरू करने का आग्रह किया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नियामक इस मामले में क्या कदम उठाते हैं, क्योंकि इसके परिणाम न केवल वेदांता समूह के लिए बल्कि भारत के पूरे कॉर्पोरेट जगत और वित्तीय बाजार की विश्वसनीयता के लिए दूरगामी होंगे। इस विवाद ने एक बार फिर बड़े कॉर्पोरेट घरानों में वित्तीय पारदर्शिता और मजबूत नियामक निरीक्षण की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
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